कविता
मादे विमर्ष भाग 3
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पिछला
भाग मे चर्च कयने रही जे कविता के तीन अंग होईछ :
रस , गुण , आ अलंकार ! रस कविताक आत्मा आ गुण कविताक शरीर अलंकार कविताक
श्रृंगार अछि ! अलंकार सँ कविताक सौन्दर्य मे श्रीवृद्धि होई छै ! अलंकार कविताक
बड़ा महत्वपूर्ण भाग थिक धरि अनिवार्य अन्ग नहि थिक ! खाली शरीर आ आत्मा सँ व्यक्ति
के निर्माण भ जेतै धरि विना वस्त्र आभूषण के केहन लगतै से कल्पना केनाए कठिन नहि !
अहिना बिना अलंकारयुक्त कविता कविता त हेतै मुदा ओहि मे विभव आ श्री के अभाव भ
जेतै !
कविता
के लिखबा काल मे हम सब जाने अंजाने अलंकार के प्रयोग करैत रहै छी बिलकुल स्वाभाविक
ढंग सँ ! परिभाषिक दृष्टि सँ भले अलंकार सँ अनभिज्ञ रही धरि अपन सामर्थ्य वा
ज्ञानारूप अपन कविता के सजबय के अलंकृत करय के प्रयास हम सब करिते छी !