कविता
मादे विमर्ष भाग 3
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पिछला
भाग मे चर्च कयने रही जे कविता के तीन अंग होईछ :
रस , गुण , आ अलंकार ! रस कविताक आत्मा आ गुण कविताक शरीर अलंकार कविताक
श्रृंगार अछि ! अलंकार सँ कविताक सौन्दर्य मे श्रीवृद्धि होई छै ! अलंकार कविताक
बड़ा महत्वपूर्ण भाग थिक धरि अनिवार्य अन्ग नहि थिक ! खाली शरीर आ आत्मा सँ व्यक्ति
के निर्माण भ जेतै धरि विना वस्त्र आभूषण के केहन लगतै से कल्पना केनाए कठिन नहि !
अहिना बिना अलंकारयुक्त कविता कविता त हेतै मुदा ओहि मे विभव आ श्री के अभाव भ
जेतै !
कविता
के लिखबा काल मे हम सब जाने अंजाने अलंकार के प्रयोग करैत रहै छी बिलकुल स्वाभाविक
ढंग सँ ! परिभाषिक दृष्टि सँ भले अलंकार सँ अनभिज्ञ रही धरि अपन सामर्थ्य वा
ज्ञानारूप अपन कविता के सजबय के अलंकृत करय के प्रयास हम सब करिते छी !
आउ
तहन कविता के अहि भागक विमर्ष मे अलंकार पर चर्च करी !
अलंकार
तीन प्रकारक होईत अछि 1 शब्दालंकार 2 अर्थालंकार आ 3 उभयालंकार !
नामे
सँ स्पष्ट अछि जे जखन शब्द के लालित्य सँ अलंकार होय त भेल शब्द अलंकार ! अगर शब्द
के ओकर पर्यायवाची सँ बदलि देबै त काव्यक रमणीयता नष्ट भ जेतै ! त शब्दालंकार मे
शब्द महत्वपुर्ण अछि ! अर्थालंकार मे शब्दक अर्थ के कारणे लालित्य रहैछ ! शब्द
बदलियो देला सँ अकर रमणियता बनल रहैछ ! उभयालंकार त नामे सँ स्पष्ट अछि जे जहि पद
मे शब्द आ अर्थ दुहुक कारणे रमणीयता रहैक से भेल उभयालंकार !
शब्दालंकार
:
अकर
छः टा भेद अछि !
1
अनुप्रास 2 यमक 3 श्लेष 4 वक्रोक्ति 5 पुनरुक्ति 6 पुनरुक्तवदाभास
1
अनुप्रास : जहन पद मे व्यञ्जनक आवृति अर्थात दुहराव होइत
अछि ताहि सँ उतपन्न होमय वला अलंकार थिक अनुप्रास ! अनुप्रास पाँच प्रकारक होइत
अछि !
1
छेकानुप्रास 2 वृत्यनुप्रास 3 श्रुत्यनुप्रास 4 अंत्यानुप्रास 5 लाटानुप्रास
छेकानुप्रास
: जाहि अनुप्रास मे व्यंजन संघक एक बेर मात्र आदि अथवा अंत मे स्वरूपतः एवं क्रमत:
आवृत्ति हो !
कंकण
झंकन किकिन शंकिनि कुंडल कुंडलि भान ।
यावक
पावक काजर जागर मृगमद मदकरि मान ॥
अतय
किकिन शंकिनि मे क , न ; कुंडल आ कुंडलि मे क, ड, ल एवं यावक पावक मे व , क ! इ
आवृत्ति एक बेर भेल अछि संगहि स्वरूप आ क्रम मे अछि ! इ छेकानुप्रास अछि !
वृत्यनुप्रास
: जहि मे कोनो व्यंजन वा व्यंजन संघक स्वरूपतः आवृत्ति हो !
चिकन
चाँचर चिकुर चुम्बित चारु चन्द्रक पाँति ।
चपल
चमकित चकित चाहनि चितचोरक भाँति ॥
अहि
के च व्यंजनक आवृत्ति बेर बेर भेल अछि !
श्रुत्यनुप्रास
: यदि एक्कहि उच्चारण स्थान यथा कंठ , तालु आदि सँ उच्चारित होमय वला व्यंजन वर्ण
के बेरि बेरि आवृत्ति हो त ओतय श्रुत्यनुप्रास होइछ !
नाचत
नन्दनन्दन नटराज !
अतय
त द न दंत्य व्यंजन के आवृत्ति थिक !
अंत्यानुप्रास
: जाहि अनुप्रास मे चरण के अंत मे आबय वला वर्ण मे समता हो या तुक मिलय ! सब सँ
बेशी व्यवहार मे आबय वला अनुप्रास अछि ई !
आएल
साओन मास सोहाओन साजल जलधरमाला ।
तनने
मेघक घोघ गगन सँ बिहुसथि बिजुरी बाला ॥
अहि
मे चरण के अंत मे आबय वला शब्द माला आ बाला शब्द मे आला वर्णक आवृत्ति अछि !
लाटानुप्रास
: जाहि मे शब्द अथवा वाक्यखंड के आवृत्ति एकहि अर्थ मे हो मुदा तात्पर्य अथवा
अन्वय मे भेद हो !
