Wednesday, December 21, 2011

कर्मण्ये वाधिकारस्ते माँ फलेषु कदाचन ..........

वेदव्यास के अतिरिक्त गीता के चार श्रोता थे और दो वक्ता | श्रोता थे अर्जुन , संजय , ध्रितराष्ट्र , और बरबरी एवं वक्ता थे कृष्ण और संजय | बरबरी भीम के पुत्र घटोत्कच का पुत्र था जो यहाँ उतना प्रासंगिक नही हैं | गीता के बारे में सभी ऐसा सोचते हैं की कृष्ण ने गीता अर्जुन को युध्द के लिए प्रेरित करने के लिया कही थी पर वास्तव में यह युध्द रोकने का कृष्ण का अंतिम प्रयास था | यहीं ध्रितराष्ट्र और संजय प्रासंगिक हो जाते हैं |

Thursday, December 15, 2011

हिन्दी व्याकरण : वर्ण विचार , भाग (तीन )

स्वरों का वर्गीकरण
उत्पत्ति के अनुसार स्वरों के दो भेद हैं :-
1)      मूल स्वर – जो स्वर दूसरे स्वरों के मेल से ना बने हों , उन्हें मूल स्वर कहते हैं । ये चार हैं –अ, इ, उ, ऋ ।
2)      सन्धि-स्वर – जिन स्वरों की उत्पत्ति दूसरे स्वरों के योग से हुई है , वे सन्धि-स्वर कहलाते हैं । हिन्दी वर्णमाला मे इसकी संख्या सात है – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ ।

Wednesday, November 23, 2011

कर्म , ज्ञान और योग ( गीता जैसा मैने समझा )

        धर्म पर चर्चायें तो बहुत हो चुकी हैं और मैने  अक्सर अपने आप से ये कहा हैं कि धर्म सिर्फ इतना ही हैं कि देश काल समय और  परिस्थितियों के अनुसार जो कुछ भी करना उचित हो उस समय का वही धर्म हैं  और यथोचित कर्म और व्यवहार करना ही धर्म पालन । दुसरे शब्दों मे कहें तो  आपका कौन सा कर्म और व्यवहार कब धर्म और कब अधर्म कहलायेगा ये निर्णय  सिर्फ काल ही निर्धारित कर सकता हैं । कर्म निरपेक्ष हो तो उसका कोई अर्थ  नही हैं । कर्म जब काल या समय के साथ जुड़ता है तभी उसका कुछ निहितार्थ हो  सकता हैं । योग का अर्थ हैं जुड़ना या समत्व । जब कोई भी चीज किसी दुसरी  चीज से जुड़ कर समता पर आती हैं तो यही योग कहलाता हैं । सामान्य व्यक्ति भी ये बात जानता  हैं कि सही जोड़ के लिये सही मिलान के लिये दोनो को समतल यानि कि leval  होना कितना जरूरी हैं । अर्थात कर्म का काल से योग, जिससे उसका कोई अर्थ  निकले,  कर्मयोग हैं । तो अब बात कितनी सरल हो गयी की सही समय पर किया  गया कर्म धर्म और कुसमय किया गया कर्म अधर्म ।

वृक्ष और हम


बेटी के स्कूल मे एक बडा पेड़ काटा गया हैं जो संभवतह सूख गया था । पर मेरी पांच साल से कुछ बड़ी बेटी के लिये तो ये पहला ही अनुभव था । आज सुबह स्कूल छोड़ते समय वो बोली '' पापा आपको पता है हमारे स्कूल मे पेड़ काटा गया हैं , आज एक कटा फिर दूसरा कटेगा बाद मे सारे पेड़ कट जायेंगे और हमारा स्कूल नंगा हो जायेगा .... हा हा हा ! '' मैं स्तब्ध हो गया और उसकी शक्ल देखने के सिवा कुछ नही बोल सका !

