Thursday, July 14, 2016

॥ रस निष्पत्ति ॥



॥ रस निष्पत्ति ॥
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श्रृंगार :

चन्द्रमाँ आइ हुनक छ’विकेँ देखाओंसि में ।
चमकि रहल छै कनी आर राति पूनम में ॥
सितारा चुनर के देखि लजा तरेगण सब ।
नुका रहल छै प्रिये , देखू राति पूनम में ॥1॥


हास्य :

औचक नजरि पड़ल कि फानि उठलौं हम ।
बाट में जेना ससरैत ब्याल देखलौं हम ॥
जल तरंग सन के हास मधुर कान पड़ल ।
डोरिकेँ बुझि साँप फानि कतेक कुदलौं हम ॥2॥

करुण :

डोका सनक छै ई आँखि नोरायल सन के ।
की घर बार सखि आप्त लोक यादि क’ के ॥
मौला रहल कुसुम जेना कि तिक्ष्ण रौद सँ ।
टघरि रहल हो घृतक धार पिघलि पिघलि के ॥3॥

वीर :

पित्ते लहरि सर्वांग उठल स्वाँस गति तिव्र भेल ।
आगमन प्रियक बिलम्ब अनुराग बढ़ि कोप भेल ॥
घुमा लेलनि मुख सक्रोध लहरि विषाद रेख में ।
घनघोर केश राशि ग्रसि चन्द्र जेना राहु लेल ॥4॥

रौद्र :

बिखरि गेल मुक्ता हार फड़फड़ाय अधर उठल ।
वस्तु जात केर बिकट उठापटक उथल पुथल ॥
सम्हारमें नहि चन्द्रबदन वचन अग्निमित्र भेल ।
रौद्र कालिका केँ देखि प्रेम महादेव सधल ॥5॥

भयानक :

काल कराल कपाल पर , बढ़ल उद्वेग प्रेम पर ।
छिन्न भिन्न स्वप्न के वितान खहरि बालु पर ॥
प्रेम केर इ इन्द्रप्रस्थ कुरुक्षेत्र के मैदान बनल ।
चाँदनी जाय नुकाय बादरि के पतनुकान पर ॥6॥

विभत्स :

उजडि गेल मोन के लहास गिद्ध नोचि रहल ।
शोणितक धार में छटपटाय प्राण सोचि रहल ॥
मन हताश निराश के गह्वर गिरि कन्दरा में ।
हाय अही रूपकेँ संगोर लेल की की नै कयल ॥7॥

अद्भुत :

औचक सुगन्ध नासिका में मोगराक पुष्प के ।
लागल जेना बरसि रहल फुहार शीत पानि के ॥
चेहाय क भेल नीन्द भंग बिकट स्वप्न सँ ।
सुरभि चाँदनी बदनके पसरि संग सहटि के ॥8॥

शांत :

शांत मन आ शांत चित्त शमन हृदय दग्ध के ।
अच्युतानान्द प्राप्त प्रिये चिन्मय अटूट प्रेम के ॥
बरसैत रहल साओनफुहार झिमिरझिमिर रातिभरि ।
आकाश कुसुम बिहुसि उठल आई हृदयाकाश के ॥9॥

रसोद्रेक :

यथार्थ स्वप्न केर मिलन बिमल अनुराग मे ।
कथा व्यथाक भाव भूमि प्रदीप्त रसानुराग मे ॥
भनहि ‘अश्विनी’ कवि, प्रियानुराग में बिभोर ।
नवो रसक भोग भेल , आठ प्रहर राति मे ॥10॥

  
------ अश्विनी कुमार तिवारी ( 14/07/2016 )

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