सब पा लेने के बाद क्या शेष हैं ।
हम सब सूचनाओं द्वारा सभी ओर से घिरे हैं । भाँति भाँति की सूचनायें । कुछ उपयोगी कुछ अनुपयोगी । क्या , यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर । सूचनाओं से जानकारी क्रमशः जानकारी से बोध और बोध से ज्ञान कि प्राप्ति । जैसे ही व्यक्ति ज्ञान उपलब्ध करता है दुविधा की स्थिति उत्पन्न होनी स्वाभिक है । जितना अधिक ज्ञान उतनी अधिक द्विधा । ऐसे में सही मार्ग चुनना या किसी निर्णय पर पहुँचना आसान नही है ।
कारण स्पष्ट है कि ज्ञान के समुद्र मे फँसा व्यक्ति वास्तविक समुद्र में फँसे व्यक्ति की तरह दिशाहीन हो जाता हैं । या तो हर तरफ ही रास्ता या फिर कोई रास्ता नही । विचित्र सी स्थिति । ऐसी स्थिति में आप का संयम विवेक और बुद्धि का समन्व्य ही आपको द्विधा से निकाल सकता है पर शायद ही आपका ज्ञान आपको ऐसा मौका दे । ऐसे में दो तरह के व्यक्ति आपकी मदद कर सकते है या तो वो जो आपके ज्ञान क्षेत्र से बाहर खड़ा व्यक्ति जिसे आप किनारे के पास खड़ा व्यक्ति समझ सकते है या इतना सम्पन्न और निष्णात व्यक्ति जो उसमे कूद कर आपको बचा ले निकाल ले या सही दिशाबोध करा सके । यह व्यक्ति वैसा होगा जो ज्ञान , कर्म और समय के सही योग को समझते हुये इन सब से परे होगा और जो इनका प्रयोग औजार की तरह कर सकता होगा । इस व्यक्ति को आप गुरू की संज्ञा दे सकते हैं । भय , निर्भयता और दुविधा का कारक है ज्ञान और ज्ञान से मुक्ति ही मोक्ष और मोक्ष का मतलब आप ज्ञान में नहीं बल्कि ज्ञान आप मे समन्वित हैं । ऐसी स्थिति प्राप्त होने के बाद ही आप के पास वो दृष्टि होगी जिससे आप सत्य कह लें ब्रह्म कह लें या इश्वर कह लें सभी देख सकते हैं । पर क्या वाकई ऐसी स्थिति आने पर कुछ देखने , खोजने , समझने या कहने की जरूरत रह जायेगी ! मेरे हिसाब से तो कुछ शेष नही बचता । पर करने को जरूर बचता हैं सेवा ! वो शक्ति जिसे समझने के बाद समझने को कुछ शेष नही रहता उसकी सेवा । चुकि वो सर्वव्याप्त है इसलिये जहाँ तक अपनी शक्ति हो सबकी सेवा अर्थात् अपरोक्ष रूप से उसी की सेवा । एक और जिम्मेदारी भी शेष रह जाती है जहाँ तक सम्भव हो जैसे आपको किसी ने निकाला आप भी निकालें क्योंकि अब आपको भी इश्वर ने समर्थ बनाया हैं । कम से कम किनारे पर खड़े व्यक्ति तो हो ही सकते हैं ।
-------------------- अश्विनी कुमार तिवारी ( 01/12/2012 )
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