कजरी : फेर घुरि आयल
कारी रे बदरिया
फेर घुरि आयल कारी
रे बदरिया ,
बिजुरी चमकय अकास रे
।
जियरा मे उठय हिलोर
बिदेशिया ,
तोरा बिना मनवा उदास
रे ॥
फेर घुरि आयल कारी
रे बदरिया ,
बिजुरी चमकय अकास रे
।
झुलुवा डारि झुले
मोरे सब सखिया ,
रिमझिम पड़ै छै फुहार
रे ।
सावोन के मास भेलै
बदरा इ अखिया ,
टप टप तोड़ै छै कछार
रे ॥
फेर घुरि आयल कारी
रे बदरिया ,
बिजुरी चमकय अकास रे
।
दादुर मोर पपिहराक
बोलिया ,
टनकय माथ कपार रे ।
बरखाक पानि जरय मोर
देहिया ,
पिया बिना कोन उपाय
रे ॥
फेर घुरि आयल कारी
रे बदरिया ,
बिजुरी चमकय अकास रे
।
सुनु ‘अश्विनी’ पिया
भेला कलकतिया ,
जानि कोन सौतियाक
जाल रे ।
लिखि लिखि भेजै छी
रोजे इ पतिया ,
घुरि आउ साओन हमार
रे ॥
फेर घुरि आयल कारी
रे बदरिया ,
बिजुरी चमकय अकास रे
।
जियरा मे उठय हिलोर
बिदेशिया ,
तोरा बिना मनवा उदास
रे ॥
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