Friday, September 14, 2018

भारत की राजभाषा हिन्दी भाग 8



भारत की राजभाषा हिन्दी भाग 8

एक भाषा के रूप में हिन्दी एक ससक्त प्रज्ञावान प्राणवान और वैज्ञानिक भाषा है ! किसी भी अन्य भाषा को बोलना कई बार तो फिर भी आसान होता है पर जब बात लिखने की आती है वो अक्सर दूरूह ही लगती है ! हिन्दी के साथ सबसे अच्छी बात ये है कि इसका व्याकरण और वर्णमाला ऐसी है कि जैसी बोली जाएगी वैसी ही लिखी जाएगी और जैसी लिखी जाएगी वैसे ही पढ़ी भी जाएगी !
जहाँ तक शब्द भंडार की बात हो तो वो भी काफी समृद्ध है और इस हिन्दी के शब्दकोश का भंडार संस्कृत और भारतवर्ष के सभी भाषाओं से भी परिपूरित होता रहता है ! किसी भी भाषा के शब्दों को आत्मसात कर अपना बना लेनी की गजब की समावेशी प्रवृति भी है ! भारत ही नही सम्पुर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे अधिक समझे जाने वाली भाषा भी हिन्दी है ! हिन्दी के साथ एक और भी बड़ी रोचक बात ये है कि भारत के बिभिन्न हिस्सों मे बोली जाने वाली समृद्ध भाषाओं के बोलने वाले जब हिन्दी को बोलते है तो हिन्दी उनके टोन मे इस तरह घुल मिल के निकलती है कि लगता है जैसे एक नयी हिन्दी का ही निर्माण हो गया है ! जब विभिन्न भाषाभाषी आपस मे अपने अपने टोन मे भी जब सम्पर्क भाषा के रूप मे हिन्दी का व्यवहार करते है तो अलग अलग टोन होने के बाद भी सभी उस हिन्दी को इतने अच्छी तरह समझ लेते है कि विचारों के विनिमय मे कोई समस्या नही आती ! ये हिन्दी भाषा की ताकत है ! शुद्धतावादियों को थोड़ी तकलीफ हो सकती है मगर उन्हे ये समझना चाहिए कि हिन्दी का सम्पूर्ण विकास ही इसी क्रम मे हुआ है !

Thursday, March 22, 2018

कविता मादे विमर्ष भाग 3



कविता मादे विमर्ष भाग 3
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पिछला भाग मे चर्च कयने रही जे कविता के तीन अंग होईछ :  रस , गुण , आ अलंकार ! रस कविताक आत्मा आ गुण कविताक शरीर अलंकार कविताक श्रृंगार अछि ! अलंकार सँ कविताक सौन्दर्य मे श्रीवृद्धि होई छै ! अलंकार कविताक बड़ा महत्वपूर्ण भाग थिक धरि अनिवार्य अन्ग नहि थिक ! खाली शरीर आ आत्मा सँ व्यक्ति के निर्माण भ जेतै धरि विना वस्त्र आभूषण के केहन लगतै से कल्पना केनाए कठिन नहि ! अहिना बिना अलंकारयुक्त कविता कविता त हेतै मुदा ओहि मे विभव आ श्री के अभाव भ जेतै !
कविता के लिखबा काल मे हम सब जाने अंजाने अलंकार के प्रयोग करैत रहै छी बिलकुल स्वाभाविक ढंग सँ ! परिभाषिक दृष्टि सँ भले अलंकार सँ अनभिज्ञ रही धरि अपन सामर्थ्य वा ज्ञानारूप अपन कविता के सजबय के अलंकृत करय के प्रयास हम सब करिते छी !

Wednesday, March 21, 2018

कविता मादे विमर्ष भाग 2



कविता मादे विमर्ष भाग 2
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कविता चुकि काव्य के एकटा प्रकार अछि तैँ काव्य के जे अनिवार्य तत्व थिक से कवितो मे उपस्थित रहैत अछि ! विमर्ष कविता मादे क रहल छी तैं काव्य के जगह कविता शब्द व्यवहार करब !

कविता के तीन अनिवार्य तत्व अछि यथा रस , गुण आ अलंकार !
रस के कविताक आत्मा कहल जाइछ , गुण भेल शिल्प शैली गठन अर्थात शरीर , आ अलंकार भेल कविताक श्रृंगार !

कविताक गुण धर्म अर्थात शिल्प शैली गठन आदि पर अक्सर बहस चलैत रहैत अछि ! दर-असल कविता के जे विभिन्न स्वरूप सोझाँ आबैत अछि ताहि पर बहुत किछु कहल जा चुकल छैक आ हमरा लगैया सर्वाधिक बहस आ विवादक केन्द्र मे इ विषय रहैत अछि ! पिछिला भाग मे अहि पर अपन विचार राखि चुकल छी ! हरेक कवि विद्वान के अहि विषय पर अपन एकटा राय छैन्ह तदनुरूप ओ अपना के अपन कविता मे अभिव्यक्त करैत रहैत छैथ ! कवि , कविता आ पाठक के अंतर्सम्बन्ध पर फराक सँ चर्चा कयल जा सकैछ !

Tuesday, March 20, 2018

कविता मादे विमर्ष



कविता मादे विमर्ष
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कविता ! बड आकर्षक शब्द थिक ! सम्भवतः हरेक नहियो मुदा अधिकांश के मोन मे कविता करबाक इच्छा रहैत अछि ! बच्चे सँ लोरी , राइम्स आदि सुनैत ओकर सांगितिक प्रभाव मोन पर पड़ैत अछि ! पद्य आसानी सँ यादि भ जाइत अछि तैँ कण्ठ मे जोगायब आसान अछि ! अपन सब के जतेक वेद, पुराण , उपनिषद , रामायण , महाभारत , कथा पिहानी आदि सब पद्ये मे अछि आ छल परम्परागत रूप सँ एक कण्ठ सँ दोसर होइत अतय तक के यात्रा पूर कएलक ! जहन लिख क जोगेबाक व्यवस्था भेल तकर बाद याद रखबाक परम्परा कम होइत गेल आ लेखन में नव नव विधाक आगमन भेल !