Tuesday, March 20, 2018

कविता मादे विमर्ष



कविता मादे विमर्ष
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कविता ! बड आकर्षक शब्द थिक ! सम्भवतः हरेक नहियो मुदा अधिकांश के मोन मे कविता करबाक इच्छा रहैत अछि ! बच्चे सँ लोरी , राइम्स आदि सुनैत ओकर सांगितिक प्रभाव मोन पर पड़ैत अछि ! पद्य आसानी सँ यादि भ जाइत अछि तैँ कण्ठ मे जोगायब आसान अछि ! अपन सब के जतेक वेद, पुराण , उपनिषद , रामायण , महाभारत , कथा पिहानी आदि सब पद्ये मे अछि आ छल परम्परागत रूप सँ एक कण्ठ सँ दोसर होइत अतय तक के यात्रा पूर कएलक ! जहन लिख क जोगेबाक व्यवस्था भेल तकर बाद याद रखबाक परम्परा कम होइत गेल आ लेखन में नव नव विधाक आगमन भेल !

अपन भारतीय साहित्य मे अकरा काव्य कहल गेल ! काव्य के दू टा भेद दृश्य काव्य आ लिखित काव्य ! लिखित काव्य के तीन भेद भेल गद्य , पद्य आ चम्पू ! साधारण धारणा में लोक काव्य के मतलब पद्य बुझै छै मुदा अप्पन भाव के प्रकट करय के जतेक माध्यम छै तकरा समेकित रूप सँ काव्य कहल जाइछ !
बेशी इतिहास मे नहि जा पद्य पर आबै छी ! पद्य के मुख्यतः दू टा भेद अछि : प्रबन्ध आ मुक्तक !
प्रबन्ध के फेर दू भाग में बाँटल गेल : महाकाव्य आ खण्डकाव्य ! आब अबै छी मुक्तक पर ! प्रबन्ध सँ इतर जे भी रचना भेल से भेल मुक्तक ! मुक्तक प्रबन्ध संयोजना सँ मुक्त रहैत अछि ! अहि मे कोनो एक भाव वा विचार के प्राथमिकता रहैत अछि ! कविता सेहो अकर एकटा भाग थिक !

आब प्रश्न उठैत अछि जे कविता की थिक ! अहि पर लोकक मैतक्य नहि अछि ! आउ अकर जबाब तकबाक प्रयास करै छी ! कविता लेल पद संयोजना कैल जाइत अछि ! कविता एकहु पद के भ सकैछ वा अनेक पदक समूह स सेहो बनैत अछि ! पद के सम्बन्ध मे किछु शब्द सँ भेंट होइत अछि यथा छन्द , मात्रा , गति , यति , लय अकरा बाद रस , अलंकार , भाव आदि !

आब प्रश्न अछि जे की छन्द कविता थिक !
छन्द वस्तुत: मात्राक्रम आ शब्द संयोजना थिक जाहि स पद मे एकटा संस्कारितता आ एकरूपता आबैत अछि ! किछु विशेष शब्द संयोजना जे काव्य में बेशी सुलभ आ सर्वग्राह्य रहल तकरा मनीषी लोकनि नियमबद्ध क कय छन्द शास्त्र के रचना कयलन्हि ताकि कियो अकर अध्ययन कय पद के रचना क सकैत अछि ! छन्द वस्तुतः परमुटेशन कम्बिनेश थिक ! कविता छन्द युक्त यानी जे शास्त्रीय नियम छैक तदनुरूप वा छन्दमुक्त लिखल जा सकैछ ! छन्द कविता वा पदक संस्कार थिक ! संस्कार रहने कविता सुव्यवस्थित आ अनुशासित लागैछ ! नियम एक समय के बाद बन्धन सेहो लाग लागैत अछि तैं किछु कवि अपना के अहि घुटन सँ बचबय लेल छन्द के बन्धन सँ आजाद भ लिखनाइ शुरु कयलैन्हि आ मुक्त गगन में उन्मुक्त उड़ान के सम्भावना बनलै आर तेजी सँ छन्दमुक्त कविता वा पद संयोजना के शुरुआत भेल ! कहबाक मतलब जे छन्द संयोजना मात्र कविताक संस्कार अछि , कविता नहि !

