Wednesday, November 23, 2011

वृक्ष और हम


बेटी के स्कूल मे एक बडा पेड़ काटा गया हैं जो संभवतह सूख गया था । पर मेरी पांच साल से कुछ बड़ी बेटी के लिये तो ये पहला ही अनुभव था । आज सुबह स्कूल छोड़ते समय वो बोली '' पापा आपको पता है हमारे स्कूल मे पेड़ काटा गया हैं , आज एक कटा फिर दूसरा कटेगा बाद मे सारे पेड़ कट जायेंगे और हमारा स्कूल नंगा हो जायेगा .... हा हा हा ! '' मैं स्तब्ध हो गया और उसकी शक्ल देखने के सिवा कुछ नही बोल सका !
बाद मे मैने सोचा देखो तो जरा बच्चों का कैसा निच्छल मन होता हैं कितनी आसानी से उसने कितनी बड़ी बात कह दी पेड़ तो सचमुच धरती के वस्त्र ही माने जाते हैं और जिस तरह हम निर्दयता पूर्वक वृक्ष विकास के नाम पर काटते जा रहे है वाकई धरा निर्वस्त्र होती जा रही हैं । नतीजा धरती के साथ साथ हम भी क्रमशः अपनी अस्मिता की रक्षा करने में असमर्थ होते जा रहे हैं । प्रकृति के साथ हमारा अन्योन्नाश्रय सम्बन्ध होता हैं इसलिये एक पर पड़ा प्रभाव दूसरे को भी प्रभावित करता हैं । इसी लिये ज्योँ ज्योँ हम अपनी धरती को भूलते जा रहे अपने आप को भी , सम्बन्धों को भी , उल्लास को भी भूलते जा रहे हैं । आज कल तो हमें ये भी याद नही रह पाता है कि पिछली बार कब हम खुल कर हँसे थे । ज्यों ज्यों हरियाली सिमटती जा रही है हमारी सोच भी संकुचित होती जा रही हैं । आधुनिकता के कारण हमे लगता हैं कि हमारा विकास और विस्तार होता जा रहा हैं पर मुझे लगता है कि वास्तव मे हम सब बिखरते जा रहे हैं ।

बढ़ता जा रहा हूँ मैं  जहाँ की पारखी नजर मे ।
 बिखर कर टूटता सा जा रहा मन के गह्वर में ॥
 ऐसी उँचाई का भला क्या फायदा मित्रों, जिसमे ।  
 कि चरणों मे घड़ी भर माँ के , बैठा नही जाता ॥  

          .... ...  अश्विनी कुमार तिवारी ( 23.11.2011 )

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