Monday, January 30, 2012

स्वतंत्रता और गणतंत्र



26 जनवरी आई और आ कर गई भी । तो आजकल स्वतंत्रता और गणतंत्र के बारे मे सोच रहा हूँ । आप तो जानते ही है कि मेरे दिमाग मे कब कौन सी बात आ जाये मै खुद नही जान पाता । वैसे भी कहा जाता है कि " जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि " । अब महान कवि होने का दावा तो नही करता पर मन और दिमाग जरूर कवियों की तरह सोचता हैं । नतीजा व्यवहारिक बुद्धि पर अक्सर भाव प्रधान बुद्धि हावी हो जाती है । अब ये भी तय है कि अपनी हर एक सोच हरएक के साथ तो साझा नही कर सकता न ही करना चाहिये । अपनी कुछ सोच मै आपके साथ भी साझा करके अच्छा महसूश करता हुँ । 

Thursday, January 19, 2012

हिन्दी व्याकरण : वर्ण विचार , भाग (चार )


हिन्दी के व्यंजन वर्ण
हिन्दी व्यंजनो की संख्या 33 है । इन्हे निम्नलिखित वर्गों में बाँटा गया है : 
1.)    स्पर्श व्यंजन या वर्गीय : पाँच – पाँच व्यंजनों का एक – एक वर्ग है । वर्गों की संख्या पाँच है । इस तरह कण्ठ , तालु , मुर्द्धा , दाँत  और ओठ से बोले जाने के कारण इन्हें स्पर्श व्यंजन कहा जाता है । इन्हे वर्गीय व्यंजन भी कहा जाता है । ‘क्’ से ‘म्’ तक के वर्णों को स्पर्श व्यंजन कहते हैं ।

Monday, January 16, 2012

कोशिश

                  कोशिश


सेतुबन्ध  था  हो   रहा  और  राम  खड़े  निहार ,
सोच रहे थे व्यापकता थी उदधि की अपरम्पार ।
याद  आया  वो समय  याचना की  थी बारम्बार ,
किंतु बिना भय प्रकटा नही सिन्धु वहाँ साकार ॥

                                    सोच रहे हा ! सीता सुकुमारी मैं हूँ कितना लाचार ,
                                   ब्रम्हाण्ड पलटने की शक्ति पर मर्यादा का बिचार ।
                                   तारतम्य   टुटा   तभी   औचक   हीं   कुछ  निहार ,
                                  एक गिलहरी तन्मयता से डाल रही कंकड़ हर बार ॥

Wednesday, January 4, 2012

भ्रष्ट्राचार निवारण मे हमारी भुमिका........

भ्रष्ट्राचार निवारण मे हमारी भुमिका........


जब से सोचने लगा हुं क्या हो भूमिका ,
                                हमारी  भ्रष्ट्राचार   के   निवारण   मे ।
दिल और दिमाग उलझ के रह गये ,
                                अजीब से उलझन के ताने - बाने में ॥

पहले प्रश्न उठा कि बला क्या है ये ?
                       निवारण जिसका चाहते सब पर होता नही ।
कौन हैं वो अज्ञात सर्वव्यापी अविनाशी ,
                    लिप्त है सभी कर्मचारी अधिकारी या सन्यासी ॥

Tuesday, January 3, 2012

नदी

                  नदी

सुनो   सुनो   मेरी   कहानी ,  मैं  नदी  मस्तानी ।
लगती हूँ जानी  पहचानी ,  फिर भी हूँ  अंजानी ॥
ज़हर बनाते हो तुम जिसको , था अमृत वो पानी ।
बाँधते हो जिसको थे पूजते , उसको हर नर नारी ॥

बूँदों   से  मैं  बनी  और  ,  पर्वत   से   हूँ  झरी ।
मुश्किल  राहों  मे  भी  मैं , राह  बनाती   चली ॥
जो अड़े बहे  जो झुके  उन्हे , सहलाती  मैं चली ।
बही दूर तक और अंत मे , सागर से जा मिली ॥

Sunday, January 1, 2012

नव वर्ष का नव प्रभात

नव वर्ष का नव प्रभात

दूर  पहाड़ो   की   चोटी  पर
फैली  है   सूरज   की  लाली
ज्यों मुँह  अँधेरे उठ नववधु ने
लीप  डाली हो सारी अँगनाई ।

दूर कहीं चिड़ियों  की  चुनमुन
ज्यों कानो मे  बजती  शहनाई
और  खेत  मे   सरसोँ  फूली
पसरी  मादक   हो  पियराई ।