Thursday, July 30, 2020

कलंकिनी

कलंकिनी

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रनिवास का विशिष्ट कक्ष !

महारानी कैकेयी के मुख पर भावों का विचलन स्पष्टतया दृष्टिगोचर था । कुछ भी निश्चित नही कर पा रही हों जैसे । विचारों का क्रम शरीर में एक उत्तेजना का संचार कर रहा था ।

अभी अभी कुछ समय पूर्व देवराज इंद्र उनके कक्ष से निकल कर गये हैं । शम्बरसुर संग्राम के समय से ही वे उनके मित्र है पर उनका आना एक बस औपचारिक मित्र का आगमन भर नही था । पितामह ब्रह्मा के अत्यावश्यक संदेश के साथ पधारे थे या कहें कि महारानी के पास भेजे गये थे ।

“ देखिये “ ! इंद्र ने संयत होते हुए कहा

“ महारानी आप समझने का प्रयत्न करिए । वो मानव के रूप में अपने कर्म और मर्यादा से बँधे है । एक बार यदि राज सिंहासन की मर्यादा से बँध गए फिर इस युग में हम मुक्त नही हो पाएँगे । आपको कुछ भी कर के हमारा ये काम करना होगा । राम को बंधनो से मुक्त करना होगा । बिना मुक्त हुए राम वो राम नही बन सकते जिस राम की प्रतिक्षा इस सृष्टि को युगो से है । “

“ आप महाराज को जानते हैं देवराज । यदि उन्होंने निर्णय कर लिया तो फिर उसका बदलना असम्भव है ।“

“ मैं जानता हूँ महारानी तभी तो आपका शरणागत हूँ । तभी सम्भवतः पितामह ने आपके पास ही भेजा है । यह असम्भव काम आप ही कर सकती है । आपके प्रति महाराज की अनुरक्ति भला किससे छुपी है । अब आप ही हमारी अंतिम आशा है “ इंद्र ने हाथ जोड़े ।

दासी के आगमन से महारानी वर्तमान में लौट आती है । “ कहो क्या बात है “

“ युवराज राम आपके दर्शनाभिलाषी हैं । “ दासी ने निवेदित किया ।

“ इस समय ! क्या संयोग है “

कैकेयी ने मुख से चिंता का आवरण हटा कर राम का स्वागत किया

“ प्रणाम माँ ! क्या माँ के पास आने के लिए भी पुत्र के लिए कोई समय निर्धारित है ! “ राम ने विनय पुर्वक कहा ।

“ अरे नही

“ एक बड़ी सी दुविधा उत्पन्न हो गई है माँ ! पिता महाराज सम्भवतः मुझे राजा बनाने की घोषणा करने वाले है और मेरा हृदय इसे अभी स्वीकार करने की स्थिति में नही है माँ ।“

“ क्यूँ पुत्र “

“ मुझे समय चाहिए माँ । मैं अभी इस राष्ट्र को समझना चाहता हूँ । अपनी प्राप्त शिक्षाओं का जीवन में अनुभव करना चाहता हूँ उतारना चाहता हूँ । और माँ

“ तुम स्वयं ये पिता महराज से क्यूँ नही कहते ।“

“ मैंने प्रयास किया था माँ परंतु अपने उत्साह में अन्होने मेरी व्यथा समझी ही नही “

“ तुम अपने पिता को जानते हो पुत्र । यदि उन्होने कोई निर्णय लिया तो मानेंगे नही “

“ पर अपने राम के लिए आपको ये करना होगा “

“ तुम्हे अपनी लोकप्रियता का जरा भी आकलन है पुत्र । तुम्हे पदच्युत करना कितने बड़े लांछना का वायस हो सकता है । तुम्हारी ये माँ सदैव के लिए कलंकित हो सकती है । “

“ माँ हो तुम माँ ! इतना तो कर ही सकती हो माँ अपने इस पुत्र के लिए । ये सारा जगत कुछ भी कहे

“ देखती हूँ पुत्र “

आँखों के कोर नम हो आए थे ।

मन में भाव दृढ होते जा रहे थे । इन आँसुओं को रुकना होगा । पथरा जाना होगा । कलंकित होना होगा !

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उधर महाराज दशरथ ने सभा में राम के राज्याभिषेक की घोषणा कर दी । चारो तरफ एक उत्साह और उत्सव का वातावरण विकसित होने लगा था । इधर कुबड़ी मंथरा अग्निश्च वायश्च लाठी टेकती महारानी के कक्ष की ओर बढ़ी जा रही थी !

 

------- अश्विनी कुमार तिवारी ( 30/07/2020 )


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