Saturday, September 14, 2013

राज भाषा में हुआ हैं .........

राज भाषा   में   हुआ  हैं ,  अजब  सा  घालमेल |
हिंदी अंग्रेजी   की  खिचड़ी में, निपट रहा हैं देश ||

दोगली   सी   नीतियों   के ,  बहुरंगी   हैं   अर्थ |
लोग  बाग  हैं त्रस्त  लड़ रहे , लेकर  अपने  अस्त्र ||

आत्मा   हैं  हिंदी   पर ,  पहने   अंग्रेजी   वस्त्र |
स्वाद   हाथ   का   भूल  रहे , काँटे छूरी के भक्त ||

शब्द शब्द  अक्षर दर अक्षर , रटे जा रहे इंग्लिश के |
कितनी मेहनत कर कर भी , हाय निरक्षर इंग्लिश के ||

स्वाभिमान को कूट - काट , अंग्रेजी से बनते हैं सभ्य |
भले  ना पल्ले एक शब्द  भी, रट जाते हैं बाते सब ||

बिषय समझने का सब श्रम , चढ़ जाता इंग्लिश के हत्थे |
नम्बर भले  मिले  अच्छे पर , विषय कहाँ चढ़ता मत्थे ||

पढ़ें अगर अपनी  भाषा  में, कहें अगर अपनी भाषा में |
समझ बढ़ेगी विषयों की , श्रमहीन साथ जब  भाषा में ||

भाषाओं से द्वेष  नही  हैं, जितनी इच्छा  हो हम सीखें |
ज्ञान से ना नुकसान कोई, ज्ञानी जन अक्सर ही कहते ||

अंग्रेजी  भी  बुरी नही  हैं , कितने  दिल  उसने जीते |
आस  पास जब  खोजेंगे , दिख  जाएंगे  प्रेमी कितने ||

पर गरल सदृश सी लगती हैं , जब सर पर चढ़ कर नाचे |
राजभाषा की नीति दोगली ,  हिंदी की अस्मत नित लूटे ||

संबिधान  का  अनादर  करना , नही  हेतु कभी है मेरा |
पर  नेताओं  के  चक्कर  का , साथ  उसे  है ले डूबा ||

अपनी  दोहरी   चाल थोप , संविधान  पर  मस्त रहे |
रोटी  सब  वो  खा  रहे , बिल्ली  सी तराजू हम देखें ||

आपस में  हमें  लड़ाने  को, भाषा  भी एक अस्त्र बना |
हिंदी  अंग्रेजी की खिचड़ी में, निपट रहा अब देश मेरा ||

जब  तक  द्विभाषा  के चंगुल से, हम निकल नही पाएंगे |
सदियाँ बीत जाएंगी पर हम, विकसित कभी न कहलाएंगे ||

अपने ज्ञान विज्ञान के बल पर, जो  विश्व गुरू कहलाता था |
आज विश्व में सस्ते और अच्छे, नौकर का बृहत हैं निर्माता ||

आ गया समय हैं हम जागें, अपनी भाषा की ताकत पहचानें |
हीन  भावना से  निकल  पुनः, अपनी खोई गरिमाँ पहचानें ||

फिर  एक  बार  हुँकार  भरें,  स्वाभिमान  हिंदी  से जोड़ें |
ज्ञान  और  विज्ञान  में  अपना,  परचम  फिर से लहराएँ ||   



‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌_________ अश्विनी कुमार तिवारी ( 14.09.2013 )

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