राज भाषा में हुआ
हैं ,
अजब सा घालमेल |
हिंदी – अंग्रेजी
की
खिचड़ी में, निपट रहा हैं देश ||
दोगली सी नीतियों के , बहुरंगी हैं अर्थ
|
लोग बाग हैं
त्रस्त लड़ रहे , लेकर अपने अस्त्र
||
आत्मा हैं हिंदी पर , पहने
अंग्रेजी वस्त्र
|
स्वाद हाथ का भूल रहे , काँटे छूरी के भक्त ||
शब्द शब्द अक्षर दर अक्षर , रटे जा रहे इंग्लिश के |
कितनी मेहनत कर कर
भी , हाय निरक्षर इंग्लिश के ||
स्वाभिमान को कूट - काट
, अंग्रेजी से बनते हैं सभ्य |
भले ना पल्ले एक शब्द भी, रट जाते हैं बाते सब ||
बिषय समझने का सब
श्रम , चढ़ जाता इंग्लिश के हत्थे |
नम्बर भले मिले अच्छे
पर , विषय कहाँ चढ़ता मत्थे ||
पढ़ें अगर अपनी भाषा में, कहें अगर अपनी भाषा में |
समझ बढ़ेगी विषयों की
, श्रमहीन साथ जब भाषा में ||
भाषाओं से द्वेष नही हैं,
जितनी इच्छा हो हम सीखें |
ज्ञान से ना नुकसान
कोई, ज्ञानी जन अक्सर ही कहते ||
अंग्रेजी भी बुरी
नही हैं , कितने दिल उसने
जीते |
आस पास जब खोजेंगे
, दिख जाएंगे प्रेमी कितने ||
पर गरल सदृश सी लगती
हैं , जब सर पर चढ़ कर नाचे |
राजभाषा की नीति
दोगली , हिंदी की अस्मत नित लूटे ||
संबिधान का अनादर
करना , नही हेतु कभी है मेरा |
पर नेताओं के
चक्कर का , साथ उसे है
ले डूबा ||
अपनी दोहरी चाल थोप , संविधान पर मस्त
रहे |
रोटी सब वो खा रहे ,
बिल्ली सी तराजू हम देखें ||
आपस में हमें लड़ाने
को, भाषा भी एक अस्त्र बना |
हिंदी अंग्रेजी की खिचड़ी में, निपट रहा अब देश मेरा ||
जब तक द्विभाषा के चंगुल से, हम निकल नही पाएंगे |
सदियाँ बीत जाएंगी
पर हम, विकसित कभी न कहलाएंगे ||
अपने ज्ञान विज्ञान
के बल पर, जो विश्व गुरू कहलाता था |
आज विश्व में सस्ते
और अच्छे, नौकर का बृहत हैं निर्माता ||
आ गया समय हैं हम
जागें, अपनी भाषा की ताकत पहचानें |
हीन भावना से निकल पुनः,
अपनी खोई गरिमाँ पहचानें ||
फिर एक
बार हुँकार भरें,
स्वाभिमान हिंदी से जोड़ें |
ज्ञान और
विज्ञान में अपना,
परचम फिर से लहराएँ ||
_________ अश्विनी कुमार तिवारी ( 14.09.2013 )
बहुत बढ़िया।
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