Friday, November 18, 2011

शिव तांडव स्त्रोत्रम्

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थलॆ
गलॆवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनॊतु नः शिवः शिवम् ॥ 1 ॥

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी-
-विलॊलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावकॆ
किशॊरचन्द्रशॆखरॆ रतिः प्रतिक्षणं मम ॥ 2 ॥

Sunday, October 16, 2011

हिन्दी व्याकरण : वर्ण विचार , भाग ( दो )



वर्णों का वर्गीकरण

वर्णों के दो मुख्य भेद हैं – (1) स्वर और (2) व्यंजन ।

स्वर : उन वर्णों को कहते हैं, जिनका उच्चारण स्वतंत्रता से होता है और जो व्यंजनों के उच्चारण में सहायक होते हैं । अ इ उ आदि स्वर हैं । हिन्दी मे स्वरों की संख्या ग्यारह है – अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ ।

व्यंजन : वे वर्ण हैं, जिनके उच्चारण में स्वरों की सहायता आवश्यक होती है । स्वरों की सहायता लिये बिना व्यंजनों का उच्चारण सम्भव नही है । इनकी संख्या 33 हैं :

Sunday, October 9, 2011

हिन्दी व्याकरण : वर्ण विचार , भाग ( एक )



वर्ण विचार

        साधारणतः लोग ध्वनि , अक्षर और वर्ण का एक ही अर्थ ले लेते हैं । व्याकरण के अनुसार इनमे अर्थ भेद हैं ।

ध्वनि :- यह भाषा का लघुतम श्रव्य – खण्ड है । जैसे अ, ई । पर यह उच्चार्य – खण्ड हो ही यह आवश्यक नही । स्वर रहित व्यंजन प्रायः उच्चारित नही होते । श्रवणीयता ध्वनि का साधारण धर्म हैं ।

अक्षर :- यह भाषा का लघुतम उच्चार्य – खण्ड है । सभी स्वर , सभी स्वर-युक्त व्यंजन अक्षर हैं । जिस ध्वनि या ध्वनि-समूह का उच्चारण एक श्वासाघात में हो उसे अक्षर कहते हैं । जैसे : मा, मो, मू , अ आ । सभी स्वर ध्वनि और अक्षर दोनो हैं । सभी व्यंजन स्वतंत्र रूप से ध्वनि हैं , अक्षर नही क्योंकि वे स्वतंत्र रूप से उच्चार्य नही हैं । व्यंजन अक्षर तब बनता हैं जब उसके साथ स्वर जुड़ा रहता हैं । अक्षर में एक से अधिक ध्वनियाँ हो सकती हैं । एक ध्वनि का अक्षर केवल स्वर हो सकता हैं , व्यंजन नही ।

Friday, September 30, 2011

श्री सरस्वती स्तोत्रम्

या   कुन्देन्दुतुषारहारधवला    या    शुभ्रवस्त्रावृता ,
या   वीणावरदण्डमण्डितकरा  या  श्वेत  पद्मासना ।
या   ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः   सदा   वन्दिता ,
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥ 

हिन्दी व्याकरण


हिन्दी व्याकरण

हिन्दी संस्कृत की उतराधिकारिणी है । वर्णमाला , उच्चारण और लिपि देवनागरी , जो ब्राह्मी का विकसित रूप है , वही है जो संस्कृत का है ।
संस्कृत भाषा संयोगात्मक थी , पर हिन्दी वियोगात्मक हो गयी । संस्कृत के एक धातु से 6 ( प्रयोग ) 10 ( काल ) X 3 ( प्रसंग ) X 3 ( लिंग )  = 540 भिन्न रूप बनते हैं । हिन्दी क्रिया मे तीन काल ( वर्त्तमान , भूत , भविष्य ) तीन अर्थ ( निश्चय , आशा , सम्भावना ) तीन अवस्थाएँ ( सामान्य , पूर्ण , अपूर्ण ) तीन वाच्य ( कर्तृ , कर्म , भाव ) और तीन प्रयोग ( कर्तार , कर्मणि , भावे ) मिलते हैं ।

