Thursday, September 14, 2017

हमारी राजभाषा हिन्दी भाग 7



हमारी राजभाषा हिन्दी भाग 7

विकास , सौहार्द और समय की जरूरत से जन्मी भाषा है हिन्दी ! एक समय भारतीय स्ंस्कृति मे ऐसा आया जब संस्कृत विद्वानो में भी मात्र पठन पाठन और आध्यात्म से जुड़ी भाषा रह गई थी जनमानस से दूर ! कुछ बौद्ध घर्म का प्रचार प्रसार भी जिसमे प्राकृत को प्राथमिकता दी गई ! प्राकृत सामान्य जन की भाषा थी धीरे धीरे वो भी बदलती चली गई ! अलग अलग हिस्सों मे अलग अलग बोलियाँ प्रचलन मे आई ! भारत एक विशाल देश जिसमे भौगोलिक बाधाएँ या विविधताएँ जो कह लें प्रचुर मात्रा मे उपलब्ध है ! स्वभाविक ही है कि अलग अलग भौगोलिक परिस्थितियों ने अलग अलग भाषाओं को जन्म दिया ! बोलियों के लिये तो कहावत आज भी मशहूर है कि दस कोस पर पानी बदले पाँच कोस पर वानी ! दूरी बढ़ने पर ये बदलाव इतना स्पष्ट दिखने लगता है कि एक बिलकुल अलग भाषा का जन्म हुआ लगता है ! महान राजवंशो का साम्राज्य समाप्त होने के बाद भारत छोटे छोटे हिस्सों मे बट कर रह गया सब के सब स्वतंत्र सत्ता अपने नियम अपनी बोली अपनी भाषा अपने सिक्के ! जब मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारतवर्ष मे अपनी जड़े जमानी शुरु की तो सत्ता का केन्द्रीकरण भी शुरु हुआ ! अब भारत के काफी हिस्से एक शासन के अंतर्गत आने लगे ! शासन की भाषा अरबी फारसी होने लगी भारत की बोलियाँ अलग अलग ! आखिर शासक और शासित के बीच सम्वाद कायम कैसे हो ! भाषाएँ पास आई स्वभाविक रूप से और सम्वाद की एक नई भाषा का जन्म हुआ जिसे हिन्दवी या हिन्दी कहा गया ! हिन्दी और उर्दू का वर्गीकरण तो बहुत बाद मे जाकर हुआ वस्तुत: दोनो एक ही है ! ये स्वाभाविक था कि भारत के लोग जब हिन्दी बोलते तो उसमे यहाँ कि संस्कृत और लोक भाषाओं के शब्द और लहजा सम्मिलित होता और बाहर से आए मुस्लिम की भाषा मे अरबी और फारसी का प्रभाव होता ! समय और वर्चश्व के प्रभाव मे हिन्दी और उर्दू अलग अलग भाषाएँ बन गई ! भाषाओं के विनिमय ने भारत की अन्य लोक भाषाओं मे भी धीरे धीरे ये प्रभाव पड़ा और भाषाएँ हिन्दी के निकट आ गई फिर भी भौगोलिक कारणों से भाषाओं का स्पष्ट अंतर बना रहा ! अंग्रेजो के शासन मे आने के बाद तक भी सत्ता मे फारसी की भूमिका बनी रही ! धीरे धीरे अंग्रेजी ने उसे स्थानच्युत कर दिया !
आजादी की लड़ाई के दरमियान एक साझी भाषा की जरूरत महसूश की गई ! ऐसे में भारत की भाषाओं मे सबसे नई और उनकी आत्मा के करीब की भाषा हिन्दी को अंगीकार किया गया ! हिन्दी भारत के बड़े भूभाग मे बोली और समझे जाने वाली भाषा थी ! हिन्दी ने भौगोलिक बाधाओं को पार किया और भारत के अधिकांश हिस्से मे बोली जाने वाली नही भी तो समझे जाने वाली भाषा अवश्य बनी ! उस समय सभी का दुःख एक था इसलिए भाषा भी एक बनी ! जब हम आजाद हुए तो भारत की राष्ट्र भाषा के चयन के समय हिन्दी ही स्वीकार्य थी ! पर आजादी के साथ फिर भाषाओं के अस्तित्व के सवाल मुखर हुए ! सत्य तो ये है कि दुःख हमे करीब ले आता है और सुविधाएँ दूर कर देती है ! विरोध के स्वरों ने हिन्दी को सम्विधान मे राष्ट्रभाषा का दर्जा नही मिलने दिया ! इसके वावजूद भी हिन्दी प्रसार और समझे जाने की काबिलियत के कारण संविधान मे राजभाषा यानी राजकाज की भाषा का स्थान प्राप्त हुआ ! हिन्दी के मुखर विरोध के नतीजे मे लोग अंग्रेजी के पक्ष मे आए ! चुकि अंग्रेजी शासन और विद्वानो मे एक विशिष्ट स्थान रखती थी परिणाम स्वरूप 15 वर्षों के लिए अंग्रेजी को भी हिन्दी के साथ राजभाषा का दर्जा दिया गया ! अंग्रेजी मानसिकता को ये छोटी जगह देने का असर आज किसी से छुपा नही है ! स्थिति आज ऐसी है कि हिन्दी से भाषाओं को खतरा लगने लगा है ! वो अपनी बात अंग्रेजी मे रखना ज्यादे उपयुक्त समझने लगे है बनस्पति हिन्दी के ! खींचतान जारी है !

