Monday, August 24, 2015

सिय बन्दना : जय जय जय मिथिलाक धिया



जय जय जय मिथिलाक धिया

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जय जय जय मिथिलाक धिया ,
हे जनक – नन्दनी राम प्रिया ।
शिवधनु लय नित अरिपन करय ,
छी मिथिला आँखिक नेह सिया ॥

सहजहि आनन काञ्चन तन ,
मणिकाञ्चन मन अपरूप सिया ।
हे विष्णु प्रिया छवि भूमि जया ,
लवकुशक जननि हे मातु सिया ॥

रहि वाम सुभग कौशल्या सुत ,
बनि शक्तिसुधा सत् संग सिया ।  
जबहि विषम बिधि काल भया ,  
रघुवर के मान वरेण्य सिया ॥

जब भरल पापघट पाप प्रबल ,
रावण के भेलथि काल सिया ।
ल' गेल हरि, ठगि, हरिक प्रिया ,
तारल अधम दशकन्ध सिया ॥  

अपना पर सब लय लांछन ,
संकट नृप रामक टालि सिया ।
भूपति कहल पुनि अग्निसाक्ष्य ,  
भूमि मध्य गेलि पैसि सिया ॥

बन्दहु युगल चरण नित सुन्दर ,  
हृदय धारि छवि राम सिया ।
भनहि अश्विनी सिया सियापति ,
बसहु हृदय जस हनुमत हिया ॥

-------- अश्विनी कुमार तिवारी ( 24/08/2015 )

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