Friday, September 21, 2012

गुजारिश



       गुजारिश

हमारी  आदतें  पहले   बिगाड़ते   क्यूं  हो ,
अपनी  जड़ों  से   हमें   उखाड़ते  क्यूं  हो ,
चढ़ा  कर  पेड़  पर  ऊचें  सनम  जी  क्यूं,
सीढ़ी  सब्सीडी  की  हटाते  भला  क्यूं  हो ?

गाड़ियां  सस्ती  हुई  जाती  है दिन पर दिन ,
तेलों  के  दाम  इतने  बढ़ाते  जाते  क्यूं हो ,
बनाओ  बड़े  मॉल  हमे न  शिकवा शिकायत ,
पर  ठेले  चाय  सब्जी के  यूँ हटाते क्यूं हो ?

मिटा न सके भेद गरीबी अमीरी का अब तक ,
दबे कुचले गरीबों को  फिर यूँ मिटाते क्यूं हो ,
कहलाते  हो  बड़े  शान   से  राजा  जिनके ,
उसी प्रजा  को  यूँ   इतना  सताते  क्यूं हो ?

धार्मिक  देश  को  धर्मनिरपेक्ष  क्या बनाया ,
राजनीति  का  धर्म  उठाकर  किनारे लगाया ,
जब  लोगों  का  शोषण  करना ही ध्येय था ,
लोकतंत्र  का  फिर  मजाक  बनाते  क्यूं हो ?

हम  हैं  ही  वेवकूफ   तुम्हें  पता तो है  ही ,
फिर  बार   बार  बेवकूफ  बनाते   क्यूं  हो ,
तुम  रहो  मौज  मे  पर हमे जीने दो  वरना ,
फिर  ना  कहना  भाई  हमे यूँ हटाते क्यूं हो ?

साँपनाथ  को  हटाया  नागनाथ   जाएंगे ,
हमारी  विवशता  को  क्यों  समझते   न हो ,
में   हमारे  हाल   पर  ऐसे  ही   छोड़ दो ,
पूरे न हो वो सपने यूँ  दिखाते भला  क्यूं हो ?

हमे  तो  रोटी  दाल  से  ही  कहाँ  फुरसत ,
समझ न आये  ऐसी कविता सुनाते क्यूं हो ,
जो  जाग  गये   हम  भुचाल  आ जाएगा ,
फिर तुम ही  कहोगे इतना बहकते क्यूं हो ?

  .......... अश्विनी कुमार तिवारी (21/09/2012)

2 comments:

  1. उम्दा हो रहा है फिर से ! मजे आ गये।

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