गुजारिश
हमारी आदतें पहले बिगाड़ते क्यूं हो ,
अपनी जड़ों से हमें उखाड़ते क्यूं हो ,
चढ़ा कर पेड़ पर ऊचें सनम जी क्यूं,
सीढ़ी सब्सीडी की हटाते भला क्यूं हो ?
अपनी जड़ों से हमें उखाड़ते क्यूं हो ,
चढ़ा कर पेड़ पर ऊचें सनम जी क्यूं,
सीढ़ी सब्सीडी की हटाते भला क्यूं हो ?
गाड़ियां सस्ती हुई जाती है दिन पर दिन ,
तेलों के दाम इतने बढ़ाते जाते क्यूं हो ,
बनाओ बड़े मॉल हमे न शिकवा शिकायत ,
पर ठेले चाय सब्जी के यूँ हटाते क्यूं हो ?
मिटा न सके भेद गरीबी अमीरी का अब तक ,
दबे कुचले गरीबों को फिर यूँ मिटाते क्यूं हो ,
कहलाते हो बड़े शान से राजा जिनके ,
उसी प्रजा को यूँ इतना सताते क्यूं हो ?
धार्मिक देश को धर्मनिरपेक्ष क्या बनाया ,
राजनीति का धर्म उठाकर किनारे लगाया ,
जब लोगों का शोषण करना ही ध्येय था ,
लोकतंत्र का फिर मजाक बनाते क्यूं हो ?
हम हैं ही वेवकूफ तुम्हें पता तो है ही ,
फिर बार बार बेवकूफ बनाते क्यूं हो ,
तुम रहो मौज मे पर हमे जीने दो वरना ,
फिर ना कहना भाई हमे यूँ हटाते क्यूं हो ?
साँपनाथ को हटाया नागनाथ आ जाएंगे ,
हमारी विवशता को क्यों समझते न हो ,
हमें हमारे हाल पर ऐसे ही छोड़ दो ,
पूरे न हो वो सपने यूँ दिखाते भला क्यूं हो ?
हमे तो रोटी दाल से ही कहाँ फुरसत ,
समझ न आये ऐसी कविता सुनाते क्यूं हो ,
जो जाग गये हम भुचाल आ जाएगा ,
फिर तुम ही कहोगे इतना बहकते क्यूं हो ?
.......... अश्विनी कुमार तिवारी (21/09/2012)
Bahut Acche!
ReplyDeleteउम्दा हो रहा है फिर से ! मजे आ गये।
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