हमारी राजभाषा हिंदी भाग 6
आज एक प्रश्न पूछने की इच्छा हो रही हैं ! क्या
स्वक्षंदता से विकास सम्भव है ? हो सकता है कि कुछ व्यक्ति विशेष विकास कर
जाएँ पर वो उनका अत्म संयम हो सकता है आत्मानुशासन हो सकता है पर बहुसँख्यक का
क्या क्या ऐसी परिस्थिति अराजकता की ओर नही धकेल देती !
हमारी राजभाषा हिंदी भी कुछ इन्ही अराजक
परिस्थितियों से गुजर रही हैं ! भारत के जिस हिस्से में हिंदी प्रमुखता से बोली
जाती है वहाँ बस लोग हिंदी स्वभावत: बोलते है कोई पढ़ने या समझने की चेष्टा के बारे
में सोचता ही नही है ! यहां तक कि जिनकी रोजी रोटी व्यवसाय भी हिंदी से जुड़े है वो
भी हिंदी को गम्भीरता से लेना अपनी तौहीन समझते हैं ! हिंदी पट्टी के अन्तरगत बोली
जाने वाली बिभिन्न भाषाओं को बोलने वाले प्रबुद्ध वर्ग अपनी मातृभाषाओं के कम होते
व्यवहार या गिरते स्तर के लिए हिंदी को ही कहीं न कहीं जिम्मेदार मानने लगे हैं !
भारत के उन हिस्सों मे जहाँ हिंदी कम बोली और
समझी जाती है वहाँ अपनी मातृभाषाओं के प्रति कट्टरता और प्रेम या आग्रहयुक्त
मानसिकता या प्रेम जो भी कह लें अत्यधिक है ! उन्हे हिंदी की चर्चा से हीं
मातृभाषा खतरे में पड़ती नजर आती हैं !
जहाँ तक लिपि कि बात है कई भाषाओं ने अपनी भाषा
को सुगमता पुर्वक व्यक्त करने के लिए देवनागरी लिपि को अपनाया हैं उस भाषा विशेष
की लिपि को छोड़कर ! हिंदी ने भी अपने अभिव्यक्ति का माध्यम देवनागरी लिपि को बनाया
! देवनागरी लिपि का चयन भाषा विशेष के लिए किया जाना उस भाषा भाषी लोगों या उअनके
प्रतिनिधियों का निर्णय था ! विडम्बना ये है कि आज इस निर्णय के लिए भी कहीं न कहीं
हिंदी भाषा को हीं जिम्मेदार समझा जाता हैं !
भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे नयी और विकसित होती
हुई भाषा है हिंदी और देवनागरी सबसे नई और परिष्कृत लिपि ! लिपि विकास क्रम से देवनागरी का निर्माण हुआ और
फिर संस्कृत ने उसे अंगीकार कर लिया ! संस्कृत भी सर्वाधिक परिष्कृत भाषा बनी
किंतु उसके मूल में भी हमारी लोक भाषाएँ हीं रही है ! हिंदी के भी परिष्करण
सम्बर्धन और विकास के मूल में हमारी लोकभाषाएँ हीं हैं ! अगर हमारी लोकभाषाएँ नही
बचेंगी तो हिंदी भी नही बचेगी चिरंतन सत्य यही हैं !
हिंदी को सम्बिधान मे राज भाषा के रूप में
अंगीकार किया गया ! निश्चित रूप से राजभाषा अर्थात राज्य या देश या संघ जिस भाषा
में बात करेगा उसे बाकी भाषाओं से अधिक तरजीह अवश्य देगा स्वभाविक भी है ! पर
भारतीय सम्बिधान में भारत के बिभिन्न भाषाई क्षेत्रों को भी यथायोग्य तरजीह और
उअनके विकास सम्बर्धन और प्रचार प्रसार के प्रावधान नही किये गए है ऐसा तो नही हैं
! 22 भाषाएँ भारत में राष्ट्रभाषा का दर्जा रखती हैं हिंदी के साथ ! समय समय पर इस
संख्या के बढ़ने की सम्भावना के द्वार खुले हीं हैं ! मात्र भाषाओं को प्रश्रय देने
की नीति के कारण हीं सिंधी और नेपाली भी इनमे शामिल हैं जबकि आनुपातिक दृष्टि से
इनके उपयोग करने वाले की संख्या काफी कम हैं ! इतनी सुविधा के बाद भी हिंदी के
व्यवहार और उपयोग के प्रति लोगों का रवैया समझ से परे हैं !
कई बार ऐसा लगता हैं कि ये स्थिति बनाई जा रही
है ! हिंदी राजनितिक हथियार की तरह उपयोग की जा रही है शासन और सत्ता बनाए रखने के
लिए ! लोगों को डराया जा रहा योजना बद्ध रूप से कि हिंदी का व्यवहार और उपयोग
तुम्हारी मातृभाषाओं को खा जाएगा ! हिंदी का प्रयोग तुम्हे विश्व समाज से तुम्हारे
विकास और भविष्य को गर्त में डुबा देगा ! डर डर और डर ! एकमात्र हथियार हैं सत्ता
के राजनीति के !
