Wednesday, December 24, 2014

गाँव :- एगो सपना



         गाँव :- एगो सपना
रामचरन : -
ए भकभेलरा ! तनी बतावते गाँव घर के हाल ।
खेत पथारी कईसन बाटे का काका के हाल ॥
गाछ विरिछ गोरू बछरू और पनघट के हाल ।
खेलत होईहें लईके लईकी का बा सब खुसहाल ॥

बड़ा मन करेला हमके फेर छोट होई जईंती ।
खुब चुभकतीं पोखरा में आ खेलत पढ़े जईंती ॥
झुठ बोल के भागल करतीं स्कूलवा से रोज ।
और घुस के खुब चोरा के गन्ना चाभल करतीं ॥

सुनल करींले रोज नियुज पर बड़ा योजना चलेला ।
उबियाताटे मन शहरन से भागि आईं मन करेला ॥
एईजा त केहु से केहुके ना कोई मतलब होखेला ।
अपनापन आ प्रेम के खातिर मन छुछुवाते रहेला ॥

भक् भेलर :-

ए रामचरना ! का बतियाँई सब कुशल मंगल बा ।
तोहर बात सुनि के हमार आँखि नोरा गईल बा ॥
गाँव में बचपन वाला आब बात बचल नाही बा ।
सपना से बाहर आजा तूँ उहे अब गाँव नाही बा ॥

खेत गाँव के बिकात जाता शहर घुसल आवता ।
गाछ विरिछ सब कटत जाता हरियाली सिमटता ॥
काका काकी असगर बा लोग लईका बाहर रहता ।
लौकत नईखे दिनवो में अब बस केहुँगा चलता ।

गाँव मे बस बुढ़वा आ बुढ़िया लईके लईकी बहरा ।
बच्चा बुतरू भी नईखे अईसन समय के लहरा ॥
गोरू बछरू सब सपना में पैकेट के दूध मीलता ।
पोखरा पोखरी सब भरि गईल बचल कहाँ पनघटवा ॥

गन्ना कहाँ बोवाता अब सब मील बन्द बा कबसे ।
कोल्हू भी सब बन्द बिकाईल गुड़ भी बाटे सपने ॥
खेती खातिर मजदूरा अब खोजलें नाही मिलेलें ।
नवहरुआ सब बहरा गईलें जे बा उहो चोनरालें ॥ 

स्कूल के हाल न पूछ काहें कि शब्द उ नैईखे ।
जे बरनन कर सके दुरदसा जउन उ भोगताटे ॥
मास्टर साहेब बस खिचड़ी देखें लईके खाये जाने ।
पढ़ाई और लिखाई के ना कोनो रिश्ता अब बाटे ॥

बढ़ियाँ घर के लईका लईकी सब कानवेंट मे जालें ।
ईश्वर जाने पर हमरा लागेला उ मूर्खे बस बन ताड़े ॥
जेकर खईला के भी ठेकान ना उ बस स्कूल भरोसे ।
खिचड़ी खालें और भागि के तनी घरे लेले आवेलें ॥

बिकास योजना के मत पूछ बस परधान के होला ।
हर सालियें भीआईपी नम्बर के एगो गाड़ी निकलेला ॥
अब का बतलाई जवन गाँव के सपना तूँ देखत बाड़ ।
ओकर कवनो ना अंस बचल मन में बस कोढ़ फूटेला ॥       

     ........... अश्विनी कुमार तिवारी ( 24/12/2014 )

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