Saturday, January 14, 2017

उनीदी भोर





उनीदी भोर
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माथे पर उगता सा सूरज ,
कान्धे पर है रात विभोर ।
सपनों की प्राची से जगती ,
कैसी सुघड़ उनीदी भोर ॥

Sunday, January 1, 2017

नए वर्ष का आना जाना



नए  वर्ष  का आना  जाना


नए  वर्ष  का आना  जाना , कितने  हीं जज्बात  लिखे ।
अरमानों  के दीप  जलाकर , सपनो  की  सौगात  बुने ॥

जब आया था वही ललक थी , वही  पुलकती  थी काया ।
अंतरतम  के  दीप वही  थे , वही स्वप्न  सजती माया ॥
सुख दु:ख के ताने बाने सा , करघे का घर-घर नाद सुने ।
समय चक्र की बलिवेदी पर , अर्पित अतीत का राग गुने ॥