Saturday, October 20, 2012

फिर भी !


           फिर भी !
  
परिवर्तन  संसार  का  नियम  हैं , और  जड़त्व  भी ,
नये निर्माण को टूटती है जड़ता , तो होता है कष्ट भी ।
कोई नही जानता टूटते वक्त , विनाश है  या सृजन भी ,
कष्ट से गुरजते हुए आगे , मिले कहीं , कोई खुशी भी ॥

जो  जहाँ जैसा , अपने हिसाब से , रहना है तार्किक भी ,
तन  मन  को  भी लगता ये , कितना सुविधाजनक भी ।
पर समय को एकरसता कहाँ मंजूर , आदत से मजबूर भी ,
बदलते रहना , और  बदल  देना , सब उसकी मर्जी भी ॥

हम  अपनी  चाल  चलते  और  वो पासे  अपनी  भी ,
कुछ तो  चला ले पा रहे  मर्जी अपनी , लगता  यूँ भी ।
हर खेल की तरह अनिश्चितताओं में गुजरती जिन्दगी भी ,
चलती है समय के साथ , कुछ लम्हे हमारे हिसाब से भी ॥

हवा का धर्म है बहना  पर रुख  मोड़  तुफानो  का भी ,
कर लेते हैं रौशन चिराग  जियाले  अँधेरे घरों  में  भी ।
हैसला हो इरादों में  तो चला आता  आस्माँ जमीं पर भी ,
तकदीरें पलट जाती जुनून से हो समय विपरीत तब भी ॥  
         
       .............  अश्विनी कुमार तिवारी ( 20.10.2012 )

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