Thursday, January 8, 2015

गोसाउनीक गीत

                      गोसाउनीक गीत

जय जय भैरवि असुर भयाओनि ,
पसुपति भामिनि माया ।
सहज सुमति वर दिय हे गोसाओनि ,
अनुगति गति तुअ पाया ॥

अर्थ – हे ! असुरों और आसुरी वृत्ति को भय प्रदान करने वाली माँ भैरवी ! काली ! तुम्हारी जय जयकार हो । तुम्हारी जय हो क्योंकि जो कुछ भी हैं वो सब शिव प्रिया शिवपत्नी की हीं माया हैं लीला हैं कल्पना स्रृष्टि हैं । हे गोसावनि ! आप मुझे ऐसी सहज , नैसर्गिक , स्वभाविक सुन्दर चित्त , मन , बुद्धि का वर प्रदान करिये ताकि मुझे आपकी ही गति मिले अर्थात मैं आप मे हें समाहित हो जाऊँ ।

Thursday, January 1, 2015

फिर से इक साल, नया और, चला आया हैं ।

फिर से इक साल, नया और, चला आया हैं ।

फिर से इक साल, नया और, चला आया हैं ।
स्वप्न आँखों में, मन में फूल खिला डाला हैं ॥
बीते सालों की उम्मीदों को, परवान नया देने ।
फिर से इक साल, नया दौर, चला आया हैं ॥

फिर से इक साल, नया और, चला आया हैं ।
स्वप्न आँखों में, मन में फूल खिला डाला हैं ॥