Sunday, January 1, 2012

नव वर्ष का नव प्रभात

नव वर्ष का नव प्रभात

दूर  पहाड़ो   की   चोटी  पर
फैली  है   सूरज   की  लाली
ज्यों मुँह  अँधेरे उठ नववधु ने
लीप  डाली हो सारी अँगनाई ।

दूर कहीं चिड़ियों  की  चुनमुन
ज्यों कानो मे  बजती  शहनाई
और  खेत  मे   सरसोँ  फूली
पसरी  मादक   हो  पियराई ।


मन  भी   कुछ   चंचल   था
तन  आलस   में   जकड़ा था
लोभ  हवा   ताजी  खाने  का
सम्वरण कैसे करता अभिमानी ।

बढ़ चले अनिश्चित मग पर पग
फैली  थी  चहुँ  दिस  हरियाली
दूर  पहाड़ों   की   चोटी   पर
फैली   है  सूरज   की  लाली ।

नव  वर्ष  के  नव  प्रभात  ने
ली  है  पहली  पहली  अँगड़ाई
और  धरा  खिल उठी चंचल सी
जो  अब  तक  थी  अलसाई ।

विगत  अतीत  की  चौखट पर
स्वागत , स्वागत , स्वागत  हैं
इतिहास  हो रहा  काल छोड़ता
तेरे   हेतु   अब  आँगन  है ।

शायद  पीछे   के  घाव  हरे
कुछ भर  जाएँ तेरे  आने  से
कुछ नये पुष्प फिर उपवन मे
खिल  जाये  तेरे  ही लय  में ।

कुछ   धरोहरें   हैं  अतीत  की
जिन्हे सम्भाल लेना तुम कर मे
और  सँजोना   कुछ  ऐसा  जो
दे सको भविष्य को जरा गर्व से ।

तेरा   आना   एक  उत्सव  है
उत्साह  सृजन   सा  करता  है
आशाएँ    स्पन्दित   हो   कर
ले  रही  पुनः   फिर  अँगड़ाई ।

दूर   पहाड़ो   की   चोटी  पर
फैली  है    सूरज   की  लाली
ज्यों मुँह  अँधेरे  उठ नववधु ने
लीप  डाली  हो  सारी अँगनाई ।

.............  अश्विनी कुमार तिवारी ( 01.01.2012 ) 

No comments:

Post a Comment