Wednesday, September 14, 2016

हमारी राजभाषा हिंदी भाग 6



हमारी राजभाषा हिंदी भाग 6

आज एक प्रश्न पूछने की इच्छा हो रही हैं ! क्या स्वक्षंदता से विकास सम्भव है ? हो सकता है कि कुछ व्यक्ति विशेष विकास कर जाएँ पर वो उनका अत्म संयम हो सकता है आत्मानुशासन हो सकता है पर बहुसँख्यक का क्या क्या ऐसी परिस्थिति अराजकता की ओर नही धकेल देती !
हमारी राजभाषा हिंदी भी कुछ इन्ही अराजक परिस्थितियों से गुजर रही हैं ! भारत के जिस हिस्से में हिंदी प्रमुखता से बोली जाती है वहाँ बस लोग हिंदी स्वभावत: बोलते है कोई पढ़ने या समझने की चेष्टा के बारे में सोचता ही नही है ! यहां तक कि जिनकी रोजी रोटी व्यवसाय भी हिंदी से जुड़े है वो भी हिंदी को गम्भीरता से लेना अपनी तौहीन समझते हैं ! हिंदी पट्टी के अन्तरगत बोली जाने वाली बिभिन्न भाषाओं को बोलने वाले प्रबुद्ध वर्ग अपनी मातृभाषाओं के कम होते व्यवहार या गिरते स्तर के लिए हिंदी को ही कहीं न कहीं जिम्मेदार मानने लगे हैं !

Thursday, July 14, 2016

॥ रस निष्पत्ति ॥



॥ रस निष्पत्ति ॥
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श्रृंगार :

चन्द्रमाँ आइ हुनक छ’विकेँ देखाओंसि में ।
चमकि रहल छै कनी आर राति पूनम में ॥
सितारा चुनर के देखि लजा तरेगण सब ।
नुका रहल छै प्रिये , देखू राति पूनम में ॥1॥

Tuesday, June 7, 2016

॥ अथ कथा भस्मासुर ॥


 

॥ अथ कथा भस्मासुर ॥

 
 सुनहु एक आजु कथा सुधी जन मनकेँ ध्यान लगाय  
कोना भेलथि देवाधि देव , एक  बेर बिकट  निरुपाय ॥
जा क कहल कथा पति लक्ष्मी , सौँ  विस्तार सुनाय ।
आब अहीं टा स सम्भव अछि गौरीपति हित न्याय ॥१॥

Thursday, February 4, 2016

बंदित हे शिव आदिसुते



बंदित हेशिव-आदिसुते
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सकल फलाफल सिद्धविनायक बुद्धि सहायक गौरिसुते ।
गणगणनायक ऋद्धिविधायक विघ्नविनासक सिद्धिपते ॥
हर हर शम्भु शि-वाय सनातन शिष्यनुवर्तन मानतुते ।
जयजय हे गण-नाथ गुणाश्रय बंदित हेशिव-आदिसुते ॥1॥ 

Wednesday, January 27, 2016

कह_मुकरी

कह_मुकरी
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(१)
ओकरा बिनु नै रहल जाय ।
भेँटय नहि तों माथ दुखाय ॥
अनुपम ताप देखि मुख आह ।
की सखि साजन ? नइ सखि चाह !!