Thursday, February 4, 2016

बंदित हे शिव आदिसुते



बंदित हेशिव-आदिसुते
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सकल फलाफल सिद्धविनायक बुद्धि सहायक गौरिसुते ।
गणगणनायक ऋद्धिविधायक विघ्नविनासक सिद्धिपते ॥
हर हर शम्भु शि-वाय सनातन शिष्यनुवर्तन मानतुते ।
जयजय हे गण-नाथ गुणाश्रय बंदित हेशिव-आदिसुते ॥1॥ 


मुदितमनोहर मोदक मुग्धक व्याधि भयापद नाशकृते ।
अचर चराचर बुद्धि विशारद बन्दित अग्रसु अम्बसुते ॥
हरिमुख शोभित मुष्टिकआसन तुन्दिलआयसु दर्शनुते ।
जयजय हे गण-नाथ गुणाश्रय बंदित हेशिव-आदिसुते ॥2॥  

परसुप्रहार वि-खण्डितदंतक भार्गव क्रोध नि-पातितते ।
निरखिमहादेव उद्धत युद्धव शिर्षहि भूमि नि-पातितते ॥
भवनहु मातु स-रोष भयाप्रद मस्तक हस्तिन प्राप्तनुते ।
जयजय हे गण-नाथ गुणाश्रय बंदित हेशिव-आदिसुते ॥3॥  

अगमअगोचर विश्व विमोचक विद्वत सृष्टि प्र-काशयते ।
गजशुभआनन भालशशांकसु ज्योतिप्रकाशित शांतनुते ॥
दरस दयामय दिव्यसदाशिव अम्बसहज्य ग-णाधिपते ।
जयजय हे गण-नाथ गुणाश्रय बंदित हेशिव-आदिसुते ॥4॥


छन्द : वार्णिक छन्द 
बर्ण : 23 वर्ण ( 7,6,6,4 )
नगण जगण जगण जगण जगण जगण जगण लघु गुरु
III  ISI  I, SI  ISI  I, SI  ISI  I, SI  IS
-------- अश्विनी कुमार तिवारी ( 04/02/2015 )

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