हमारी राजभाषा हिन्दी भाग 7
विकास , सौहार्द और समय की
जरूरत से जन्मी भाषा है हिन्दी ! एक समय भारतीय स्ंस्कृति मे ऐसा आया जब संस्कृत
विद्वानो में भी मात्र पठन पाठन और आध्यात्म से जुड़ी भाषा रह गई थी जनमानस से दूर
! कुछ बौद्ध घर्म का प्रचार प्रसार भी जिसमे प्राकृत को प्राथमिकता दी गई !
प्राकृत सामान्य जन की भाषा थी धीरे धीरे वो भी बदलती चली गई ! अलग अलग हिस्सों मे
अलग अलग बोलियाँ प्रचलन मे आई ! भारत एक विशाल देश जिसमे भौगोलिक बाधाएँ या
विविधताएँ जो कह लें प्रचुर मात्रा मे उपलब्ध है ! स्वभाविक ही है कि अलग अलग
भौगोलिक परिस्थितियों ने अलग अलग भाषाओं को जन्म दिया ! बोलियों के लिये तो कहावत
आज भी मशहूर है कि दस कोस पर पानी बदले पाँच कोस पर वानी ! दूरी बढ़ने पर ये बदलाव
इतना स्पष्ट दिखने लगता है कि एक बिलकुल अलग भाषा का जन्म हुआ लगता है ! महान राजवंशो
का साम्राज्य समाप्त होने के बाद भारत छोटे छोटे हिस्सों मे बट कर रह गया सब के सब
स्वतंत्र सत्ता अपने नियम अपनी बोली अपनी भाषा अपने सिक्के ! जब मुस्लिम आक्रमणकारियों
ने भारतवर्ष मे अपनी जड़े जमानी शुरु की तो सत्ता का केन्द्रीकरण भी शुरु हुआ ! अब
भारत के काफी हिस्से एक शासन के अंतर्गत आने लगे ! शासन की भाषा अरबी फारसी होने
लगी भारत की बोलियाँ अलग अलग ! आखिर शासक और शासित के बीच सम्वाद कायम कैसे हो !
भाषाएँ पास आई स्वभाविक रूप से और सम्वाद की एक नई भाषा का जन्म हुआ जिसे हिन्दवी
या हिन्दी कहा गया ! हिन्दी और उर्दू का वर्गीकरण तो बहुत बाद मे जाकर हुआ वस्तुत:
दोनो एक ही है ! ये स्वाभाविक था कि भारत के लोग जब हिन्दी बोलते तो उसमे यहाँ कि
संस्कृत और लोक भाषाओं के शब्द और लहजा सम्मिलित होता और बाहर से आए मुस्लिम की
भाषा मे अरबी और फारसी का प्रभाव होता ! समय और वर्चश्व के प्रभाव मे हिन्दी और
उर्दू अलग अलग भाषाएँ बन गई ! भाषाओं के विनिमय ने भारत की अन्य लोक भाषाओं मे भी
धीरे धीरे ये प्रभाव पड़ा और भाषाएँ हिन्दी के निकट आ गई फिर भी भौगोलिक कारणों से
भाषाओं का स्पष्ट अंतर बना रहा ! अंग्रेजो के शासन मे आने के बाद तक भी सत्ता मे
फारसी की भूमिका बनी रही ! धीरे धीरे अंग्रेजी ने उसे स्थानच्युत कर दिया !