Wednesday, December 30, 2015

कृष्ण



.......... कृष्ण ............
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राजीव नयन वारीज वयन,
             श्रींगार अयन मधुराधिपती ।
बृषभानुसुता प्रिय गोपसखा,
            रसराज सुधा मदनाधिपती ॥

Sunday, October 25, 2015

अष्टपदी : श्रृंगावली



अष्टपदी : श्रृंगावली  

मुखहास
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मुखहास दबौने  खन खन खनकल चूड़ी हाथमे,
खुलल लट बिन्दी सेनुर चमकय धन्या भालमे ।
नहि सोचल अंजाने कयलक परिहास अंचोकमे ,
श्यामक बंशी बाजय लागल राधारानीकेँ नेहमे ॥

Monday, September 14, 2015

हमारी राजभाषा हिन्दी भाग 5


हमारी राजभाषा हिन्दी भाग 5

 

            भारत एक बहुआयामी, बहुभाषी , धार्मिक , भौगौलिक , संस्कारों, परम्पराओं और जैव बिबिधता से समृद्ध देश हैं । इस देश की सांस्कृतिक और साझी विरासत ने हरेक विपरीत और कठिन परिस्थितियों में भी इसे भारत के रूप में बनाए रक्खा हैं ।
 
जहाँ तक भाषा का प्रश्न हैं पूरे भारत में इतनी भाषाएँ उपभाषाएँ और बोलियाँ और उनकी स्वतंत्र लिपियाँ हैं कि सम्भवत: किसी एक जगह उनका सही रिकार्ड भी मिलना मात्र सन्योग ही होगा । यहाँ तो भाषा कि स्थिति और चलन ऐसी हैं कि जाति उपजाति धर्म स्त्री पुरूष गाँव शहर में भी एक जैसी नही बोली जाती । ऐसा सिर्फ हिंदी के साथ हीं हैं ऐसा नही ये स्थिति भारत की प्रत्येक भाषा के साथ हैं  इसी कारण तो एक बहुत प्रसिद्ध कहावत हैं कि  “ पाँच कोस पर वाणी बदले दस कोस पर पानी “ । भाषा पर जब भी बात करे इस तथ्य से मुँह मोड़ना भारत को नही समझने जैसा हैं ।

Monday, August 24, 2015

सिय बन्दना : जय जय जय मिथिलाक धिया



जय जय जय मिथिलाक धिया

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जय जय जय मिथिलाक धिया ,
हे जनक – नन्दनी राम प्रिया ।
शिवधनु लय नित अरिपन करय ,
छी मिथिला आँखिक नेह सिया ॥

Monday, July 27, 2015

कजरी : फेर घुरि आयल कारी रे बदरिया



कजरी : फेर घुरि आयल कारी रे बदरिया

फेर घुरि आयल कारी रे बदरिया ,
बिजुरी चमकय अकास रे ।
जियरा मे उठय हिलोर बिदेशिया ,
तोरा बिना मनवा उदास रे ॥

Friday, June 12, 2015

प्रभु तुम अविनाशी

भजन :- प्रभु तुम अविनाशी
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प्रभु तुम अविनाशी , दिव्य प्रकाशी ,
बिघ्न विनाशक हर्ता ।
मैं मनुज विलासी , भूमि प्रवासी ,
अहंकार घट भर्ता ॥

Sunday, April 26, 2015

वृक्षों का सन्देश



               वृक्षों का सन्देश


हम  फेफड़े , हैं  इस  धरा  के ।
हमसे हीं जीवन , हैं इस धरा पे ॥

                        हमने दिया हैं इस जग को खाना ,
                        हमसे चहकता हैं  सारा जमाना ।
                        बसेरे दिये  सभ्यताओं को हमने ,
                        बरसते हैं बादल हमीं से धरा पे ॥

Friday, March 13, 2015

मोर का नृत्य

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मोर का नृत्य
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ले पंख नोच न कहीं मेरा ,
सुन्दरता पर मोहित मानव ।
हैं भला इसी में बिधि मेरा ,
लूँ खिसक विथि वन हो लाघव ॥

Thursday, January 8, 2015

गोसाउनीक गीत

                      गोसाउनीक गीत

जय जय भैरवि असुर भयाओनि ,
पसुपति भामिनि माया ।
सहज सुमति वर दिय हे गोसाओनि ,
अनुगति गति तुअ पाया ॥

अर्थ – हे ! असुरों और आसुरी वृत्ति को भय प्रदान करने वाली माँ भैरवी ! काली ! तुम्हारी जय जयकार हो । तुम्हारी जय हो क्योंकि जो कुछ भी हैं वो सब शिव प्रिया शिवपत्नी की हीं माया हैं लीला हैं कल्पना स्रृष्टि हैं । हे गोसावनि ! आप मुझे ऐसी सहज , नैसर्गिक , स्वभाविक सुन्दर चित्त , मन , बुद्धि का वर प्रदान करिये ताकि मुझे आपकी ही गति मिले अर्थात मैं आप मे हें समाहित हो जाऊँ ।

Thursday, January 1, 2015

फिर से इक साल, नया और, चला आया हैं ।

फिर से इक साल, नया और, चला आया हैं ।

फिर से इक साल, नया और, चला आया हैं ।
स्वप्न आँखों में, मन में फूल खिला डाला हैं ॥
बीते सालों की उम्मीदों को, परवान नया देने ।
फिर से इक साल, नया दौर, चला आया हैं ॥

फिर से इक साल, नया और, चला आया हैं ।
स्वप्न आँखों में, मन में फूल खिला डाला हैं ॥