Sunday, October 25, 2015

अष्टपदी : श्रृंगावली



अष्टपदी : श्रृंगावली  

मुखहास
-------------

मुखहास दबौने  खन खन खनकल चूड़ी हाथमे,
खुलल लट बिन्दी सेनुर चमकय धन्या भालमे ।
नहि सोचल अंजाने कयलक परिहास अंचोकमे ,
श्यामक बंशी बाजय लागल राधारानीकेँ नेहमे ॥

नेह विकास
---------------

बरबसहि सुरेखल नयन श्याम अभिराम  छहोचित,
अछि मुस्की रक्तिम ठोर कपोल लाली अनुरञ्चित ।
विकसित नेह कुमुदनी जे दरसल राधा छवि लाली,
जिमि विकसित अरविन्द निरखिके सुरुजक लाली ॥

प्रणय निवेदन
-----------------

कयल निवेदन प्रणय श्याम सुभग अभिसारक प्रीती,
भेजल दूत संकेतल जे हिय प्रिय अभिसारक रीती ।
निशिनाथ शशांक तिरोहित होइते श्याम लग औती,
भेजि पठावल लिखि कज्जल सन्देसहि निज दूती ॥
अभिसार
-------------

चललि निकसि निज भवन घोर अन्हरिया राती,
जीव जंतु चर अचर सुतल मधु सपना सुखराती ।
मनहि श्याम धरि बारि हिय नेह इजोत विश्वासी,
छथि चललि निमाहय राधा प्रिय अभिसारक रीती ॥

मानिनि मान
----------------

जाय पेखल स्थान संकेतल नहि श्याम अनुरागी,
भाँति भाँति शंकुल मन के रधिका कोना बुझाबी ।
बढ़लन्हि क्रोध सरोष तरंगित तन मन अभिमानी,
क्रोधहि थर थर कँपइत ठानल मन मानहि मानी ॥

अनुताप
-----------

उद्वेगल मन लगलन्हि अपना अपने करय हिनताई,
लागि पड़ैया कान्हा के कियो फाँसि कयल चतुराई ।
कान्हो लुभा बिसरि गेला हमरा अयोग्य क जानी,
हमर प्रेम अछि डाहि रहल हमरा ठुकरायल मानी ॥

उत्साह
------------

भेल उनीदल नयन झपायल आधसुतल अधजागल,
धयने भरि पाँज निरखलैन्हि मुख औचक श्यामल ।
जानि कतय सब मान उद्वेग आ अनुताप बिलायल,
पावि श्याम निज संग हुलसित राधा प्रिय मानल ॥

संजोग
-----------

राधा नहि राधा रहल नै कान्हा रहि गेलथि कान्हा,
अपुर्व मिलन संयोगहि स्वयं कृष्ण काम बनि गेला ।
हरखि पुलकि बरसति रहल नेहक अभरल परिणाम
एक दोसरा के आँखिये उगला संकोचित दिनमान ॥

------  अश्विनी कुमार तिवारी ( 25/10/2015 )

No comments:

Post a Comment