एनएचपीसीयन कहलाते हैं
हम ।
अथाह जल की उर्जा से
रौशनी निकाल कर ,
घरों ही नहीं दिलों को
भी रौशन करते हैं हम ,
एनएचपीसीयन कहलाते हैं
हम ।
दुर्गम पहाड़ उफनती नदी
घने जंगलों पर ,
सभ्यता से पहले अपने
कदम रखते हैं हम ,
एनएचपीसीयन कहलाते हैं
हम ।
अपनों से दूर समाज से कटे देश की सेवा मगर ,
खाण्डवप्रस्थ को इंद्रप्रस्थ
बनाते हैं हम ,
एनएचपीसीयन कहलाते हैं
हम ।
प्रकृति की गोद में प्यार से पर्यावरण को छेड़ते हैं पर ,
स्वच्छ उर्जा का सपना
भी लिये चलते हैं हम ,
एनएचपीसीयन कहलाते हैं
हम ।
हर समय एक नयी चुनौती नयी राहे नया सफर ,
कभी लकीर के फकीर नही
कहलाते हैं हम ,
एनएचपीसीयन कहलाते हैं
हम ।
आज की चमकती दुनिया में हमें पहचानता नही कोई ,
पर तरक्की की नीव के
पत्थरों से हम ,
एनएचपीसीयन कहलाते हैं
हम ।
--------------------- अश्विनी कुमार तिवारी ( 07 नवम्बर
2012 को एनएचपीसी लिमिटेड के स्थापना दिवस के अवसर पर एनएचपीसी के कर्मचारीयों को समर्पित
ये कविता मैंने लिखी और मंच पर सुनाई )
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