गोसाउनीक गीत
जय जय भैरवि असुर भयाओनि ,
पसुपति भामिनि माया ।
सहज सुमति वर दिय हे गोसाओनि ,
अनुगति गति तुअ पाया ॥
अर्थ – हे ! असुरों और
आसुरी वृत्ति को भय प्रदान करने वाली माँ भैरवी ! काली ! तुम्हारी जय जयकार हो ।
तुम्हारी जय हो क्योंकि जो कुछ भी हैं वो सब शिव प्रिया शिवपत्नी की हीं माया हैं
लीला हैं कल्पना स्रृष्टि हैं । हे गोसावनि ! आप मुझे ऐसी सहज , नैसर्गिक ,
स्वभाविक सुन्दर चित्त , मन , बुद्धि का वर प्रदान करिये ताकि मुझे आपकी ही गति
मिले अर्थात मैं आप मे हें समाहित हो जाऊँ ।