आज लोग ये भी प्रश्न रखने लगे है कि हिन्दी तो मलिकाइन है , महारानी है , हमारी भाषा को नष्ट कर रही है ! उसके पास अपना हैं हि क्या , हमारा इतिहास हिन्दी से काफी पुराना है आदि आदि ! सत्ता और शासन का जो फूट डालो और राज करो का मंत्र अंग्रेजो ने दिया उसे हमारे लीडर घुट्टी मे डाल कर आत्मसात कर गए हैं !
आज भारत की भाषाओं पर यदि गौर करें सुने तो महसूश होगा के अंग्रेजी शब्दों ने कैसे हमारे मूल शब्दों को अतीत की गहराइयों मे धकेल दिया है ! अमुमन हर दो तीन लाइन मे एक दो अंग्रेजी के शब्द शामिल है ! अब तो हमे पता भी नही लगता कि किस धड़ल्ले से ये होता जा रहा है ! अब खुद ही सोच कर हम देखें कि आखिर भाषाओं के धीरे धीरे कौन नष्ट किये जा रहा और दोष किसके मत्थे मढ़ा जा रहा ! हिन्दी का प्रयोग कम से कम हमारे शब्दों को जिवित रखता है क्योंकि हिन्दी जन्मी ही हमारी लोक भाषाओं से है !

लोक भाषाओं का प्रभाव हिन्दी पर कितना है ये भारत के अलग अलग हिस्सों की यात्राओं और लोगों से मिल कर पता लगता है ! हिन्दी और लोक भाषाओं के समिश्रण मे हिन्दी की नई नई बोलियों को भी जन्म दे दिया है ! तात्पर्य ये है कि हिन्दी से अधिक भारत की लोकभाषाओं ने हिन्दी पर अपनी छाप छोड़ी है और सहजता से अपने बीच स्वीकार किया है !

हिन्दी जानना समझना और प्रयोग करना सहज है ! भारत की सभी भाषाओं की वर्णमाला चाहे वो देवनागरी मे न लिखी जाती हों अंग्रेजी और उर्दू को छोड़ कर एक ही है ! व्याकरण सबका संस्कृत व्याकरण से साम्य रखता है ! शब्दकोश भी लगभग वही है ! पूरे भारत मे सम्पर्क भाषा और शासन की भाषा के लिए हिन्दी सर्वथा उपयुक्त चयन था और है !

राज भाषा के रूप मे हिन्दी मे ऐसे ऐसे शब्दों का निर्माण कर दिया गया है जो अक्सर समझ से बाहर हो जाते है ! सहज शब्दों की जगह बनावटी शब्दों ने ले ली है ! अंग्रेजी से अक्षरशः अनुवाद की प्रवृत्ति ने भी राज भाषा के व्यवहारिक प्रयोग को बाधित किया है ! राज भाषा के रूप मे सरकारी हिन्दी का उपयोग जब सामने आता है तो वो किसी और ही दुनिया की भाषा महशूस होने लगती है ! हिन्दी का सहज रूप मे प्रयोग न किया जाना सरकारी कार्यालयों मे हिन्दी के सम्यक उपयोग को बाधित करता है ! पुरी की पुरी मानसिकता अंग्रेजी के साथ खड़ी है हो हिन्दी को राजभाषा के रूप मे इतना क्लिष्ट कर दे कि लोग इसका व्यवहार करने की बजाय अंग्रेजी अपनाना सुलभ लगे !

सरकारी हिन्दी की दुरुहता को अगर किनारे कर दें तो हिन्दी की प्रगति को अनदेखा नही किया जा सकता ! हिन्दी दिनानुदिन स्वीकार्य और प्रयोग मे है ! हिन्दी हमारे मातृभाषाओं से इतने करीब है कि मातृभाषा ही बन गई है ! हिन्दी का सम्मान समेकित रूप मे राष्ट्र का सम्मान भी है ! जब एक राष्ट्र एक देश की बात करते है तो समेकित रूप मे एक ही भाषा है हिन्दी – सरल सहज स्वीकार्य !

------ अश्विनी कुमार तिवारी ( 14/09/2017 )        

No comments:

Post a Comment