आज संसद साठ की है हो गई !
आज संसद साठ की है हो गई ,
पर बुजुर्गियत अभी आई नही ।
बच्चों कि तरह सब झगड़ते हैं यहाँ ,
फैसला क्यूँकर हो अब सम्भव यहाँ ।
जब हमीं को नाज ना अपने वतन पे दोस्तों ,
किस मुँह से कहते हैं कि नेता सभी खराब हैं ।
पर बुजुर्गियत अभी आई नही ।
बच्चों कि तरह सब झगड़ते हैं यहाँ ,
फैसला क्यूँकर हो अब सम्भव यहाँ ।
जब हमीं को नाज ना अपने वतन पे दोस्तों ,
किस मुँह से कहते हैं कि नेता सभी खराब हैं ।
चुनने कि आजादी का देखो हस्र क्या है हो रहा ,
चावल सभी अच्छे , गोदामों मे पड़ा ही सड़ रहा ।
सब जानते है घर बहुत गन्दा पड़ा हैं ,
पर सफाई मे भला कोई हाथ गन्दे क्यूँ करे ।
हर शक्स यहाँ ये चाहता है , 'कोई' निकल कर कुछ करे ,
पर वो 'कोई' हम नहीं , आगे बढ़े जो , और जो चाहे करें ।
जब संगठन ही शक्ति हैं और जनता ही जनार्दन ,
फिर भला भगवान क्योँ हो अवतरित इस जमीं पर ।
आज संसद साठ की हो उद्वेलित कर गई हैं ,
कवि हृदय में एक लहर , ज्वार सी उठ रही हैं ।
जनतंत्र के मन्दिर में पुजारी ढंग के रक्खो जरा ,
ताकि जन की भावना अब राष्ट्र की रचना करें ।
मत हटें कर्तव्य से जो कुछ हमारे हेतु हैं ,
तब ही सही होंगे सड़क से संसद के जो सेतु हैं ।
------- अश्विनी कुमार तिवारी ( 13.05.2012 , संसद के साठ बर्ष पूरे होने पर )
बहुत अच्छे!
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