Wednesday, March 28, 2012

प्राणी , परमाणु और सपने

.....और चौबीस साल बाद भी वहाँ के लोग उस घटना को भुले नही हैँ । बड़े बुढ़े अपने नातियोँ पोतोँ को सुनाते हैं कि किस तरह धरती डोली थी धूल और धुएँ के गुब्बार उड़े थे । कुछ लोगों के शरीर पर तो रेडियो सक्रिय धूल के प्रभाव आज भी स्पष्ट हैं ।
      अचानक लोगो को महसूस हुआ –कुछ बदलाव –सा आ रहा हैं , माहौल कुछ बदल रहा हैं । सेना के जवान वहाँ कुछ कर रहे हैं । लोग इन सबको नजरअंदाज करते हुए अपने रोजमर्रा के काम कर रहे हैं ।

      पोखरण की सरजमीन !
      सामने एक पेड़ पर बया अपना घोसला बना रही है और बिरजू अकेले ही घर बना रहा है । रह –रह कर वह चिड़िया की ओर देख लेता है । कितने जतन से एक –एक तिनका ला कर रख रही है । पत्तों को करीने से सजा कर सी रही है । बिरजू काम करते वक्त सोच रहा है कि चिड़िया एक दिन अपना घोसला बना लेगी , फिर अण्डे देगी , फिर बच्चे होंगे छोटे छोटे प्यारे –प्यारे । उसी तरह जल्द ही वह अपना सुन्दर घर बना लेगा । फिर वह और धनियाँ मजे मे रहेंगे । और वह तेजी से हाथ चलाने लगता हैं । मकान आधा पूरा हो गया हैं । सुरज भी तपने लगा है । थकान के चिह्न उसके चेहरे पर स्पष्ट हैं । माथे से पसीना पोछते हुए सोचता है कि अब ....... तभी एक मधुर आवाज ने पुकारा –ओ बिरजू ! बिरजू ने पलट कर देखा तो देखता हीं रह गया । सामने लाल हरे रंग के घाघरे चोली मेँ धनियाँ खड़ी हैं । धूप में गौर वर्ण से रक्ताभ हो गये चेहरे पर पसीने कि बुन्दे इस तरह से झिलमिला रहीं हैं जैसे गुलाब की पंखुड़ी पर ओस की बुन्दे !
- ले आ चल , कुछ खा ले ! मै सबसे छुपा कर तुम्हारे लिये खाना लाई हूँ ! बिरजू उतर कर आया । हाथ मुँह धोकर बैठ गया , बोला –धनियाँ ! जल्द ही तुम्हें इस तरह छुप कर खाना नही लाना पड़ेगा । अब हमारा घर तैयार होने वाला है । फिर तुम अपने हाथ से खाना बनाओगी और हम साथ –साथ खायेँगे ।
- अच्छा बिरजू ये सेना के जवान यहाँ क्यूँ आए हैं , पता नही क्या करते रहते हैं !
- पता नही ! कुछ कर रहे होंगे । वैसे जो भी कर रहे होंगे हमारे देश के लिये हीं । उन्हीं के कन्धों पर हमारे देश की सुरक्षा टिकी है । बिरजू खाना खत्म करते हुए कहता हैं ।
      धनियाँ अब चली जाती है । बिरजू लेटे –लेटे सोच रहा है कि किस तरह वो उसके बाप के पास गया तो झिड़कते हुए कहा था –तुम्हारे घर का तो ठिकाना हैं ही नही .. चले आएँ हैं शादी करने । अरे .... जाओ ... जाओ पहले अपने लिए एक घर तो बना लो ! ... शादी कर के क्या आसमान के नीचे रहोगे ...?
      और बिरजू ने चुनौती स्वीकार कर ली थी ।
      इधर बया भी अपना घोसला बनाने में तल्लीनता से जुटी हैं । उधर बिरजू भी घर बना रहा है और जवान भी कुछ करने में व्यस्त हैं .... ।
      अचानक एक दिन सेना के जवान गाँव खाली कर देने को कहते हैं । इधर बया ने अपने घोहले मे अण्डे दे दिये हैं और बिरजू भी अपने घर के छप्पर मे आखिरी बन्धन बाँधने के बाद प्यार से अपने पुरा हुए घर कि तरफ देख रहा हैं । फिर गाँव की तरफ दौड़ पड़ता हैं । पावोँ  मे मानो पंख लग गये हों । घर बनने की खुशी ने थकान पर कब्जा कर लिया है । सेना के जवान भी अपना काम निपटा कर राहत की साँस ले रहे हैं और वहाँ से चलने की तैयारी मे हैं ।
      गाँव मे भगदड़ मची है । लोगो के चेहरे पर आश्चर्य मिश्रित भय व्याप्त हैं । गाँव खाली कराया जा रहा है । लोग कुछ समझ नही पा रहे हैं । बुधना की माँ के गहनोँ की पोटली मिल नही रही पर ढ़ूढ़ने का वक्त नही है । रामू काका गिर पड़े ... एक जवान उन्हे सहारा देता हैं । बच्चे शोर मचा रहे हैं । गाँव खाली होता जा रहा हैं ।
      सुबह चार बजे के लगभग जबरदस्त विस्फोट होता है । धरती का सीना काँपता हैं । धूल और धूएँ का गुब्बार आकाश को ढक लेता हैं । सुबह माननीय प्रधानमंत्री देश को परमाणु परीक्षण की जानकारी देते हैं । वैज्ञानिकोँ को बधाईयाँ दी जाती हैं । सारे देश का माथा गर्व से उचाँ उठता हैं ।
      इधर बिरजू धनीयाँ का हाथ पकड़े बदहवाश सा अपने घर की ओर दौड़ा चला रहा हैं । वहाँ पहूँच कर देखता है उसके सपनोँ का महल धराशायी हो गया हैं । बिरजू ठमक कर रह जाता है ... चित्रलिखित सा ... ! बया का घोसला जमीन पर गिर गया हैं ... अण्डे फूट गये हैं और चिड़िया पेड़ पर अपनी करूण आवाज मे चीख रही है !
                                                                                                                                                                                                                                                     ........... अश्विनी कुमार तिवारी (28/03/2012)

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