Friday, September 21, 2012

गुजारिश



       गुजारिश

हमारी  आदतें  पहले   बिगाड़ते   क्यूं  हो ,
अपनी  जड़ों  से   हमें   उखाड़ते  क्यूं  हो ,
चढ़ा  कर  पेड़  पर  ऊचें  सनम  जी  क्यूं,
सीढ़ी  सब्सीडी  की  हटाते  भला  क्यूं  हो ?

गाड़ियां  सस्ती  हुई  जाती  है दिन पर दिन ,
तेलों  के  दाम  इतने  बढ़ाते  जाते  क्यूं हो ,
बनाओ  बड़े  मॉल  हमे न  शिकवा शिकायत ,
पर  ठेले  चाय  सब्जी के  यूँ हटाते क्यूं हो ?

Friday, September 14, 2012

हमारी राजभाषा हिन्दी भाग 2


हमारी राजभाषा हिन्दी
सम्विधान का अनुच्छेद 343(1) बड़े ही गरिमा से उद्घोष करता है , “ संघ की राजभाषा हिन्दी और उसकी लिपि देवनागरी होगी । संघ के प्रयोजनो के लिये प्रयोग होने वाले अंको का रूप भारतीय अंको का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा । “
आज इस घटना के करीब 62 साल बीत गये पर आज भी हमारी संघ की राजभाषा ‘हिन्दी’ ,  ‘अनुच्छेद 343(2)’ , ‘राजभाषा अधिनियम 1963 ,  यथा संशोधित 1967 , की धारा 3(3)’ के बनाये चक्रव्युह से अभी भी निकल नही पाई हैं । निकट भविष्य में भी इस घुटन से निकल पायेगी ऐसी सम्भावना दूर दूर तक दिखाई नही पड़ती हैं । हमारे नीति निर्धारकों ने हिन्दी को चक्रव्युह में घुसा तो दिया बड़ी आसानी से पर इस तिलस्म से निकलने का जो रास्ता बना रखा है वो 62 साल बाद भी सपने जैसा ही हैं ।