Thursday, December 15, 2011

हिन्दी व्याकरण : वर्ण विचार , भाग (तीन )

स्वरों का वर्गीकरण
उत्पत्ति के अनुसार स्वरों के दो भेद हैं :-
1)      मूल स्वर – जो स्वर दूसरे स्वरों के मेल से ना बने हों , उन्हें मूल स्वर कहते हैं । ये चार हैं –अ, इ, उ, ऋ ।
2)      सन्धि-स्वर – जिन स्वरों की उत्पत्ति दूसरे स्वरों के योग से हुई है , वे सन्धि-स्वर कहलाते हैं । हिन्दी वर्णमाला मे इसकी संख्या सात है – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ ।

पुनः सन्धि-स्वर के दो उपभेद हैं :-
क)    दीर्घ सन्धि-स्वर – दो समान मूल स्वर के मिलने से जो स्वर बनता हैं ; जैसे – अ+अ=आ, इ+इ=ई, उ+उ=ऊ । आ, ई, तथा ऊ दीर्घ सन्धि-स्वर हैं ।
ख)   संयुक्त सन्धि-स्वर – दो भिन्न स्वरों के मिलने से जो स्वर बनता हैं ; जैसे – अ+इ=ए, अ+उ=ऊ, आ+ए=ऐ, आ+ओ=औ । ए, ऐ, ओ, तथा औ संयुक्त सन्धि-स्वर हैं ।
काल मान ( उच्चारण के काल मान को मात्रा कहते हैं ) के अनुसार स्वरों के दो भेद हैं :-
क)    ह्रस्व स्वर – जिस स्वर के उच्चारण मे एक मात्रा लगती है , उसे ह्रस्व कहते हैं ; जैसे – अ, इ, उ आदि ।
ख)   दीर्घ स्वर – जिस स्वर के उच्चारण मे दो मात्राएँ लगती है , उसे दीर्घ स्वर कहते हैं ; जैसे – आ, ई, ऊ आदि ।
प्लुत – संस्कृत मे प्लुत नाम से स्वरों का एक तीसरा भेद भी माना जाता है ; पर हिन्दी में इसका प्रयोग नहीं होता । प्लुत का अर्थ हैं ‘ उछला हुआ ‘ । प्लुत मे तीन मात्राएँ होती हैं । इसका प्रयोग बहुधा दूर से पुकारने , रोने , गाने , और चिल्लाने मे होता है । जैसे – ओ3म् , ए 3 लड़के ! राम रे 3 ! [ दूराह्वाने च गाने च रोदने च प्लुतो मतः । ]
छन्द शास्त्र में ह्रस्व और दीर्घ के लिये के लिये क्रमशः लघु और गुरु शब्द का प्रयोग होता है ।
लघु , गुरु एवं प्लुत के संकेत-चिह्न :
लघु       गुरु        प्लुत
          S                      3
जाति के अनुसार स्वरों के दो भेद हैं :-
क)    सवर्ण या सजातीय – समान स्थान और प्रयत्न से उत्पन्न होने वाले स्वरों को सवर्ण या सजातीय स्वर कहते हैं । जैसे – अ, आ ; इ, ई ; उ, ऊ ।
ख)   असवर्ण या विजातीय स्वर – जिन स्वरों के स्थान और प्रयत्न एक-से नही होते , वे असवर्ण या विजातीय स्वर कहलाते हैं । जैसे – अ, ई ; अ, ऊ ; इ, ऊ ।
मात्रा के संकेत चिह्न :
अ , आ , इ , ई , उ , ऊ , ऋ , ए , ऐ , ओ , औ ,
    ा , ि‍ , ी , ु , ू , ृ , े , ै , ो , ौ ,
अ की कोई मात्रा नही होती ; यह जब किसी व्यंजन के साथ मिलता है , तब व्यंजन का हल् चिह्न () लुप्त हो जाता है : जैसे – ग् + अ = ग ।   
बारहखड़ी या द्वादशाक्षर :
 का  कि  की  कु  कू  के  कै  को  कं  कः ।  
अनुनासिक और निरनुनासिक :
अनुनासिक – एसे स्वरों का उच्चारण नाक और मुँह से होता है । इसका चिह्न (ँ) है । इसे चन्द्रबिन्दु कहते हैं । इसके उच्चारण मे लघुता रहती है । जैसे – दाँत, आँख, आँगन, साँचा ईत्यादि ।
निरनुनासिक –मुँह से बोले जाने वाले स्वर वर्णों को निरनुनासिक कहते हैं जैसे – इधर, उधर, अपना ।
अनुस्वार युक्त – जिन स्वरों का उच्चारण दीर्घ होता है , उनकी ध्वनि नाक से निकलती हैं । जैसे –अंगुर , अंगद , ईंट , कंकन ।
विसर्ग युक्त – विसर्ग () भी अनुस्वार की तरह स्वर के बाद आता है । इनका उच्चारण ‘ह’ की तरह होता है । हिन्दी मे इसका प्रयोग कम होता जा रहा है । संस्कृत मे इसका प्रयोग अधिक होता है । तत्सम शब्दों के साथ इसका प्रयोग अब भी होता है । जैसे – प्रायः , पयःपान , दुःख इत्यादि ।       

29 comments:

  1. सर आपने बहुत विस्तृत रूप से समझाया है
    आपको धन्यवाद

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  2. मेरा आँफिस यहां से दूर है

    इस वाक्य में कौनसा कारक है

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  3. Mool varno ki sankhya kitanai hai

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  4. बहोट बेहतरीन तरीके से समझाए है सर।

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  5. महोदय, बारहखड़ी में त्रुटि है क्योंकि इसमें पूर्ण 12 अक्षर नहीं है।शायद 'कौ'की कमी है।

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    1. बारहखड़ी सही है क्योंकि 11 स्वर होते है ।ह्रस्व अ कि मात्रा दिखती नहीं है

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  6. सर मान स्वरो की संख्या कितनी होती है और उनके नाम क्या है? कृपया उत्तर दीजिए

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  7. सर 'ए' और 'ओ ' भी तो मूल स्वर माने जाते हैं ??

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    1. नहीं
      मूल स्वर के 4 ही है
      अ,इ,उ,ऋ


      ए,ओ संयुक्त दीर्घ स्वर है

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