Friday, December 19, 2014

आओ तुझको सुनाऊँ .....



      आओ तुझको सुनाऊँ .....

आओ तुझको सुनाऊँ , मैं कविता प्रिये ।
जिसमे छवि हो तुम्हारी निखरती प्रिये ॥

भोर की लाली  सिन्दूरी  थोड़ी लिए ,
रात की चाँदनी  सी  चमकती हुई ।
रात रानी की खुशबू सा मँहका हुआ ,
दिव्य ज्योती सा तेरा वदन हैं प्रिये ॥

आओ तुझको सुनाऊँ , मैं कविता प्रिये ।
जिसमे छवि हो तुम्हारी निखरती प्रिये ॥

दूर से  जैसे  कोयल  कोई  कूँकती ,
वाणी कानों में मिश्री सी रस घोलती ।
जब भी पड़ जाती हो सामनें तुम जरा ,
धड़कनों पर न  रहता हैं काबू प्रिये ॥

आओ तुझको सुनाऊँ , मैं कविता प्रिये ।
जिसमे छवि हो तुम्हारी निखरती प्रिये ॥

मैं  सागर  सा  बाँहें  पसारे  हुए ,
तुम नदी सी मचलती हुई अप्सरा ।
बूँद गिरती हैं तपती धरा पर अवश ,
तुम वही सोँधी खुशबू हो मेरी प्रिये ॥ 

आओ तुझको सुनाऊँ , मैं कविता प्रिये ।
जिसमे छवि हो तुम्हारी निखरती प्रिये ॥

 .......... अश्विनी कुमार तिवारी ( 19/12/2014)

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