आओ तुझको सुनाऊँ .....
आओ तुझको सुनाऊँ , मैं कविता प्रिये ।
जिसमे छवि हो तुम्हारी निखरती प्रिये ॥
भोर की लाली सिन्दूरी थोड़ी लिए ,
रात की चाँदनी सी चमकती हुई ।
रात रानी की खुशबू सा मँहका हुआ ,
दिव्य ज्योती सा तेरा वदन हैं प्रिये ॥
आओ तुझको सुनाऊँ , मैं कविता प्रिये ।
जिसमे छवि हो तुम्हारी निखरती प्रिये ॥
दूर से जैसे कोयल कोई
कूँकती ,
वाणी कानों में मिश्री सी रस घोलती ।
जब भी पड़ जाती हो सामनें तुम जरा ,
धड़कनों पर न रहता हैं काबू प्रिये ॥
आओ तुझको सुनाऊँ , मैं कविता प्रिये ।
जिसमे छवि हो तुम्हारी निखरती प्रिये ॥
मैं सागर सा बाँहें
पसारे हुए ,
तुम नदी सी मचलती हुई अप्सरा ।
बूँद गिरती हैं तपती धरा पर अवश ,
तुम वही सोँधी खुशबू हो मेरी प्रिये ॥
आओ तुझको सुनाऊँ , मैं कविता प्रिये ।
जिसमे छवि हो तुम्हारी निखरती प्रिये ॥
.......... अश्विनी कुमार तिवारी ( 19/12/2014)
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