सबसे कमाल तो अंग्रेजी को देख कर लगता है ! दो
लाइन गलत अंग्रेजी भी जो प्रभाव लोगो पर उत्पन्न करती हैं वो तो शायद हिंदी का
महाकाव्य भी ना दे सके ! आजादी के बाद काम हिंदी के विकास का होना था पर शायद सबसे
ज्यादे इंगलिश स्पीकिंग कोर्स के सेंटर खुले ! स्कूलों में खास कर पब्लिक /
कांवेंट स्कूलों में हिंदी बोल देने पर भी सजा दे दी जाती हैं ! बच्चों को फोर्स
किया जाता है कि स्कूल तो स्कूल वो घर में भी जा कर अंग्रेजी हीं बोलें ! जब ऐसी
विडम्बना पूर्ण स्थिति उत्पन्न होगी तो हिंदी तो दूर की बात है क्या आपकी अपनी
मातृभाषा जिसके लिए आप हिंदी को बाहर का रास्ता दिखाने से भी परहेज नही करते क्या
वो बचेगी ! हिंदी में अंग्रेजी शब्दों ने जगह बना ली है न केवल सामान्य प्रचलित स्वीकार्य अंग्रेजी शब्द वरन वो
शब्द भी हिंदी के साथ ठूस दिये जा रहे हैं जिनके लिए हिंदी मे अच्छे शब्द पहले से
हीं मौजूद हैं ! स्थिति तो ये बनती जा रही है कि शुद्ध हिंदी बोलिए तो लोग उसे
संस्कृत समझने लगते है ! जहाँ तक हमारी मातृभाषाओं का प्रश्न है वहाँ भी अंग्रेजी
ने खतरनाक स्तर तक घुसपैठ बनाई हैं ! अंग्रेजी शब्द बड़ी तेजी से हमारी मातृभाषाओं
के सुंदर शब्दों को स्थानांतरित ( रिप्लेस ) करते जा रहे है ! कभी गौर कर के
देखिये सोच कर के देखिये वास्तविका खतरा कहाँ से आ रहा है !
अगर हम हिंदी व्यवहार करते हैं तो हमारी
मातृभाषाएँ भी सुरक्षित है ! हिंदी का शब्दकोश या तो संस्कृत से समृद्ध होता है या
हमारी लोकभाषाओं से ! अगर हमारी मातृभाषा के उपयोग के समय हिंदी के शब्द शामिल भी
हो जाते है तब भी कोई फर्क नही पड़ता क्योंकि वे शब्द भी अंततः हमारी मातृभाषाओं के
ही है !
इंटरनेट के प्रसार, सिनेमा ,टेलीविजन, सरकार के प्रयास से हिंदी अब कमोबेश पूरे भारत
में समझी जाने लगी हैं यहाँ तक कि जो हिंदी बोल नही पाते वो भी कम से कम समझने तो
लगे हीं हैं !
भाषाओं की जितनी भी योग्यता अपने निजी विकास के लिए चाहिए अवश्य
ग्रहण करिए सीखिए ! अपनी मातृभाषा को उचित सम्मान अओत पहचान दिलाने के लिए जितना
प्रयास संघर्ष करना चाहते हैं अवश्य करें ! आपस मे जब भी सम्वाद करें पत्र व्यवहार
ई-मेल आदि भी अपनी मातृभाषाओं मे हीं करें ! घरों में तो अनिवार्यत: मातृभाषा हीं
व्यवहार करें !
जब बात भारत की हो सरकार के साथ सँवाद की हो ! बिभिन्न
भाषा भाषी क्षेत्रों से सँवाद की हो ! यथा सम्भव हिंदी में ही सँवाद करें ! अपने कार्यालयों
में काम करते समय अंग्रेजी के प्रयोग को हतोत्साहित करते हुए हिंदी का प्रयोग करें
! अंग्रेजी का प्रयोग बस राजभाषा के रूढ़ नियम जहां कि अंग्रेजी अनिवार्य है बस वहीं
तक करें ! जहाँ अंग्रेजी के बिना काम न चले वहाँ के अलावे हर जगह हिंदी को हीं तरजीह
दें !
हिंदी को भी अन्य भाषाओं की तरह थोड़ा अध्ययन अवश्य
करे ! हिंदी कठिन नही एक आसान सी आसानी से समझ मे आने वाली भाषा हैं !
इस हिंदी दिवस बस इतना हीं ! हिंदी भाषा के प्रयोग
और सम्मान में भारत का सम्मान निहित हैं ! राजभाषा हिंदी और हमारी मातृभाषाओं को खिचड़ी
भाषा बनने से बचाइये ! भाषा के सही और सम्यक उपयोग का संकल्प हीं हिंदी दिवस की पूर्णता
हैं !
प्रणाम !
---- अश्विनी कुमार तिवारी ( 14/09/2016 )
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