Tuesday, June 7, 2016

॥ अथ कथा भस्मासुर ॥


 

॥ अथ कथा भस्मासुर ॥

 
 सुनहु एक आजु कथा सुधी जन मनकेँ ध्यान लगाय  
कोना भेलथि देवाधि देव , एक  बेर बिकट  निरुपाय ॥
जा क कहल कथा पति लक्ष्मी , सौँ  विस्तार सुनाय ।
आब अहीं टा स सम्भव अछि गौरीपति हित न्याय ॥१॥

एक असुर छल  नाम वृकासुर, अति घोर तपस्या लीन ।
चिड़ैक खोता बाल्मिकि बाँबी घोड़न छत्ता संग तल्लीन ॥
नम: शिवायक जाप जपत नित  विरत देह रत लवलीन ।
देखि दशा मनमाँझ विचारल अयलै शुभ योग नवीन ॥२॥

कय संग मे पार्वती, जा कय पुनि दरसन प्रति नेह ।
उठल झाड़ि देह भेल दण्डवत मनमे उपजल अति स्नेह ॥
मुदा हाय दुर्भाग्य असुर मति  कखनो सुधरल  की ठेह ।
असुर सदति असुरे रहै छै कतबो तप दान प्रतिष्ठा गेह ॥३॥

मांगल वरदान द दियै हाथ  माथ जकरा  हम राखि ।
भसम हुए तत्काल  तुरतहि  हत प्राण  पखेरू पाखि  
बन्हल वचन  भोला भँडारी  पित्त घोंटि  मन राखि ।
कहलहुँ तथास्तु पुनि मर्यादा शिव दरशन के राखि ॥४॥

देखि  पार्वती  डोलि गेल ओहि अधम असुर केर माथ ।
कैल विचार बनि भस्मासुर दियै भोलहि के माथा हाथ ॥
अपन देल वरदान सँ बन्हल , भ निरुपाय पड़ेलहुँ बाट ।
आब रखु पत हे जगदीश, अपन बहीनक पति के धाख ॥५॥

हरि  हर के दुःख हरण लेल, रचल मोहिनी रूपक जाल ।
जा कय पथ मे भस्मासुरके, ठाढ़ रूप राशि केर ज्वाल ॥
मोहित भय मोहिनी रूप सँ, चकित भेल भस्मासुर भाल ।
भय विनीत मति कैल पुनीत, प्रणय निवेदन छन तत्काल ॥६॥  

इठला कय बाजलि मोहिनि संकल्प एक हमर मन माँझ ।
होयत पति मोर वैह सुलक्षण जे देखौत हमरा संग नाच ॥
मोहित मति पुनि असुर कहल हम शिवक भक्त महान ।
नटराजक केर भक्त के कहि आबाय नञि अनुपम नाच ॥७॥

भेल शुरू स्रृष्टिक  कल्याणे  अद्भुत  मोहिनिक  ताल ।
संग द रहल  भस्मासुर हर  एक  उचित  पद  मात ॥
भेल नृत्य  घनघोर बिसरि गेल  सुधि असुर  महान ।
जानि समय उचित मोहिनी फेकल मोहक मुखहास ॥८॥

धयल नृत्यक  मुद्रा  मे मोहिनी  निज  माथहि हाथ ।
दैत उतारा भस्मासुर राखल, अपन हाथ अपनहि माथ ॥
भयल  भस्म  तत्काल  प्रभावे, शिव  वरदानक साध ।
अपन कुकर्मक फल भोगल भस्मासुर अपनहि हाथ ॥९॥

कहल  अश्विनी  शीश नवाय  हरि हर के हिय राखि ।
अपन  शक्ति  के  रखु सम्हारि संग विवेक के पाँखि ॥
कथा शक्ति के  दुरुपयोग के  जानल  सुनल  सुनाय ।
गुनैत रहु निज ध्यानहि हरि हर हरि जायत हरि आय ॥१०॥

----- अश्विनी कुमार तिवारी ( 07/06/2016 )

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