Thursday, May 10, 2012

बाईक की सवारी


             बाईक की सवारी

दो  अनाड़ी  निकल पड़े  थे , करने  बाईक  सवारी ।
रोड  पहाड़  का ऊँचा  नीचा , बदन  के  दोनो भारी ॥

छुट्टी  का दिन  रविवार का , घर मे हो रहे बोर बड़े ।
ना सोचा  ना खुद को देखा , मंग्पु  घूमने निकल पड़े ॥

खाया  पिया  तीन बजे फिर , पहने  ब्रांडेड  कपड़े नये ।
और  मित्र ने  लिया कैमरा , पानी  बोतल निकल लिये ॥

हंड्रेड  सीसी  का  स्प्लेंडर , दो  सौ  किलो  बैठ  लिये ।
सॉकर  सहमा सिमट गया था , गाड़ी डगमग बढ़ा दिये ॥

हँसते  बतियाते  जा  रहे  थे , काटे  तीखे  मोड़  कई ।
फिर लगा कि नम्बर दो मे शायद , गाड़ी अपनी बढ़े नही ॥

दो  विचार  दो  आदमी , मन  मे  फिर  एक द्वन्द हुआ ।
दो  की  जगह एक लगा लूँ , निर्णय फिर उस पल लिया ॥

क्लच  दबाया  गियर  बदला , फिर  ना  जाने क्या हुआ ।
अगला  चक्का  हवा में  था , आँखों  मे अँधेरा छा गया ॥

पाराफिट  से  टिकी हुई , गाड़ी  थी अबतक  सिसक रही ।
चाभी निकाल कर बन्द किया , पर चोट का हमको पता नही ॥

मित्र  पैर  को  पकड़े  अपने , पारफिट  पर थे  बैठ गये ।
गई  नजर  अपने  घुटने पर , फटे  पड़े  थे पैंट  नये ॥

घूमने  के  पहले  प्रोग्राम  का , हश्र  हुआ  ऐसा  मानो ।
सर  मुड़ाते  ही  ओले ज्यों , पड़ने  लगे  मित्र  जानो ॥

नजर पड़ी जबसे चोट पर , दर्द तो फिर बढ़ने ही लगा ।
चलचित्र सा फिर आँखों मे , आगे पीछे का चलने लगा ॥

हँसते  थे  , पछताते थे , उस घड़ी को कोसते जाते थे ।
पर  लौट के  बुद्धू घर आने के , सिवा न कोई रस्ते थे ॥

जैसे - तैसे  बाईक उठाई , हेंडिल  था थोड़ा  मुड़ा हुआ ।
चक्का  अगला मडगार्ड  से , फँस  बढ़ने से  अड़ा हुआ ॥

थोड़ा बहुत ठोक ठाक कर , गाड़ी  चलने के योग्य किया ।
डरते - डरते  जैसे - तैसे , बैठ  प्रभु  को  याद  किया ॥

जान  बची  तो लाखो पाये , पैर  में पट्टी  को बँधवाये ।
डाँट  प्यार  सब खाने  को , लौट  के  बुद्धू को घर आये ॥   

    ........ अश्विनी कुमार तिवारी ( 10.05.2012 )

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