Monday, September 14, 2015

हमारी राजभाषा हिन्दी भाग 5


हमारी राजभाषा हिन्दी भाग 5

 

            भारत एक बहुआयामी, बहुभाषी , धार्मिक , भौगौलिक , संस्कारों, परम्पराओं और जैव बिबिधता से समृद्ध देश हैं । इस देश की सांस्कृतिक और साझी विरासत ने हरेक विपरीत और कठिन परिस्थितियों में भी इसे भारत के रूप में बनाए रक्खा हैं ।
 
जहाँ तक भाषा का प्रश्न हैं पूरे भारत में इतनी भाषाएँ उपभाषाएँ और बोलियाँ और उनकी स्वतंत्र लिपियाँ हैं कि सम्भवत: किसी एक जगह उनका सही रिकार्ड भी मिलना मात्र सन्योग ही होगा । यहाँ तो भाषा कि स्थिति और चलन ऐसी हैं कि जाति उपजाति धर्म स्त्री पुरूष गाँव शहर में भी एक जैसी नही बोली जाती । ऐसा सिर्फ हिंदी के साथ हीं हैं ऐसा नही ये स्थिति भारत की प्रत्येक भाषा के साथ हैं  इसी कारण तो एक बहुत प्रसिद्ध कहावत हैं कि  “ पाँच कोस पर वाणी बदले दस कोस पर पानी “ । भाषा पर जब भी बात करे इस तथ्य से मुँह मोड़ना भारत को नही समझने जैसा हैं ।

             भारत की अधिकांस भाषाए खुद के संस्कृत जैसी भाषा जिसे भारत की हर भाषा की जननी कहा जाता हैं से भी प्राचीन होने का दावा करती हैं । दरअसल संस्कृत का जन्म उस समय की भाषाओं के व्याकरण के नियमों में बाँध कर सुव्यवस्थित रूप देने से हुआ था । अतः भारत की कई भाषाएँ निसंदेह लिपि और भाषा के मामले में संस्कृत से पुरानी हैं । चुकि हर भाषा ने संस्कृत के व्याकरण के नियमों को निसंकोच अपनाया और संस्कृत के प्रभाव से प्रभावित और समृद्ध भी हुई इस लिये संस्कृत द्वारा हर भाषा को नवजीवन देने के कारण भाषाओं की जननी का सम्मान दिया जाता हैं । भारत को व्यापक और सम्यक रूप से समझने के लिये संस्कृत भाषा को जानना समझना अनिवार्य जैसा हैं ।
 

            समय के साथ संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं का सम्पर्क भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर की भाषाओं के साथ आपस मे मिलने से कई और नई भाषाओं सम्पर्क भाषाओं का प्रादुर्भाव हुआ । इन सभी भाषाओं में हिंदी भाषा हीं काफी ससक्त रूप से विस्तारित हुई । संस्कृत का आधार और मुख्य महत्वपूर्ण भाषाओं की निकटता ने इसे लोकप्रिय समृद्ध और सफल बनाया । हिंदी की खासियत ने इसे पूरे भारत की बिभिन्न बिबिधताओं के वावजूद सम्पर्क भाषा के रूप में विकसित किया । जब भारत का स्वतंत्रता संग्राम जन आंदोलन बना तो हिंदी हीं मुखर प्रतिरोध की भाषा बनी । भारत की सभी भाषाओं की साझी विरासत से उपजी भाषा हैं हिंदी और भारत की राज भाषा होने के सबसे उपयुक्त भी और इसी कारण ये भारत की राजभाषा बनी भी ।
 
             जबतक पुरे भारत का दुख एक था तबतक तो समस्या नही आई किंतु आजादी के बाद जब नयी राजनीति ने पैर पसारने शुरू किये तो उसने दो सिद्धांत अपने पुरवर्ती शासक अंग्रेजों से विरासत में लिये एक तो फूट डालो और राज करो की नीति और दुसरी राजकीय कार्यों के लिये अंग्रेजी भाषा का व्यवहार । बाकी तो बस नए भारत का इतिहास हैं और हम आज हैं ।
 