Wednesday, September 21, 2011

भूकम्प


18.09.2011 को सायं 6 बजकर 11 मिनट पर आये भूकम्प ने पुरे भारत को हिला कर रख दिया । सर्वाधिक प्रभावित हुआ सिक्किम जहाँ भूकम्प का केन्द्र था । हमने भी अपने साथियोँ और परिवार के साथ केन्द्र से साठ सत्तर किलोमीटर दूर भयानक झटकों को महसूस किया । ईश्वर की अनुकम्पा से हम सब सुरक्षित थे । मेरे एक मित्र ने मुझे बार बार एक तरह से जिद्द की की मैं इस अनुभव को कलमबध्द करूँ । मै मना करता गया और वो कहता गया । मै ये मानता हू कि मै अगर चाहूँ भी तो कविता नही लिख सकता जब तक कि कविता स्वयं आपके माध्यम से उतरना ना चाहे और माँ सरवस्वती कृपा ना करें । ये कविता खुद के अनुभव सिक्किम और देश के अन्य भागो के भुकम्प पीड़ितों के दर्द और कवि के नजरिये से बिनाश मे सृजन और सृजन मे विनाश की उतपत्ति हैं ।

Monday, September 19, 2011

हमारे दिल से आपके दिल तक


हमारे  दिल  से   आपके  दिल  तक

हमारे  दिल  से   आपके   दिल  तक ,
बात  निकली  है तो  जायेगी  दूर तक ,
ये ‘किरण’ जो चली है यहाँ से वहाँ तक ,
रौशनी कर देगी वहाँ , पहुँचेगी जहाँ तक ।
                                
                      हमारे  दिल  से   आपके   दिल  तक ,
                      एक  पुल  विचारोँ   का   किनारे  तक ,
                      फ़ासले  मिटा  देगा  दरमियाँ अभी तक ,
                     ‘किरण’ सृजन का , पहुँचेगा अम्बर तक ।

Wednesday, September 14, 2011

हमारी राजभाषा हिन्दी

हमारी राजभाषा हिन्दी

हिन्दी पखवाड़ा एक सितंबर से चौदह सितम्बर तक मनाया जाता हैं । चौदह सितम्बर हिन्दी दिवस के रूप मे सम्पूर्ण भारत मे मनाया जाता हैं । यही वो दिन है जब ईसवी सन 1949 को आधिकारिक रूप से हिन्दी को भारतीय सम्बिधान मे राज भाषा का स्थान दिया गया । इस दिन का महत्व इसी से समझा जा सकता हैं कि बिभिन्न प्रचलित भारतीय भाषाओं और आक्रांता शासकों की भाषा अरबी – फारसी के साझा समन्वय से उतपन्न जनसाधरण की सम्पर्क भाषा हिन्दी को राजभाषा यानी की प्रशासकीय भाषा बनने की गरिमा प्रदान की गयी । जनतंत्र के लिये एक जन सम्पर्क भाषा का राजभाषा के गरिमामय पद पर होने से शुभ भला और क्या हो सकता हैं । ये भारत के जनमानस की भावनाओं और उनकी आवाज की जीत की उदघोषणा का दिन हैं ।

Tuesday, September 13, 2011

राष्ट्र की भाषा

                                  --------- राष्ट्र की भाषा ----------

बहुत तकलीफ में है ,
हमारे राष्ट्र की भाषा ।
                                  
                                 नही कमजोर है फिर भी ,
                                 सहारा       चाहिये       ऐसा ।
                                 निकाले फाँस जो दिल के ,
                                  दबाये     बैठी  जो  भाषा   ॥

Monday, September 12, 2011

एकश्लोकि रामायणम्

आदौ रामतपोवनादिगमनं हत्वा मृगं कांचनं ,
वैदेहीहरणं  जटायुमरणं  सुग्रीवसम्भाषणाम् ।
बालीनिग्रहणं    समुद्रतरणं    लंकापुरीदाहनं ,
पश्चाद्रावणकुम्भकर्णहननमेतद्धि रामायणम् ॥

Thursday, September 1, 2011

श्री गणेशाय नमः

वक्र तुण्ड महाकाय सुर्य कोटि समप्रभ ।
निर्विघ्ने कुरुमे देवो सर्व कार्येषु सर्वदा ॥