Friday, March 13, 2015

मोर का नृत्य

_________________
मोर का नृत्य
------------------------
ले पंख नोच न कहीं मेरा ,
सुन्दरता पर मोहित मानव ।
हैं भला इसी में बिधि मेरा ,
लूँ खिसक विथि वन हो लाघव ॥

पंख फैलाया हैं मैने ,
मधुबन में उसे सुखाने को ।
और डगमगाता रहता हूँ ,
निज भार संतुलित करने को ॥  

तुम नृत्य समझते हो मेरा ,
वह मेरी हैं मजबूरी मानव ।
औरों की व्यथा पर खुश होना ,
हैं तेरी यह फिदरत मानव ॥

__________  अश्विनी कुमार तिवारी ( 13/03/2015 )


No comments:

Post a Comment