अष्टपदी : श्रृंगावली
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मुखहास दबौने खन खन खनकल चूड़ी हाथमे,
खुलल लट बिन्दी सेनुर चमकय धन्या भालमे ।
नहि सोचल अंजाने कयलक परिहास अंचोकमे ,
श्यामक बंशी बाजय लागल राधारानीकेँ नेहमे ॥
नेह विकास
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बरबसहि सुरेखल नयन श्याम अभिराम छहोचित,
अछि मुस्की रक्तिम ठोर कपोल लाली अनुरञ्चित ।
विकसित नेह कुमुदनी जे दरसल राधा छवि लाली,
जिमि विकसित अरविन्द निरखिके सुरुजक लाली ॥
प्रणय निवेदन
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कयल निवेदन प्रणय श्याम सुभग अभिसारक प्रीती,
भेजल दूत संकेतल जे हिय प्रिय अभिसारक रीती ।
निशिनाथ शशांक तिरोहित होइते श्याम लग औती,
भेजि पठावल लिखि कज्जल सन्देसहि निज दूती ॥
अभिसार
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चललि निकसि निज भवन घोर अन्हरिया राती,
जीव जंतु चर अचर सुतल मधु सपना सुखराती ।
मनहि श्याम धरि बारि हिय नेह इजोत विश्वासी,
छथि चललि निमाहय राधा प्रिय अभिसारक रीती ॥
मानिनि मान
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जाय पेखल स्थान संकेतल नहि श्याम अनुरागी,
भाँति भाँति शंकुल मन के रधिका कोना बुझाबी ।
बढ़लन्हि क्रोध सरोष तरंगित तन मन अभिमानी,
क्रोधहि थर थर कँपइत ठानल मन मानहि मानी ॥
अनुताप
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उद्वेगल मन लगलन्हि अपना अपने करय हिनताई,
लागि पड़ैया कान्हा के कियो फाँसि कयल चतुराई ।
कान्हो लुभा बिसरि गेला हमरा अयोग्य क जानी,
हमर प्रेम अछि डाहि रहल हमरा ठुकरायल मानी ॥
उत्साह
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भेल उनीदल नयन झपायल आधसुतल अधजागल,
धयने भरि पाँज निरखलैन्हि मुख औचक श्यामल ।
जानि कतय सब मान उद्वेग आ अनुताप बिलायल,
पावि श्याम निज संग हुलसित राधा प्रिय मानल ॥
संजोग
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राधा नहि राधा रहल नै कान्हा रहि गेलथि कान्हा,
अपुर्व मिलन संयोगहि स्वयं कृष्ण काम बनि गेला ।
हरखि पुलकि बरसति रहल नेहक अभरल परिणाम
एक दोसरा के आँखिये उगला संकोचित दिनमान ॥
------ अश्विनी कुमार तिवारी ( 25/10/2015 )
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