Thursday, March 22, 2018

कविता मादे विमर्ष भाग 3



कविता मादे विमर्ष भाग 3
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पिछला भाग मे चर्च कयने रही जे कविता के तीन अंग होईछ :  रस , गुण , आ अलंकार ! रस कविताक आत्मा आ गुण कविताक शरीर अलंकार कविताक श्रृंगार अछि ! अलंकार सँ कविताक सौन्दर्य मे श्रीवृद्धि होई छै ! अलंकार कविताक बड़ा महत्वपूर्ण भाग थिक धरि अनिवार्य अन्ग नहि थिक ! खाली शरीर आ आत्मा सँ व्यक्ति के निर्माण भ जेतै धरि विना वस्त्र आभूषण के केहन लगतै से कल्पना केनाए कठिन नहि ! अहिना बिना अलंकारयुक्त कविता कविता त हेतै मुदा ओहि मे विभव आ श्री के अभाव भ जेतै !
कविता के लिखबा काल मे हम सब जाने अंजाने अलंकार के प्रयोग करैत रहै छी बिलकुल स्वाभाविक ढंग सँ ! परिभाषिक दृष्टि सँ भले अलंकार सँ अनभिज्ञ रही धरि अपन सामर्थ्य वा ज्ञानारूप अपन कविता के सजबय के अलंकृत करय के प्रयास हम सब करिते छी !


आउ तहन कविता के अहि भागक विमर्ष मे अलंकार पर चर्च करी !

अलंकार तीन प्रकारक होईत अछि 1 शब्दालंकार 2 अर्थालंकार आ 3 उभयालंकार !

नामे सँ स्पष्ट अछि जे जखन शब्द के लालित्य सँ अलंकार होय त भेल शब्द अलंकार ! अगर शब्द के ओकर पर्यायवाची सँ बदलि देबै त काव्यक रमणीयता नष्ट भ जेतै ! त शब्दालंकार मे शब्द महत्वपुर्ण अछि ! अर्थालंकार मे शब्दक अर्थ के कारणे लालित्य रहैछ ! शब्द बदलियो देला सँ अकर रमणियता बनल रहैछ ! उभयालंकार त नामे सँ स्पष्ट अछि जे जहि पद मे शब्द आ अर्थ दुहुक कारणे रमणीयता रहैक से भेल उभयालंकार !

शब्दालंकार :
अकर छः टा भेद अछि !
1 अनुप्रास 2 यमक 3 श्लेष 4 वक्रोक्ति 5 पुनरुक्ति 6 पुनरुक्तवदाभास

1 अनुप्रास :  जहन पद मे व्यञ्जनक आवृति अर्थात दुहराव होइत अछि ताहि सँ उतपन्न होमय वला अलंकार थिक अनुप्रास ! अनुप्रास पाँच प्रकारक होइत अछि !
1 छेकानुप्रास 2 वृत्यनुप्रास 3 श्रुत्यनुप्रास 4 अंत्यानुप्रास 5 लाटानुप्रास
छेकानुप्रास : जाहि अनुप्रास मे व्यंजन संघक एक बेर मात्र आदि अथवा अंत मे स्वरूपतः एवं क्रमत: आवृत्ति हो !
कंकण झंकन किकिन शंकिनि कुंडल कुंडलि भान ।
यावक पावक काजर जागर मृगमद मदकरि मान ॥

अतय किकिन शंकिनि मे क , न ; कुंडल आ कुंडलि मे क, ड, ल एवं यावक पावक मे व , क ! इ आवृत्ति एक बेर भेल अछि संगहि स्वरूप आ क्रम मे अछि ! इ छेकानुप्रास अछि !

वृत्यनुप्रास : जहि मे कोनो व्यंजन वा व्यंजन संघक स्वरूपतः आवृत्ति हो !
चिकन चाँचर चिकुर चुम्बित चारु चन्द्रक पाँति ।
चपल चमकित चकित चाहनि चितचोरक भाँति ॥

अहि के च व्यंजनक आवृत्ति बेर बेर भेल अछि !

श्रुत्यनुप्रास : यदि एक्कहि उच्चारण स्थान यथा कंठ , तालु आदि सँ उच्चारित होमय वला व्यंजन वर्ण के बेरि बेरि आवृत्ति हो त ओतय श्रुत्यनुप्रास होइछ !
नाचत नन्दनन्दन नटराज !
अतय त द न दंत्य व्यंजन के आवृत्ति थिक !

अंत्यानुप्रास : जाहि अनुप्रास मे चरण के अंत मे आबय वला वर्ण मे समता हो या तुक मिलय ! सब सँ बेशी व्यवहार मे आबय वला अनुप्रास अछि ई !

आएल साओन मास सोहाओन साजल जलधरमाला ।
तनने मेघक घोघ गगन सँ बिहुसथि बिजुरी बाला ॥

अहि मे चरण के अंत मे आबय वला शब्द माला आ बाला शब्द मे आला वर्णक आवृत्ति अछि !

