एक
पन्ना और जैसे जिन्दगी का
लो
एक पन्ना और जैसे जिन्दगी का ,
पलट
गया , मगर न जाने क्या हुआ ।
रोज
जैसी ही लगे है , आज भी तो ,
तारीख
ही बदली है , और क्या हुआ ॥
तारीख
ही न बदली , बदला साल भी ,
पर
सच कहो बदला क्या अपना हाल भी ।
सब
जहाँ , जैसे था , वैसे आज भी ,
जो
आश संजोयी थी पहले आज भी ॥
कुछ
हौसले , संघर्ष , थोड़े ख्वाब भी ,
सच
है कि , थोड़े रीते , गुजरे साल भी ।
कुछ
खो दिया कुछ पा लिया संजोया भी ,
सृष्टि
का कुछ जिन्दगी का थोड़ा बदला हाल भी ॥
फिर
से नए संकल्प सपनों की लिए ,
एक
गठरी जो पड़ी ढीली थोड़ी कस लिए ।
परिवर्तन
जगत का मूल आशय है यहाँ ,
अध्याय
जीवन का नया रचने को फिर से सज लिए ॥
शुभकामना
थोड़ी सी आशीष थोड़ा सा सही ,
एक
पच्चर जिन्दगी की खाट बैठे तो सही ।
जो
रास्ता है सामने , है जरा समतल नही ,
एक
शॉकर गाड़ी के पहिए को लग जाए सही ॥
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अश्विनी कुमार तिवारी ( 01/01/2019 )
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