हमारी राजभाषा
हिन्दी भाग 4
“ पाँच कोस पर वाणी बदले दस कोस पर पानी ” एक
प्रसिद्ध कहावत ! भारतवर्ष की भाषाई , सामाजिक और भौगोलिक बिबिधताओँ को एक वाक्य
में दर्शाने वाला वाक्य । यह कहावत यह भी कहता हैं कि भारत की समरसता और विकास की
कुँजी कभी भी एकरसता नही हो सकती । बिबिधता के साथ समरसता हीं भारत के सम्यक विकास
की कुँजी हैं । यहाँ की बिबिधता को मन से स्वीकार और अंगीकार करने की परम्परा ने
ही सदियों से इस पवित्र और पावन भारत भूमि की गरिमा और इसका भूगोल बनाए रक्खा हैं
। संसार भर में कोई भी विचार धारा हो , कही की भी कैसी भी भौगोलिक सनरचना हो ,
कहीं पर भी कैसा भी मौसम हो, पृथ्वी और प्रकृति का हर रूप हिमालय से सागर तक के
भारत में मौजूद हैं । अतः वेदव्यास का वाक्य कि जो “ कहीं भी हैं वो भारत में हैं और जो भारत में
नही हैं वो कहीं नही हैं ” ये महाभारत और भारतवर्ष दोनो का पर्याय ही हैं ।
इस कारण से बिना भारत को और यहाँ के लोगों के मनोभाव को समझे किसी भी तरह का निति
निर्धारण करना न ही उचित हैं न ही वो मनोवाञ्छित फल और प्रभाव दे सकता हैं ।