नवनव
गुणगुण श्रवण रसायन ,
नयन
रसायन अंग ।
रसभ
सम्भाषण हृदय रसायन ,
परस
रसायन संग ॥
अतय
रसायन शब्दक आवृत्ति बेर बेर एक्कहि अर्थ मे भेल अछि धरि तात्पर्य मे भेद छैक !
श्रवणक रसायन अछि नव नव गुणगान , अंगक रसायन नयन , हृदयक रसायन सम्भाषण आ संगक
रसायन परस !
2
यमक अलंकार : जाहि
अलंकार मे एक शब्द दू बेरि अबैछ धरि अर्थ दू रहैछ से भेल यमक अलंकार !
अशुभनिवारक
जनसुखकारक भवभयहारक नाम ।
जनचयतारक
विपत्तिअविदारक गुणगणधारणधाम ॥
मारक
मारक लयसंहारक प्रलय सकल विश्राम ।
फणिपतिहारक
गतिसंहारक अपने ओढ़थि बघचाम ॥
अतय
मारक शब्द के आवृत्ति दू बेर भेल अछि मुदा जकर अर्थ अछि कामदेव आ मारनिहार !
लाटानुप्रास
मे सेहो एक्कहि शब्दक आवृत्ति अछि मुदा ओकर अर्थ नहि बदलैछ जबकि यमक मे शब्द आवृत्ति
संग अर्थ अलग अलग रहैछ !
3
श्लेष अलंकार
: जाहि अलंकार मे शब्दक आवृत्ति नहि हो मुदा एक्कहि शब्द अनेक अर्थ व्यक्त करैत हो
ओतय श्लेष अलंकार होईत अछि !
जनिक
जनक कश्यप स्वयं , लोकवेद मे ख्यात ।
से
यदि सेवथि वारुणी , तँ की अद्भुत बात ॥
अतय
कश्यप शब्दक अर्थ अछि मुनि कश्यप आ मद्यप !
यमक
अलंकार मे एक शब्दक आवृत्ति अनेक अर्थ मे होईछ जहन कि श्लेष मे एक्कहि शब्दक अनेक
अर्थ मे चमत्कार रहैछ !
4
वक्रोक्ति अलंकार
: जाहि मे कहय वला के एक अर्थ हो आ सुनय वला ओकर आन कल्पित वा चमत्कारपूर्ण अर्थ
लगा के उत्तर दे से भेल वक्रोक्ति अलंकार !
अकर
दू भेद
काकूवक्रोक्ति
: जाहि अलंकार मे काकू अर्थात कंठ ध्वनिक विशेषता स भिन्न अर्थ लागय !
काजर
भरम तिमिर जनु तनु रुचि निवसई कुंजकुटीर ।
वंशी
निशासे मधुरविष उगलई गति अति कुटिल सुधीर ॥
सजनि
कानु से बरज भुजंग ॥
अतय
भुजंग शब्द मे काकू सँ अत्यंत कारीक स्थान मे सर्प अर्थ अधिक चमत्कारपूर्ण होईछ !
श्लेषवक्रोक्ति
: जाहि अलंकार मे अनेकार्थक शब्द के अन्य अर्थ लगा के जबाब देल जाय से भेल
श्लेषवक्रोक्ति
एक
परवा के देखि हाथ मे पुछल कतय अपर अछि ।
उत्तर
भेंटल अपर कोना ओ ? उड़ि अछि गेल सपर अछि ॥
अतय
अपर के अर्थ दोसर के स्थान पर पाँखिहीन बुझु उत्तर देल गेल अछि !
5
पुनरुक्ति अलंकार
: जाहि अलंकार मे भाव के रुचिकर बनबए लेल एक्कहि बात के बेर बेर कहल जाय !
कहु
कहु सारस हंस निशान , कहु कहु दादुर उन्मत गान ।
कहु
कहु चातक पिउ पिय मोर , कहु कहु उन्मत नाच चकोर ॥
अतय
कहु आ पिउ शब्दक पुनरावृत्ति भाव के अधिक रुचिकर बनबैछ !
6
पुनरुक्तवदाभास अलंकार
: जाहि शब्दालंकार मे बिभिन्न अर्थ रखबा वला भिन्न शब्द सुनबा मे समानार्थी बुझाय
से भेल पुनरुक्तवदाभास अलंकार
चहुँ
दिश झिंगुर झनकर सजनी , पिक सुन्दर कर गान ।
मनसिज
मार मरम शर सजनी , कतेक सुनब हम कान ॥
अतय
मनसिज के अर्थ कामदेव आ मारक अर्थ मारब अछि यद्यपि दुनु शब्द समानार्थीये बुझि
पड़ैछ !
अतय
एकटा गप कहैत चली जे कविताक पद सब मे एक बेर मे एक्कहि नहि बल्कि अलग अलग अलंकार
के प्रयोग सेहो एक संगे होई छैक ! कविके अध्ययन आ सामर्थ्य पर बहुत किछु निर्भर
करैछ !
एक्कहि
भाग मे सब अलंकार समटब सम्भव नहि भ सकत !
पैघ विषय थिक ! अहि भाग मे शब्दालंकार पर चर्च रहल ! उभयालंकार त शब्दालंकार आ
अर्थालंकार के समंवय थिक ! अगिला भाग मे प्रयास करब जे अर्थालंकार पर चर्च करी !
अखन
अतवे !
आह! आनंद आबि गेल।
ReplyDeleteनीक व्यख्या।
धन्यवाद सुशांत अवलोकित जी !
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