कविता
मादे विमर्ष भाग 2
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कविता
चुकि काव्य के एकटा प्रकार अछि तैँ काव्य के जे अनिवार्य तत्व थिक से कवितो मे
उपस्थित रहैत अछि ! विमर्ष कविता मादे क रहल छी तैं काव्य के जगह कविता शब्द
व्यवहार करब !
कविता
के तीन अनिवार्य तत्व अछि यथा रस , गुण आ अलंकार !
रस
के कविताक आत्मा कहल जाइछ , गुण भेल शिल्प शैली गठन अर्थात शरीर , आ अलंकार भेल कविताक
श्रृंगार !
कविताक
गुण धर्म अर्थात शिल्प शैली गठन आदि पर अक्सर बहस चलैत रहैत अछि ! दर-असल कविता के
जे विभिन्न स्वरूप सोझाँ आबैत अछि ताहि पर बहुत किछु कहल जा चुकल छैक आ हमरा लगैया
सर्वाधिक बहस आ विवादक केन्द्र मे इ विषय रहैत अछि ! पिछिला भाग मे अहि पर अपन
विचार राखि चुकल छी ! हरेक कवि विद्वान के अहि विषय पर अपन एकटा राय छैन्ह तदनुरूप
ओ अपना के अपन कविता मे अभिव्यक्त करैत रहैत छैथ ! कवि , कविता आ पाठक के
अंतर्सम्बन्ध पर फराक सँ चर्चा कयल जा सकैछ !
आब
अबै छी कविताक आत्मा अर्थात रस पर ! कविताक जे परम ध्येय अछि से अछि रस के आस्वादन
! कविता पढ़वा रचवा वा सुनबा के समय शरीर मे एकटा संवेदनाक स्फुरण होइछ आ विभिन्न
भाव सँ एकाकार होईत जे आनन्दक अनुभूति होईछ वैह आनन्द थिक रस !
कवि
लोकैन वा सामान्यो लोक जे भाव के गप करै छथि से वास्तव मे रस के गप क रहल होइत छथि
! सामान्यतः रस आ भाव ततेक गुत्थमगुत्था अछि जे सामान्यतः फराक क देखब सम्भव नहि भ
सकैछ !
चलू
अहि रसमय विमर्ष मे भाव पर गप करी पहिने !
व्यक्ति
के मोन वा हृदय मे रस के अभिव्यक्ति करबाक जे मूलभूत कारण अछि से अछि भाव ! भाव के
मोनक विकार सेहो कहि सकैछी ! सत्य कही त भाव मनुष्यक जन्मजात संस्कार वा अंतरात्माक
गुणधर्म थिक !
भाव
मन के स्तर सँ ल कय शरीर के स्तर आ वातावरण तक लक्षित होईछ आ अकर उल्टा सेहो !
भाव
के आर नीक सँ बुझय लेल अकर स्वरूप के बुझय पड़त ! भाव चारि प्रकारक होईछ आ फेर ओहि
प्रकारक उपभेद सब सेहो !
चारि
प्रकार अछि : 1 स्थायी भाव 2 विभाव 3 अनुभाव 4 संचारीभाव
क
: स्थायी भाव :
भावक
इ प्रकार हृदय मे स्थायी भाव स रहैत अछि ! शाश्वत भाव कहि सकै छी ! भाव के तीनो
अन्य प्रकार समेकित प्रयास के फलस्वरूप अही भाव के अभिव्यक्ति करैत अछि !
स्थायी
भावक संख्या 9 अछि ! नाम लेला पर लागत जे अहि सँ त अहाँ सबगोटे पूर्व परिचित छी !
1
रति 2 हास 3 शोक 4 क्रोध 5 उत्साह 6 भय 7 जुगुप्सा 8 विस्मय 9 निर्वेद वा शम !
ख
: विभाव :
इ
जे 9 प्रकारक स्थायी भाव अछि तकर जागृत करबाक कारण थिक विभाव ! इ रस के उत्पादक
थिक ! विभाव तीन प्रकारक होईछ अर्थात रस के उतपत्ति लेल अहि तीन के संयोग आवश्यक !
विज्ञान के छात्र होइ त अकर तुलना रासायनिक क्रिया सँ स सकै छी !
1
आलम्बन विभाव 2 आश्रय विभाव 3 उद्दीपन विभाव
आलम्बन
विभाव : बिना आधार के कोनहु घटना के कल्पना सम्भव नहि तहिना विना आधार के रसक
निष्पत्ति सम्भव नहि ! जकरा पर अवलम्बित वा आरोपित कए भाव उत्पन्न होईछ से थिक
आलम्बन विभाव ! मने जे मूल भेल जेना नायक – नायिका , प्रकृति , पेड़ पौधा !