              हिंदी देश में सर्वाधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा भले हो पर शायद इसका अध्ययन सबसे कम किया जाता हैं । लेखकों की मातृभाषायें तो उनकी रगों में बहती हैं अतः उसमे गलतियों कि सम्भावनाएँ अपेक्षाकृत कम हैं और पेट की आग बुद्धिजीवी का खिताब  और मुख्य  वैश्विक सम्पर्क भाषा होने के कारण अंग्रेजी को तो लोग घिस घिस कर यहाँ तक की शब्दकोश का सहारा ले ले कर भी यथा सम्भव शुद्ध करने के प्रयास करते हीं रहते हैं । हिंदी में सब चलता हैं का सामान्य दृष्टिकोण  उसके लेखन में हुई गलतियों को नजरांदाज कर जाने की बड़ी सुविधा देता हैं । वैसे भी हिंदी काम काज के लिये नही वरन काम चलाने के काम ज्यादे आती हैं ।
 
              हिंदी भाषा में नये शब्दों के समायोजन की अपार सम्भावनाएं हैं । बिभिन्न भाषाओं के लेखक अपनी भाषा के शब्द शामिल कर हिंदी को समृद्ध और स्वीकार्य हीं बनाते हैं । वैसे भी भारत के हर भाषा में बोले जाने वाले शब्द आंशिक परिवर्तनों के साथ कमोवेश एक हीं होते हैं । हिंदी के अलावे प्रायः सभी भारतीय भाषाओं में लिंग निर्धारण की पद्धति समान हैं  ये एक ऐसी भाषा बिभिन्नता हैं जिस कारण अक्सर हिंदी लेखन में लिंग सम्बंधी त्रुटियाँ मिल जाती हैं अगर तनिक प्रयास किया जाय तो इसे आसानी से समझा और दूर किया जा सकता हैं ।
 
              राज भाषा के रूप में तो हिंदी की अलग हीं आरोपित समस्याए हैं । सम्विधान में राज भाषा का दर्जा अंग्रेजी के साथ बाँटने को विवस तो हैं हीं उपर से सरकार और सरकारी कार्यों मे मात्र अनुवाद की भाषा बन कर रह गई हैं । जो हिंदी भारत का सामान्य नागरिक बोलता जानता और समझता हैं उसका तो जैसे अंश मात्र भी नजर नही आता । जो साहित्य भारत मे हिंदी भाषा में लिखा जाता हैं उसके बड़े बड़े विद्वान भी सरकारी हिंदी के सामने पनाह माँगते नजर आते हैं । प्रायः हम सब अपने रोजमर्रा के काम समस्याएँ खुशी गम यहाँ तक की तकनीकी बातेँ भी आसानी से हिंदी में बता और समझा लेते हैं पर जो हिंदी सरकारी तंत्र में राज भाषा के नाम से लिखी जाती हैं उस हिंदी में उन्ही बातों को कह और समझा पाना असम्भव जैसा लगता हैं । आज के कम्प्युटर युग में कट कॉपी पेस्ट के रूप में एक ऐसा हथियार मिल गया हैं जिससे काम आसानी से हो जाता हैं बिना श्रम और दिमाग खर्चा किये और तो और अंग्रेजी भाषा के हिज्जे और व्याकरण भी साथ ही साथ ठीक करने की सुविधा प्रदान करता हैं मतलब कि काम भर की अंग्रेजी लिखने हेतु तो मानो कोई परिश्रम हीं नही बचा । सरकारी कामकाज में हिंदी के व्यवहारिक व्यवहार की ये आघुनिक समस्या हैं । जबतक जन सामान्य साहित्य और राजकाज की हिंदी की निकटता नही बढ़ेगी तबतक सम्विधान में प्रावधान कर अंग्रेजी को चलाए रखने के अलावा कोई और विकल्प फिलहाल तो नही दिखता हैं ।

 

 ---------------  अश्विनी कुमार तिवारी ( 14/09/2015 )  

 

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