Saturday, December 13, 2014

गाँधी और कृष्ण

    
          गाँधी और कृष्ण दोनो की तुलना पर तो पुस्तक लिखी जा सकती हैं । सर्वप्रथम दोनो को समान स्तर पर ले आना होगा तुलना के दृष्टि से । कृष्ण तो भगवान हैं और वो किसी भी रूप मे स्वीकार्य हैं अतः उन्हे ही ऐतिहासिक मानव मानते हुए गाँधी के सामने रखते हैं क्षमा सहित सिर्फ तुलनात्मक विचारों को प्रतिष्ठित करने हेतु । 
            दोनो का सम्बन्ध कारागार से था - एक का जन्म से दूसरे का कर्म से । दोनो का सम्यक विकास अपने जन्मभूमि से दूर हुआ - एक का गोकुल , बृन्दावन और द्वारिका और दूसरे का अफ्रिका में । दोनो ही अपने देश ,
समाज , विकास , प्रतिष्ठा , और व्यापक बदलाव के लिये लड़े । दोनो लोग और समाज के नब्ज पर गहरी पकड़ रखते थे । दोनो की बाते लोग ध्यान से सुनते थे - शत्रु भी , मित्र भी और भक्त भी । दोनो को उन बातों और घटनाओं के लिये आज भी दोष दिया जाता हैं कि अगर वो चाहते तो शायद - वो घटनाएँ टल सकती थी । दोनो ही सत्य और धर्म के लिये जिये और वे हर परिस्थिति में अपना कर्म निर्धारित करना जानते थे । दोनो ही भारत के नये युग के शुरुआत के कारक और प्रणेता थे । दोनो ही अपने अपने समय की सबसे बड़े नरसंहार के दर्शक और धूरी थे । दोनो को ही इन परिस्थितियों का जिम्मेदार समझा गया जबकि दोनो ही दिल से ऐसा कभी नही चाहते थे । दोनो की हत्या हुई - एक व्याध के तीर से , दूसरा पिष्टल की गोली से । दोनो ही हत्यारे उनका सम्मान भी करते थे । एक खुद राम थे दूसरे राम से जा मिले । दोनो के जाने से देश से एक ज्योति चली गई । दोनो जैसा लोग और समाज बनाना चाहते थे उनके जाने के बाद वो वैसा नही बन सका । दोनो ही और उनका जीवन आदर्श हैं ।
             समाज के इतने अधःपतन के बाद भी दोनो आज भी प्रेरणा और जीवन के उर्ध्वोनुमुखी बिकास के ज्वलंत प्रकाश हैं जिनसे सदियाँ जगमगाती रहेंगी और आने वाली पीढ़ियाँ प्रकाश पाती रहेंगी ।
                        
             ............... अश्विनी कुमार तिवारी ( 13/12/2014 )

               पुनःश्च : श्री विकास तिवारी के प्रश्न :-  " क्या कृष्ण और गांधी में तुलना की जा सकती है ?"   के संवेदंशील और आग्रही अनुरोध के परिणाम स्वरूप ये आलेख लिखा जा सका हैं । उनका धन्यवाद कि इन्होने मुझसे वो लिखवाया जो शायद मैं सोचता भी नही ।
             ...............  (अश्विनी कुमार तिवारी) 
 

4 comments:

  1. अत्यंत रुचिकर तुलना है! हालाँकि दोनों ने मार्ग अलग चुने, परन्तु दोनों का अंतिम लक्ष्य समाज में शांति एवं व्यवस्था की स्थापना ही था| गांधी ने जहाँ किसी भी परिस्थिति में हिंसा को वर्जित एवं निंदनीय मन, वहीँ कृष्ण ने शांति के सभी विकल्प समाप्त हो जान पर ना केवल हिंसा को अपरिहार्य माना अपितु इसे एक क्षत्रीय का प्रथम कर्त्तव्य माना!

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  2. अत्यंत ही मनोरम तुलना की है आपने। दोनों ही प्रेरणा के अदभुत स्रोत है।

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  3. गांधी ने देश को बर्बादी के सिवा कुछ नही दिया है। कृष्ण से उनकी तुलना करना कृष्ण का अपमान नही है तो क्या है

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