Sunday, January 1, 2017

नए वर्ष का आना जाना



नए  वर्ष  का आना  जाना


नए  वर्ष  का आना  जाना , कितने  हीं जज्बात  लिखे ।
अरमानों  के दीप  जलाकर , सपनो  की  सौगात  बुने ॥

जब आया था वही ललक थी , वही  पुलकती  थी काया ।
अंतरतम  के  दीप वही  थे , वही स्वप्न  सजती माया ॥
सुख दु:ख के ताने बाने सा , करघे का घर-घर नाद सुने ।
समय चक्र की बलिवेदी पर , अर्पित अतीत का राग गुने ॥

नए  वर्ष  का आना  जाना , कितने  हीं जज्बात  लिखे ।
अरमानों  के दीप  जलाकर , सपनो  की  सौगात  बुने ॥

पुन: एक  पृष्ठ  पलटा  है , पुन: जगा एक  स्वप्न नया ।
पुनः भविष्य  की  आशा  के , पुन:  सजा  संसार नया ॥
साँसों  के आने  जाने  का , अविरल  स्वर  संग्राम सुने ।
बहती धारा के कल-कल का , मधुर भविष्यत  गान गढ़ें ॥

नए  वर्ष  का आना  जाना , कितने  हीं जज्बात  लिखे ।
अरमानों  के दीप  जलाकर , सपनो  की  सौगात  बुने ॥

माना नही  समेटी जाती , सारे सपनो की  मोटरी - गठरी ।
माना  समय  शरों से  घायल , बिंद्ध मन  आकुल हिरणी ॥
किंतु आश को थामें जबतक , एक ज्योति भी किरण दिखे ।
नही बैठना थक कर  हमको , मझधारों  में पतवार  लिए ॥   

नए  वर्ष  का आना  जाना , कितने  हीं जज्बात  लिखे ।
अरमानों  के दीप  जलाकर , सपनो  की  सौगात  बुने ॥

---- अश्विनी कुमार तिवारी ( 01/01/2017 )

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