हमारे दिल से आपके दिल तक
हमारे दिल से आपके दिल तक ,
बात निकली है तो जायेगी दूर तक ,
ये ‘किरण’ जो चली है यहाँ से वहाँ तक ,
रौशनी कर देगी वहाँ , पहुँचेगी जहाँ तक ।
हमारे दिल से आपके दिल तक ,
एक पुल विचारोँ का किनारे तक ,
फ़ासले मिटा देगा दरमियाँ अभी तक ,
‘किरण’ सृजन का , पहुँचेगा अम्बर तक ।
हमारे दिल से आपके दिल तक ,
शम्मा जलती रहे मगर तब तक ,
रौशन न कर दे जहाँ जब तक ,
प्राची को चीर ’किरण’ धरती तक ।
हमारे दिल से आपके दिल तक ,
एक खामोशी सी थी जो अभी तक ,
एक ‘किरण’ जो सन्नाटे तक ,
छिटकी हैं लहर उठने तक ।
हमारे दिल से आपके दिल तक ,
बात आती नही जो लबोँ तक ,
बन कर इक ‘किरण’ चलती अनवरत ,
आँखे बोलती हैं , असर होने तक ।
हमारे दिल से आपके दिल तक ,
आखिर क्या जोड़ता है अभी तक ,
एक ही ज्योति की ‘किरण’ हम सब ,
कहता रहूँगा मै ‘अश्विनी’ , कलम रुकने तक ।
........... अश्विनी कुमार तिवारी ( 19.09.2011 )
कविता सुनें .........
कविता सुनें .........
Mere dil tak pahunchi lekin dimmag bhi prasanna ho gaya..Utkrishta kee koti mein dalenge aapki is kavitaa ko Pandit jee....
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