Thursday, January 1, 2015

फिर से इक साल, नया और, चला आया हैं ।

फिर से इक साल, नया और, चला आया हैं ।

फिर से इक साल, नया और, चला आया हैं ।
स्वप्न आँखों में, मन में फूल खिला डाला हैं ॥
बीते सालों की उम्मीदों को, परवान नया देने ।
फिर से इक साल, नया दौर, चला आया हैं ॥

फिर से इक साल, नया और, चला आया हैं ।
स्वप्न आँखों में, मन में फूल खिला डाला हैं ॥

 कुछ कसमें खाई थी, कुछ भूला भी डाला हैं ।
कुछ स्वप्न भी अधूरे, गत साल बचा डाला हैं ॥
कुछ आलस, कुछ सुस्ती को, स्फूर्ति नया देने ।  
फिर से इक साल, नया ठौर, चला आया हैं ॥

फिर से इक साल, नया और, चला आया हैं ।
स्वप्न आँखों में, मन में फूल खिला डाला हैं ॥

अतीत में बोया जो, वो फसल भी काटना हैं ।
इस साल फिर भविष्य का, बीज नया बोना हैं ॥
हमारे हीं कर्मों को, फिर से आयम नया देने ।
फिर से इक साल, नया पौर, चला आया हैं ॥

फिर से इक साल, नया और, चला आया हैं ।
स्वप्न आँखों में, मन में फूल खिला डाला हैं ॥

जीवन में अविस्मरणीय सा, अतीत बनाना हैं ।
बर्तमान के धागे से , भविष्यत् भी बुनना हैं ॥
इतिहास की किताब को , अध्याय नया देने ।
फिर से इक साल, नया दौर, चला आया हैं ॥

फिर से इक साल, नया और, चला आया हैं ।
स्वप्न आँखों में, मन में फूल खिला डाला हैं ॥

सरल सुगम सुबोध सहज, स्वच्छ तनिक होना हैं ।
काम क्रोध लोभ मोह मद, तज विकार रहना हैं ॥
व्यक्तित्व के, उड़ान को , आकाश नया देने । 
फिर से इक साल , नया ठौर , चला आया हैं ॥

फिर से इक साल, नया और, चला आया हैं ।
स्वप्न आँखों में, मन में फूल खिला डाला हैं ॥

---- अश्विनी कुमार तिवारी ( 01.01.2015 ) 

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