Saturday, June 16, 2012

हिन्दी व्याकरण : वर्ण विचार , भाग (छः )


बलाघात ( स्वराघात )
बोलने में प्रायः ऐसा देखा जाता है कि वाक्य के सभी अंशो पर बराबर बल या जोर नही दिया जाता । कभी वाक्य के एक शब्द पर जोर अधिक होता है तो कभी दूसरे पर । इसी प्रकार एक शब्द की ध्वनियों पर भी बराबर बल या आघात नही पड़ता । शब्द जब एक अक्षरों का होता है तो इन अक्षरों पर भी बल बराबर नही पड़ता , किसी पर कम किसी पर ज्यादा । इसी बल , जोर या आघात को ‘ बलाघात ‘ कहते हैं । भाषा की कोई भी ध्वनि पूर्णतः बलाघात शून्य नहीं होती ।

शब्दों का उच्चारण करते समय किसी वर्ण या अक्षर पर अन्य वर्णों की अपेक्षा जो बिशेष या अधिक बल दिया जाता है उसे स्वराघात कहते हैं ।
जैसे : दिल्ली , सत्य तथा उल्लू शब्दों के उच्चारण में क्रमशः दि , स , तथा उ पर बल पड़ रहा है । अतः इन्हीं पर स्वराघात मानना चाहिए । हिन्दी में स्वराघात का स्थान स्थाई न हो कर अनेक अक्षर वाले शब्द में आदि , मध्य तथा अंत में किसी स्थान पर हो सकता है । जैसे : कमला में ‘क’ पर सालाना में ‘ला’ पर तथा खिड़की में की पर स्वराघात है ।
स्वराघात संबंधी कुछ नियम इस प्रकार हैं –
1.       यदि शब्द के सभी अक्षर ह्रस्व होते हैं तो उपांत्य ( अंतिम अक्षर से पहले वाले ) अक्षर पर स्वराघात होता है । जैसे : अदख , दुलहिन , किसमिस आदि ।
2.       यदि किसी शब्द के मध्य या अंत में अनुच्चरित ( न बोला जाने वाला ) ‘अ’ आ जाता है तो उससे पहले वाले अक्षर पर स्वराघात होता है । जैसा ; ह , कता आदि ।
3.       सन्युक्त तथा द्वित व्यञ्जनों से पहले वाले अक्षर पर स्वराघात होता है । जैसे : हिन्दी , आन्द , मिथ्या , क्की , ग्गी आदि ।
4.       द्विरुक्ति या उसका आभास देने वाले शब्द खण्डों से बने शब्दों के अंतिम दीर्घ अक्षर पर स्वराघात होता है । जैसे : सनसनी , खलबली , बुलबुला आदि ।   
5.       यदि अनेकाक्षरी शब्द में केवल एक ही अक्षर दीर्घ हो तथा अन्य सभी ह्रस्व हों तो स्वराघात दीर्घ अक्षर पर ही होता है । जैसे : कपूत , दिवाकर , पटरी , घड़ी आदि ।
6.       विसर्गयुक्त अक्षरों में स्वराघात रहता है । जैसे दुःख , अतः , यहाँ शब्द विकार से स्वराघात का स्थान नही बदलता । जैसे : दुःखी ।
हिन्दी प्रदेश काफी बड़ा है । अन्य अनेक भाषिक नियमों की तरह बलाघात मे भी पूर्ण एकरूपता नहीं है ।
हिन्दी में बलाघात ऐसे तो ध्वनि , अक्षर , शब्द , वाक्यांश तथा वाक्य इन पाँच स्तरों पर है , किंतु व्ह ध्वनि ग्रामिक केवल शब्द स्तर पर ही है । वाक्य में प्रयुक्त विभिन्न शब्दों पर बल देने से विभिन्न प्रकार के अर्थ ( निश्चय , आधिक्य , आज्ञा , तुलना आदि ) निकलते हैं । यों बलाघात के साथ – साथ ऐसे वाक्यों में अनुतान और संगम मे भी अंतर पड़ता है ।
जैसे : (क) उस किरायदार को एक खिड़की वाला मकान चाहिये ।
      (ख) उस किरायदार को एक खिड़की वाला मकान चाहिये ।
(क) मे अर्थ है जिसमे एक खिड़की हो (ख) में अर्थ है खिड़की युक्त हवादार ।

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