Wednesday, January 4, 2012

भ्रष्ट्राचार निवारण मे हमारी भुमिका........

भ्रष्ट्राचार निवारण मे हमारी भुमिका........


जब से सोचने लगा हुं क्या हो भूमिका ,
                                हमारी  भ्रष्ट्राचार   के   निवारण   मे ।
दिल और दिमाग उलझ के रह गये ,
                                अजीब से उलझन के ताने - बाने में ॥

पहले प्रश्न उठा कि बला क्या है ये ?
                       निवारण जिसका चाहते सब पर होता नही ।
कौन हैं वो अज्ञात सर्वव्यापी अविनाशी ,
                    लिप्त है सभी कर्मचारी अधिकारी या सन्यासी ॥

क्या हैं वो कि सब छटपटाते है निकलने को ,
                   पर और धसते जा रहे जैसे कि फँसे दलदल मे ।
कभी लगता कि जैसे मदिरा लगती है ,
                         पीने मे मजा और भी आता है डूब जाने मे ॥

फिर तोड़ा शब्द तो चला पता कि 'च्युत होना -
                                   आचार से ही ' हैं भ्रष्ट्राचार कहलाता ।
फिर ढ़ूढ़ा कि शायद कहीं आचार पड़ा हो कर्यालय मे ,
                      कि मानदण्ड तो मिले भ्रष्ट्राचार पहचानने मे ॥

पर हो गया विवश कि भ्रष्ट्राचार बहुत है गिनाने को ,
                          आचार एक भी नही भुले से है अपनाने को ।
क्योकि जो समझते घर मे आचार सही ,
                गिनती मे कार्यालय के भ्रष्ट्राचार हो सकता है वही ॥

सबके अपने मापदण्ड अपने चोँचले है तो सही ,
                पर कार्यालय मे काम का व्यस्थित तरीका हि नही ।
तो जहाँ तय हि ना हो आचार कार्यालय में ,
                   क्या हो हमारी भूमिका वहाँ भ्रष्ट्राचार निवारण मे ॥
                                                       
                                                           _______ अश्विनी कुमार तिवारी

2 comments:

  1. Bahut sahki likha hai aapne..Par mere anusar iska koi nidan nahi hai..Ye kodh mein khaaj ki tarah hai jiska ilaaz nahi hai

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  2. बात तो बहुत सही कहा है मित्र आपने भ्रष्ट्राचार वो मर्ज है कि " मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों ज्यों दवा की " पर मैने अक्सर गौर किया है कि बहुत बार ऐसा होता है कि सामने वाले को पता ही नही होता कि कुछ गलत हो गया या किया हैं । कभी खेत की मेड़ पर चले होंगे आप । लाख कोशिश कर लिजिये आप कदम डगमगा ही जायेंगे आपके । कारण आपके चलने का तरीका नही बल्कि वो मेंड़ हैं जिसपर आप चल रहे हैं । मतलब आप कितने ही अच्छे चालक हो पर यदि रोड मे ही गड्ढ़े हो तो सही गाड़ी चला पाना सम्भव नही । इस लिये अपनी कविता मे सिस्टम की बात की हैं । यदि काम करने का सही तरीका उपलब्ध हो तो अंजाने मे होने वाला भ्रष्ट्राचार सन्यमित हो सकता हैं । जानबुझ के किये जाने वाले भ्रष्ट्राचार तो जागरूकता और कड़े कानून से सन्यमित किये जा सकते हैं । हाँ आप यहाँ पर जरूर सही हैं कि इसे खत्म नही किया जा सकता । पर मर्यादित जरूर किया जा सकता है इसमे मुझे कोइ शक़ नही ।

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