महज तारीख नही
महज
तारीख नही एक जनवरी
हो तुम ।
जाने
कितने दिलों की स्वप्न मंजरी हो तुम ॥
एक
आश है कि आज
कुछ बदल जाए ,
गम
विगत के सारे खुशबुओं में ढल जाए ।
कोई
बिछड़ा जो गले आज आके लग जाए ,
उस
एक आनंद के सिहकन की झुरझुरी हो तुम ॥
महज
तारीख नही एक जनवरी
हो तुम ।
जाने
कितने दिलों की स्वप्न मंजरी हो तुम ॥
फैसले
कितने है जो आज की खातिर टाले ,
कितने
सपनों की नींव के नए पत्थर डाले ।
जैसे
नवावधु कोई अपना नया पग घर डाले ,
भले
संकोच भय आनंद की लड़ी हो तुम ॥
महज
तारीख नही एक जनवरी
हो तुम ।
जाने
कितने दिलों की स्वप्न मंजरी हो तुम ॥
------ अश्विनी कुमार तिवारी ( 01 / 01 / 2020 )
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