॥ अथ कथा भस्मासुर ॥
जा क’ कहल कथा पति लक्ष्मी , सौँ विस्तार सुनाय ।
आब अहीं टा स’ सम्भव अछि गौरीपति हित न्याय ॥१॥
एक असुर छल नाम वृकासुर, अति घोर तपस्या लीन ।
चिड़ैक खोता बाल्मिकि बाँबी घोड़न छत्ता संग तल्लीन ॥
नम: शिवायक जाप जपत नित विरत देह रत लवलीन ।
देखि दशा मनमाँझ विचारल अयलै शुभ योग नवीन ॥२॥
ल’ कय संग मे पार्वती, जा कय पुनि दरसन प्रति नेह ।
उठल झाड़ि देह भेल दण्डवत मनमे उपजल अति स्नेह ॥ मुदा हाय दुर्भाग्य असुर मति कखनो सुधरल की ठेह ।
असुर सदति असुरे रहै छै कतबो तप दान प्रतिष्ठा गेह ॥३॥
मांगल वरदान द’ दियै हाथ माथ जकरा हम राखि ।
भसम हुए तत्काल तुरतहि हत प्राण पखेरू पाखि ॥बन्हल वचन भोला भँडारी पित्त घोंटि मन राखि ।
कहलहुँ तथास्तु पुनि मर्यादा शिव दरशन के राखि ॥४॥
देखि पार्वती डोलि गेल ओहि अधम असुर केर माथ ।
कैल विचार बनि भस्मासुर दियै भोलहि के माथा हाथ ॥अपन देल वरदान सँ बन्हल , भ निरुपाय पड़ेलहुँ बाट ।
आब रखु पत हे जगदीश, अपन बहीनक पति के धाख ॥५॥
हरि हर के दुःख हरण लेल, रचल मोहिनी रूपक जाल
।
जा कय पथ मे भस्मासुरके, ठाढ़ रूप राशि केर ज्वाल
॥ मोहित भय मोहिनी रूप सँ, चकित भेल भस्मासुर भाल ।
भय विनीत मति कैल पुनीत, प्रणय निवेदन छन तत्काल ॥६॥
इठला कय बाजलि मोहिनि संकल्प एक हमर मन माँझ ।
होयत पति मोर वैह सुलक्षण जे देखौत हमरा संग नाच ॥
मोहित मति पुनि असुर कहल ह’म शिवक भक्त महान ।
नटराजक केर भक्त के कहि आबाय नञि अनुपम नाच ॥७॥
भेल शुरू स्रृष्टिक कल्याणे अद्भुत मोहिनिक ताल ।
संग द रहल भस्मासुर हर एक उचित पद मात ॥भेल नृत्य घनघोर बिसरि गेल सुधि असुर महान ।
जानि समय उचित मोहिनी फेकल मोहक मुखहास ॥८॥
धयल नृत्यक मुद्रा मे मोहिनी निज माथहि हाथ ।
दैत उतारा भस्मासुर राखल, अपन हाथ अपनहि माथ ॥
भयल भस्म तत्काल प्रभावे, शिव वरदानक साध ।
अपन कुकर्मक फल भोगल भस्मासुर अपनहि हाथ ॥९॥
कहल ‘अश्विनी’ शीश नवाय हरि हर के हिय राखि ।
अपन शक्ति के रखु सम्हारि संग विवेक के पाँखि ॥कथा शक्ति के दुरुपयोग के जानल सुनल सुनाय ।
गुनैत रहु निज ध्यानहि हरि हर हरि जायत हरि आय ॥१०॥
----- अश्विनी कुमार तिवारी ( 07/06/2016 )
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