उनीदी भोर
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माथे पर उगता सा सूरज ,
कान्धे पर है रात विभोर ।
सपनों की प्राची से जगती ,
कैसी सुघड़ उनीदी भोर ॥
स्मितहास पाटल अधरों पर ,
वंकिमभृकुटी, चितवन कोर ।
कुंतलघन आनन यूँ भासित ,
उत्कंठित चन्दा लख चकोर ॥
हरित वसन, पहन वसुन्धरा ,
किलक उठी कलिका चहुँओर ।
मुदित सुधारस आनन छलका ,
पुलक उठा शिशु निश्छलकोर ॥
कुछ कथा अकथ की व्याकुल ,
अंतर मन पट को हिलकोर ।
उद्भासित करने से बची रही ,
स्वप्निल सी संयमित भोर ॥
------ अश्विनी कुमार तिवारी (
14/01/2017)
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