Friday, September 30, 2011

श्री सरस्वती स्तोत्रम्

या   कुन्देन्दुतुषारहारधवला    या    शुभ्रवस्त्रावृता ,
या   वीणावरदण्डमण्डितकरा  या  श्वेत  पद्मासना ।
या   ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः   सदा   वन्दिता ,
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥ 




अर्थ :- जो कुन्द के फूल, चन्द्रमा, बर्फ, और हार के समान श्वेत हैं , जो शुभ्र कपड़े पहनती हैं , जिनके हाथ उत्तम वीणा से सुशोभित हैं , जो श्वेत कमलासन पर बैठती हैं , ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देव जिनकी सदा स्तुति करते हैं और जो सब प्रकार की जड़ता हर लेती हैं , वे भगवती सरस्वती मेरा पालन  करें ।






शुक्लां   ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां     जगद्व्यापनीं ,
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् ।
हस्ते स्फाटिकमालिकां च दधतीं पद्मासने संस्थितां ,
वन्दे  तां  परमेश्वरीं   भगवतीं   बुद्धिप्रदां  शारदाम् ॥ 


अर्थ :- जिनका रूप श्वेत हैं , जो ब्रह्म विचार की परम तत्व हैं , जो सब संसार में फैल रही हैं , जो हाथों मे वीणा और पुस्तक धारण किये रहती हैं , अभय देती हैं , मूर्खता रूपी अन्धकार को दूर करती हैं , हाथ में स्फटिक मणि की माला लिये रहती हैं , कमल के आसन पर विराजमान होती हैं और बुद्धि देने वाली हैं , उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की वन्दना करता हूँ ।

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