जय जय जय मिथिलाक
धिया
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जय जय जय मिथिलाक
धिया ,
हे जनक – नन्दनी राम
प्रिया ।
शिवधनु लय नित अरिपन
करय ,
छी मिथिला आँखिक नेह सिया
॥
सहजहि आनन काञ्चन तन
,
मणिकाञ्चन मन अपरूप
सिया ।
हे विष्णु प्रिया छवि
भूमि जया ,
लवकुशक जननि हे मातु
सिया ॥
रहि वाम सुभग
कौशल्या सुत ,
बनि शक्तिसुधा सत् संग सिया ।
जबहि विषम बिधि काल भया
,
रघुवर के मान वरेण्य
सिया ॥
जब भरल पापघट पाप
प्रबल ,
रावण के भेलथि काल
सिया ।
ल' गेल हरि, ठगि, हरिक
प्रिया ,
तारल अधम दशकन्ध सिया
॥
अपना पर सब लय लांछन
,
संकट नृप रामक टालि
सिया ।
भूपति कहल पुनि
अग्निसाक्ष्य ,
भूमि मध्य गेलि पैसि
सिया ॥
बन्दहु युगल चरण नित
सुन्दर ,
हृदय धारि छवि राम
सिया ।
भनहि अश्विनी सिया
सियापति ,
बसहु हृदय जस हनुमत
हिया ॥
-------- अश्विनी
कुमार तिवारी ( 24/08/2015 )
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