॥ रस निष्पत्ति ॥
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श्रृंगार :
चन्द्रमाँ आइ हुनक छ’विकेँ
देखाओंसि में ।
चमकि रहल छै कनी आर
राति पूनम में ॥
सितारा चुनर के देखि
लजा तरेगण सब ।
नुका रहल छै प्रिये ,
देखू राति पूनम में ॥1॥
हास्य :
औचक नजरि पड़ल कि
फानि उठलौं हम ।
बाट में जेना ससरैत
ब्याल देखलौं हम ॥
जल तरंग सन के हास मधुर
कान पड़ल ।
डोरिकेँ बुझि साँप फानि
कतेक कुदलौं हम ॥2॥
करुण :
डोका सनक छै ई आँखि
नोरायल सन के ।
की घर बार सखि आप्त
लोक यादि क’ के ॥
मौला रहल कुसुम जेना
कि तिक्ष्ण रौद सँ ।
टघरि रहल हो घृतक
धार पिघलि पिघलि के ॥3॥
वीर :
पित्ते लहरि सर्वांग
उठल स्वाँस गति तिव्र भेल ।
आगमन प्रियक बिलम्ब
अनुराग बढ़ि कोप भेल ॥
घुमा लेलनि मुख
सक्रोध लहरि विषाद रेख में ।
घनघोर केश राशि
ग्रसि चन्द्र जेना राहु लेल ॥4॥
रौद्र :
बिखरि गेल मुक्ता
हार फड़फड़ाय अधर उठल ।
वस्तु जात केर बिकट
उठापटक उथल पुथल ॥
सम्हारमें नहि
चन्द्रबदन वचन अग्निमित्र भेल ।
रौद्र कालिका केँ देखि
प्रेम महादेव सधल ॥5॥
भयानक :
काल कराल कपाल पर , बढ़ल
उद्वेग प्रेम पर ।
छिन्न भिन्न स्वप्न
के वितान खहरि बालु पर ॥
प्रेम केर इ
इन्द्रप्रस्थ कुरुक्षेत्र के मैदान बनल ।
चाँदनी जाय नुकाय बादरि
के पतनुकान पर ॥6॥
विभत्स :
उजडि गेल मोन के
लहास गिद्ध नोचि रहल ।
शोणितक धार में छटपटाय
प्राण सोचि रहल ॥
मन हताश निराश के
गह्वर गिरि कन्दरा में ।
हाय अही रूपकेँ
संगोर लेल की की नै कयल ॥7॥
अद्भुत :
औचक सुगन्ध नासिका
में मोगराक पुष्प के ।
लागल जेना बरसि रहल
फुहार शीत पानि के ॥
चेहाय क भेल नीन्द
भंग बिकट स्वप्न सँ ।
सुरभि चाँदनी बदनके पसरि
संग सहटि के ॥8॥
शांत :
शांत मन आ शांत
चित्त शमन हृदय दग्ध के ।
अच्युतानान्द
प्राप्त प्रिये चिन्मय अटूट प्रेम के ॥
बरसैत रहल साओनफुहार
झिमिरझिमिर रातिभरि ।
आकाश कुसुम बिहुसि
उठल आई हृदयाकाश के ॥9॥
रसोद्रेक :
यथार्थ स्वप्न केर
मिलन बिमल अनुराग मे ।
कथा व्यथाक भाव भूमि
प्रदीप्त रसानुराग मे ॥
भनहि ‘अश्विनी’ कवि,
प्रियानुराग में बिभोर ।
नवो रसक भोग भेल ,
आठ प्रहर राति मे ॥10॥
------ अश्विनी
कुमार तिवारी ( 14/07/2016 )
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