Thursday, January 8, 2015

गोसाउनीक गीत

                      गोसाउनीक गीत

जय जय भैरवि असुर भयाओनि ,
पसुपति भामिनि माया ।
सहज सुमति वर दिय हे गोसाओनि ,
अनुगति गति तुअ पाया ॥

अर्थ – हे ! असुरों और आसुरी वृत्ति को भय प्रदान करने वाली माँ भैरवी ! काली ! तुम्हारी जय जयकार हो । तुम्हारी जय हो क्योंकि जो कुछ भी हैं वो सब शिव प्रिया शिवपत्नी की हीं माया हैं लीला हैं कल्पना स्रृष्टि हैं । हे गोसावनि ! आप मुझे ऐसी सहज , नैसर्गिक , स्वभाविक सुन्दर चित्त , मन , बुद्धि का वर प्रदान करिये ताकि मुझे आपकी ही गति मिले अर्थात मैं आप मे हें समाहित हो जाऊँ ।


वासर रैनि शवासन शोभित ,
चरण चन्द्रमणि चूड़ा ।
कतओक दैत्य मारि मुख मेललि ,
कतौउ उगलि कैलि कुड़ा ॥

अर्थ – घनघोर अन्धेरी रात्रि जो शवों से शोभित अर्थात भरी हुई हैं और आपका चरण सिर पर चन्द्रमाँ को मणि की तरह धारण करने वाले शिव यानी देवाधिदेव महादेव के उपर रखा हैं । कितने हीं दैत्यों को आपने अपने मुख में एक साथ पान की तरह चबा डाला हैं और फिर कितनों को हीं पान के पीक की तरह उगल दिया हैं जिनका ढेर लग गया हैं ।

साँवर वरन नयन अनुरञ्जित ,
जलद योग फुल कोका ।
कट कट विकट ओठ पुट पाङ्डरि ,
लिधुर फेनि उठ फोका ॥

अर्थ – साँवला बदन और लाल लाल आँखे ऐसी लग रही हैं जैसे काले घने मेघ और सुबह के सूर्य का योग , मेल हो गया हो । आपके कटकटाते हुए दाँत होठों के मध्य चमेली के फूल की तरह श्वेत चमक रहे हैं और उसमें से रुधिर यानी खून झाग की तरह बाहर आ रहा हैं । 

घन घन घनन घुँघरू कत बाजय ,
हन हन कर तुअ काता ।
बिद्यापति कवि तुअ पद सेवक ,
पुत्र बिसरु जनु माता ॥  

अर्थ – मेघ गर्जना की तरह आपके घुँघरू बज रहे हैं और वायु के तेज प्रवाह की तरह आपकी तलवार चल रही हैं । ऐसे में माँ मैं बिद्यापति जो आपके चरणों का दास हूँ , सेवक हूँ , पुत्र हूँ ! हे माता आप मुझे मत भूल जाईएगा ।


कवि – बिद्यापति
रचना – बिद्यापति पदावली
भाषा – मैथिली

हिन्दी अर्थानुवाद – अश्विनी कुमार तिवारी ( 08/01/2015 )

4 comments:

  1. Meaning padhi ka mon gad gad bho gel

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  2. This is the most beautiful song I have heard! Thanks for sharing the meaning for young generation.

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  3. Very nice explaination and it is very useful for the new students of Hindi

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