नव वर्ष का नव प्रभात
दूर पहाड़ो की चोटी पर
फैली है सूरज की लाली
ज्यों मुँह अँधेरे उठ नववधु ने
लीप डाली हो सारी अँगनाई ।
दूर कहीं चिड़ियों की चुनमुन
ज्यों कानो मे बजती शहनाई
और खेत मे सरसोँ फूली
पसरी मादक हो पियराई ।
मन भी कुछ चंचल था
तन आलस में जकड़ा था
लोभ हवा ताजी खाने का
सम्वरण कैसे करता अभिमानी ।
बढ़ चले अनिश्चित मग पर पग
फैली थी चहुँ दिस हरियाली
दूर पहाड़ों की चोटी पर
फैली है सूरज की लाली ।
नव वर्ष के नव प्रभात ने
ली है पहली पहली अँगड़ाई
और धरा खिल उठी चंचल सी
जो अब तक थी अलसाई ।
विगत अतीत की चौखट पर
स्वागत , स्वागत , स्वागत हैं
इतिहास हो रहा काल छोड़ता
तेरे हेतु अब आँगन है ।
शायद पीछे के घाव हरे
कुछ भर जाएँ तेरे आने से
कुछ नये पुष्प फिर उपवन मे
खिल जाये तेरे ही लय में ।
कुछ धरोहरें हैं अतीत की
जिन्हे सम्भाल लेना तुम कर मे
और सँजोना कुछ ऐसा जो
दे सको भविष्य को जरा गर्व से ।
तेरा आना एक उत्सव है
उत्साह सृजन सा करता है
आशाएँ स्पन्दित हो कर
ले रही पुनः फिर अँगड़ाई ।
दूर पहाड़ो की चोटी पर
फैली है सूरज की लाली
ज्यों मुँह अँधेरे उठ नववधु ने
लीप डाली हो सारी अँगनाई ।
............. अश्विनी कुमार तिवारी ( 01.01.2012 )
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