बुरा न मानो होली
हैं !
भले मिले ना लोग सब
,
यार दोस्त ना रिश्तेदार ।
भले ना कूके कोयल अब
,
ना बहे रंग
रस धार ।
देवर भाभी जीजा साली
की ,
चुहल भले ही गई हो खो ।
मन मे बस काला रंग
लिये ,
तन अपना कोरा संग लिये ।
टीवी एसएमएस फेसबुक
पर
जम कर होली खेली है ।
होली है भई होली है
,
रंग सभी बदरंग हो
चले ,
बाजारवाद की भेँट चढ़े ।
आतंकवाद की वेदी पर
,
जाने कब कितने लाल चढ़े ।
बुनियाद प्यार है
रिश्तों की ,
सब अब पैसों की भेँट चढ़े ।
घर मे हैं बैठे निपट
अकेले ,
अपने सब अरमान छले ।
टीवी एसएमएस फेसबुक
पर
जम कर होली खेली है ।
होली है भई होली है
,
बुरा न मानो होली हैं ।
खो गया अतीत में हूँ
शायद ,
लिये हाथ में पिचकारी ।
रंगो से हैं तरबतर
बदन ,
और पुए की है थाली ।
जात पाँत और ऊँच नीच
,
छोटे बड़े का भेद कहाँ ।
वह दौर गवाँ कर बैठ
लिये ,
सपनो की वो सैगात लिये ।
टीवी एसएमएस फेसबुक
पर
जम कर होली खेली है ।
होली है भई होली है
,
बुरा न मानो होली हैं ।
जब पेड़ नही कोयल
कैसी ,
कैसी फिर फागुनी मस्त बयार ।
कैसी है बही समय की
धार ,
खो गये सभ्यता के औजार ।
जब रंगे सियार फैले
हजार ,
तब रंगों का वो संसार कहाँ ।
बदरंग जहाँ में रंग
कौन सा ,
लेकर खेलूँ मैं अब होली ।
टीवी एसएमएस फेसबुक
पर
जम कर होली खेली है ।
होली है भई होली है
,
बुरा न मानो होली हैं ।
.......... अश्विनी
कुमार तिवारी ( 27/03/2013)
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