कविता मे जे प्रवाह रहैत अछि तकरा गति कहल जाइछ ! यति ओ जगह भेल जतय कविता पढ़य काल साँस रुकैछ ! नीक गति संयोजना लेल विराम वा अल्पविराम के निधारण यति के व्यवस्था कयल जाइछ ! यति सँ पद के गति नियंत्रित होइत अछि ! एक्कहि मात्राक संयोजना मे यति बदलला सँ गति बदलि जाइछ आ गति बदलला सँ छन्द संयोजना आ छन्द सेहो बदलि जाइछ ! गति आ यति के कारणे प्रवाह मे एकटा पैटर्न जेकाँ निर्मित होइत छैक अकरे लय कहल जाइछ अहि सँ एकटा सांतत्य आ सांगितिकता के निर्माण होइछ ! अकरे कारण कविता कर्णप्रिय आ मनरञ्जन होईछ ! कविता छन्दमुक्त होय कि छन्दयुक्त से त सम्भव अछि मुदा कविता मे लय नै हुए से असम्भव अछि ! लय पद्य के गद्य सँ फराक करैछ ! कविता में लय नहि रहने कविता नहि होयत ! लय कविताक आवश्यक आ अनिवार्य अंग थिक मुदा लय कविता नहि थिक !

भाव सँ रस के उत्पत्ति होइछ संगहि रस के प्रभाव सँ सेहो भावक उत्पत्ति होईछ ! छन्द शास्त्र मे नव रस के चर्च अछि मुदा आब बारह टा रस स्वीकार क लेल गेल अछि ! कविता के शृंगार थिक अलंकार ! अलंकार आभूषण के कहल जाइछ ! पद के सुन्दर बनबय ले भाँति भाँति के अलंकार के प्रयोग कैल जाइछ ! अलंकार के प्रयोग सँ कविता मे चमत्कार के सृजन भ जाइछ ! जतेक नीक आ सुव्यवस्थित अलंकार के प्रयोग कविता पढ़य सुनय में नीक लागैछ ! सब सँ बेशी जाहि अलंकार के प्रयोग कैल जाइछ अछि से अछि अंत्यानुप्रास अर्थात तुक ! अलंकार मात्र कविताक शृंगार अछि अहि सँ कविताक शोभा बढ़ैछ मुदा अलंकार कविता नहि ! कविताक कारणे व्यक्ति में रस के संचार होइत अछि आ तदनुरूप ओकर प्रतिक्रिया सेहो ! रस कविताक प्रभाव थिक मुदा रस कविता नहि ! भाव त कविताक मन थिक जेहन भाव तेहन कविता मुदा सत्य त यैह जे भाव सेहो कविता नहि !

एकटा महत्वपूर्ण चीज थिक विचार ! काव्य दरअसल विचारक प्रकटीकरण थिक ! काव्यक कोनहु विधाक माध्यम सँ कवि वा लेखक किछु कह चाहैत अछि ! ओ कहब बहुत महत्वपूर्ण अछि ! त विचार एकतरहे कविताक प्राण थिक ! प्राण नै रहतै त कवितोक कोनो अस्तित्व नहि ! मुदा विचार कविता नहि थिक !

तहन प्रश्न त अखनो अनुत्तरिते बुझा रहल जे आखिर कविता की थिक ! उपर में कविताक लक्षण सभक चर्चा कयलहुँ जकर आलोक मे कविता चिन्हल जा सकैछ ! अगर कुल मिला क कही त “ कविता विचारक भावयुक्त लयात्मक प्रकटीकरण अछि जकर आस्वादन सँ रसक संचार होइत अछि आ विचार के संचरण एक स दोसर तक भ जाइछ !”  

बाकी विमर्ष त चालुए अछि जे आखिर कविता की थिक !

“ जतेक विद्वान ततेक परिभाषा ।
कविता करब कविक अभिलाषा ॥”  

------ अश्विनी कुमार तिवारी ( 20/03/2018 )

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