लाटानुप्रास : जाहि मे शब्द अथवा वाक्यखंड के आवृत्ति एकहि अर्थ मे हो मुदा तात्पर्य अथवा अन्वय मे भेद हो !
नवनव गुणगुण श्रवण रसायन ,
नयन रसायन अंग ।
रसभ सम्भाषण हृदय रसायन ,
परस रसायन संग ॥

अतय रसायन शब्दक आवृत्ति बेर बेर एक्कहि अर्थ मे भेल अछि धरि तात्पर्य मे भेद छैक ! श्रवणक रसायन अछि नव नव गुणगान , अंगक रसायन नयन , हृदयक रसायन सम्भाषण आ संगक रसायन परस !

2 यमक अलंकार : जाहि अलंकार मे एक शब्द दू बेरि अबैछ धरि अर्थ दू रहैछ से भेल यमक अलंकार !

अशुभनिवारक जनसुखकारक भवभयहारक नाम ।
जनचयतारक विपत्तिअविदारक गुणगणधारणधाम ॥
मारक मारक लयसंहारक प्रलय सकल विश्राम ।
फणिपतिहारक गतिसंहारक अपने ओढ़थि बघचाम ॥

अतय मारक शब्द के आवृत्ति दू बेर भेल अछि मुदा जकर अर्थ अछि कामदेव आ मारनिहार !

लाटानुप्रास मे सेहो एक्कहि शब्दक आवृत्ति अछि मुदा ओकर अर्थ नहि बदलैछ जबकि यमक मे शब्द आवृत्ति संग अर्थ अलग अलग रहैछ !  

3 श्लेष अलंकार : जाहि अलंकार मे शब्दक आवृत्ति नहि हो मुदा एक्कहि शब्द अनेक अर्थ व्यक्त करैत हो ओतय श्लेष अलंकार होईत अछि !

जनिक जनक कश्यप स्वयं , लोकवेद मे ख्यात ।
से यदि सेवथि वारुणी , तँ की अद्भुत बात ॥

अतय कश्यप शब्दक अर्थ अछि मुनि कश्यप आ मद्यप !

यमक अलंकार मे एक शब्दक आवृत्ति अनेक अर्थ मे होईछ जहन कि श्लेष मे एक्कहि शब्दक अनेक अर्थ मे चमत्कार रहैछ !

4 वक्रोक्ति अलंकार : जाहि मे कहय वला के एक अर्थ हो आ सुनय वला ओकर आन कल्पित वा चमत्कारपूर्ण अर्थ लगा के उत्तर दे से भेल वक्रोक्ति अलंकार !
अकर दू भेद
काकूवक्रोक्ति : जाहि अलंकार मे काकू अर्थात कंठ ध्वनिक विशेषता स भिन्न अर्थ लागय !
काजर भरम तिमिर जनु तनु रुचि निवसई कुंजकुटीर ।
वंशी निशासे मधुरविष उगलई गति अति कुटिल सुधीर ॥
सजनि कानु से बरज भुजंग ॥

अतय भुजंग शब्द मे काकू सँ अत्यंत कारीक स्थान मे सर्प अर्थ अधिक चमत्कारपूर्ण होईछ !

श्लेषवक्रोक्ति : जाहि अलंकार मे अनेकार्थक शब्द के अन्य अर्थ लगा के जबाब देल जाय से भेल श्लेषवक्रोक्ति
एक परवा के देखि हाथ मे पुछल कतय अपर अछि ।
उत्तर भेंटल अपर कोना ओ ? उड़ि अछि गेल सपर अछि ॥
अतय अपर के अर्थ दोसर के स्थान पर पाँखिहीन बुझु उत्तर देल गेल अछि !    

5 पुनरुक्ति अलंकार : जाहि अलंकार मे भाव के रुचिकर बनबए लेल एक्कहि बात के बेर बेर कहल जाय !
कहु कहु सारस हंस निशान , कहु कहु दादुर उन्मत गान ।
कहु कहु चातक पिउ पिय मोर , कहु कहु उन्मत नाच चकोर ॥

अतय कहु आ पिउ शब्दक पुनरावृत्ति भाव के अधिक रुचिकर बनबैछ !

6 पुनरुक्तवदाभास अलंकार : जाहि शब्दालंकार मे बिभिन्न अर्थ रखबा वला भिन्न शब्द सुनबा मे समानार्थी बुझाय से भेल पुनरुक्तवदाभास अलंकार

चहुँ दिश झिंगुर झनकर सजनी , पिक सुन्दर कर गान ।
मनसिज मार मरम शर सजनी , कतेक सुनब हम कान ॥

अतय मनसिज के अर्थ कामदेव आ मारक अर्थ मारब अछि यद्यपि दुनु शब्द समानार्थीये बुझि पड़ैछ !

अतय एकटा गप कहैत चली जे कविताक पद सब मे एक बेर मे एक्कहि नहि बल्कि अलग अलग अलंकार के प्रयोग सेहो एक संगे होई छैक ! कविके अध्ययन आ सामर्थ्य पर बहुत किछु निर्भर करैछ !

एक्कहि भाग मे  सब अलंकार समटब सम्भव नहि भ सकत ! पैघ विषय थिक ! अहि भाग मे शब्दालंकार पर चर्च रहल ! उभयालंकार त शब्दालंकार आ अर्थालंकार के समंवय थिक ! अगिला भाग मे प्रयास करब जे अर्थालंकार पर चर्च करी !

अखन अतवे !

------ अश्विनी कुमार तिवारी ( 22/03/2018 ) 

2 comments:

  1. आह! आनंद आबि गेल।
    नीक व्यख्या।

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