गाँव :- एगो सपना
रामचरन : -
ए भकभेलरा ! तनी
बतावते गाँव घर के हाल ।
खेत पथारी कईसन बाटे
का काका के हाल ॥
गाछ विरिछ गोरू बछरू
और पनघट के हाल ।
खेलत होईहें लईके
लईकी का बा सब खुसहाल ॥
बड़ा मन करेला हमके
फेर छोट होई जईंती ।
खुब चुभकतीं पोखरा
में आ खेलत पढ़े जईंती ॥
झुठ बोल के भागल
करतीं स्कूलवा से रोज ।
और घुस के खुब चोरा
के गन्ना चाभल करतीं ॥
सुनल करींले रोज
नियुज पर बड़ा योजना चलेला ।
उबियाताटे मन शहरन
से भागि आईं मन करेला ॥
एईजा त केहु से
केहुके ना कोई मतलब होखेला ।
अपनापन आ प्रेम के
खातिर मन छुछुवाते रहेला ॥
भक् भेलर :-
ए रामचरना ! का
बतियाँई सब कुशल मंगल बा ।
तोहर बात सुनि के
हमार आँखि नोरा गईल बा ॥
गाँव में बचपन वाला
आब बात बचल नाही बा ।
सपना से बाहर आजा
तूँ उहे अब गाँव नाही बा ॥
खेत गाँव के बिकात
जाता शहर घुसल आवता ।
गाछ विरिछ सब कटत
जाता हरियाली सिमटता ॥
काका काकी असगर बा
लोग लईका बाहर रहता ।
लौकत नईखे दिनवो में
अब बस केहुँगा चलता ।
गाँव मे बस बुढ़वा आ
बुढ़िया लईके लईकी बहरा ।
बच्चा बुतरू भी नईखे
अईसन समय के लहरा ॥
गोरू बछरू सब सपना
में पैकेट के दूध मीलता ।
पोखरा पोखरी सब भरि
गईल बचल कहाँ पनघटवा ॥
गन्ना कहाँ बोवाता
अब सब मील बन्द बा कबसे ।
कोल्हू भी सब बन्द
बिकाईल गुड़ भी बाटे सपने ॥
खेती खातिर मजदूरा
अब खोजलें नाही मिलेलें ।
नवहरुआ सब बहरा
गईलें जे बा उहो चोनरालें ॥
स्कूल के हाल न पूछ
काहें कि शब्द उ नैईखे ।
जे बरनन कर सके
दुरदसा जउन उ भोगताटे ॥
मास्टर साहेब बस
खिचड़ी देखें लईके खाये जाने ।
पढ़ाई और लिखाई के ना
कोनो रिश्ता अब बाटे ॥
बढ़ियाँ घर के लईका
लईकी सब कानवेंट मे जालें ।
ईश्वर जाने पर हमरा लागेला
उ मूर्खे बस बन ताड़े ॥
जेकर खईला के भी
ठेकान ना उ बस स्कूल भरोसे ।
खिचड़ी खालें और भागि
के तनी घरे लेले आवेलें ॥
बिकास योजना के मत
पूछ बस परधान के होला ।
हर सालियें भीआईपी
नम्बर के एगो गाड़ी निकलेला ॥
अब का बतलाई जवन
गाँव के सपना तूँ देखत बाड़ ।
ओकर कवनो ना अंस बचल
मन में बस कोढ़ फूटेला ॥
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