केन्द्रिय तत्व !
आश्रय
विभाव : जकरा हृदय मे भाव उठैछ वा संचित हो ! पात्र बुझि लिय ! कवि , श्रोता ,
दर्शक , पाठक कियो भ सकैछ ! भाव संचित हेबाक जे आश्रय थिक से थिक आश्रय विभाव !
उद्दीपन
विभाव : कैटलिस्ट त बुझिते हैबै ! अर्थात जे स्थाई भाव के उद्दीप्त करय वा ओकर आस्वादक
योग्यता बढ़बै से थिक उद्दीपन विभाव ! जेना वातावरण , वसंत , चाँदनी , संगीत ,
एकांत आदि !
ग
: अनुभाव :
स्थाई
भाव अंतर मे रहैछ आ विभाव आंतरिक आ बाहरी कारण ! पहिनहे कहने रही जे भाव मन के
स्तर सँ शरीर के स्तर पर आबैछ आ तदंतर वातावरण तक सेहो जाइछ ! भाव के उतपत्ति के
कारण शरीर पर जे चेष्टा वा परिवर्तन उत्पन्न होइछ से थिक अनुभाव ! शारिरिक रूप मे
उत्पन्न होयबाक कारणे इ देखलो जा सकैछ आ अनुभव सेहो कैल जा सकैछ ! एक शब्द मे कही
त भावक शारिरिक अनुभव अछि अनुभाव ! अनुभाव चारि तरह सँ प्रकट होईछ :
1
कायिक : आंगिक चेष्टा
2
वाचिक : आवाज के माध्यमे
3
आहार्य : बनावटीपन आदि
4
सात्विक : जाहि पर अपन वश नहि हुए ! अकर आठ टा भेद अछि ! 1 स्तम्भ 2 स्वेद 3
रोमाञ्च 4 स्वरभंग 5 कम्प 6 वैवर्ण्य अर्थात रंग बदलब 7 अश्रु 8 प्रलय अर्थात
निश्चेष्ट वा अचेत होयब !
घ
: संचारी भाव :
वातावरण
तक प्रसार होमय वला भाव दर-असल अकर सम्बन्ध चित्तवृति सँ अछि ! इ भाव एक सँ दोसर
मे प्रवाहित भ सकैछ ! संक्रमणीय ! अकर संख्या 33 अछि ! इ संचारी भाव स्थाई भाव के
सहायक जेना काज करैछ ! विशेष वर्णन सँ आलेख बेश लम्बा भ जायत तैं खाली नाम द रहल
छी ! कने प्रयास सँ नामे सँ भाव स्पष्ट भ जायत
1
निर्वेद 2 ग्लानि 3 शंका 4 असूया 5 मद 6 श्रम 7 आलस्य 8 दैन्य 9 चिंता 10 मोह 11
स्मृति 12 धृति 13 व्रीड़ा 14 चपलता 15 हर्ष 16 आवेग 17 जड़ता 18 गर्व 19 विषाद 20
औस्तुक्य 21 निद्रा 22 अपस्मार 23 स्वप्न 24 विबोध 25 अमर्ष 26 अवहित्या 27 उग्रता
28 मति 29 व्याधि 30 उन्माद 31 वितर्क 33 मरण
चुकि
स्थायी भाव के संख्या 9 अछि तैँ रस के सेहो 9 भेद मानल जाईछ !
1
श्रृंगार 2 हास्य 3 करुण 4 रौद्र 5 वीर 6 भयानक 7 अद्भुत 8 विभत्स 9 शांत
अकरा
अलावे आधुनिक समय मे श्रृंगार के दू भाग क देल गेल 1 संयोग वा सम्भोग श्रृंगार 2
वियोग वा विप्रलम्भ श्रृंगार !
दू
टा आर जोड़ल गेल भक्तिकाल के कारण वात्सल्य आ भक्ति !
एवम
प्रकारे अखन के साहित्य मे 12 रसक प्रयोग भ रहले ! संयोग , वियोग , वात्सल्य आ भक्ति
मूलत: श्रृंगारे रस थिक तैं मूल रस 9 वे
कहल जाईछ !
रस
सँ लोक परिचित हेता से उम्मीद करै छी ! अधिक विवेचनाक आवश्यकता नहि बुझना जा रहल !
कविता
विमर्षक अहि भाग के अतहिये विराम देबाक अनुमति चाहब ! अगिला भाग में कविताक तेसर
भाग अलंकार पर चर्चा करबाक प्रयास करब !
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अश्विनी कुमार तिवारी ( 21/03/2018 )
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